भारत में स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच हमेशा से एक गंभीर मुद्दा रही है। खासकर गरीब और बुजुर्ग नागरिकों के लिए, जिन्हें अक्सर इलाज के लिए निजी अस्पतालों पर निर्भर रहना पड़ता है। सरकार द्वारा शुरू की गई आयुष्मान भारत योजना या प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PM-JAY) का उद्देश्य देश के कमजोर वर्गों को स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ पहुंचाना है। हाल ही में इस योजना का विस्तार किया गया है, जिसके तहत 70 वर्ष से अधिक उम्र के वरिष्ठ नागरिकों को उनकी आय की परवाह किए बिना शामिल किया गया है।
हालांकि यह निर्णय 6 करोड़ से अधिक लोगों के लिए एक राहत की तरह है, लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या यह वास्तव में भारत के सार्वजनिक स्वास्थ्य लक्ष्यों को पूरा कर सकेगा? इस लेख में हम इसी सवाल पर गहराई से चर्चा करेंगे और योजना की सीमाओं, चुनौतियों और संभावनाओं का विश्लेषण करेंगे।
आयुष्मान भारत योजना का महत्व (Ayushman Bharat Yojana)
आयुष्मान भारत योजना को 2018 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू किया गया था, जिसका उद्देश्य देश के गरीब और कमजोर वर्गों को ₹5 लाख तक का वार्षिक स्वास्थ्य बीमा प्रदान करना था। इस योजना के तहत तृतीयक और द्वितीयक स्वास्थ्य सेवाओं के लिए कवरेज प्रदान किया गया है, ताकि गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए नागरिकों को आर्थिक सहायता मिल सके।
हाल ही में इस योजना में 70 वर्ष से अधिक उम्र के वरिष्ठ नागरिकों को भी शामिल किया गया है, भले ही उनकी आय कुछ भी हो। यह कदम निश्चित रूप से सराहनीय है, क्योंकि इस आयु वर्ग के लोग कई गंभीर और दीर्घकालिक बीमारियों से पीड़ित होते हैं। भारत में स्वास्थ्य सेवाओं के लिए आउट-ऑफ-पॉकेट खर्च दुनिया में सबसे अधिक हैं, और ऐसे में इस तरह का कवरेज एक महत्वपूर्ण राहत साबित हो सकता है।
योजना की सीमाएँ: क्या यह पर्याप्त है?
हालांकि योजना की मंशा अच्छी है, लेकिन इसके दायरे में कई महत्वपूर्ण खामियां हैं जो इसे अपने उद्देश्य को पूरी तरह से हासिल करने से रोकती हैं। सबसे बड़ी समस्या यह है कि आयुष्मान भारत योजना केवल अस्पताल में भर्ती होने पर कवरेज प्रदान करती है। इसका मतलब यह हुआ कि यह योजना दैनिक स्वास्थ्य देखभाल, जैसे डॉक्टरों की फीस, जांच, और दवाइयों पर खर्च का कोई ध्यान नहीं देती।
भारत में बढ़ते हुए क्रोनिक डिजीज जैसे मधुमेह, हृदय रोग, और उच्च रक्तचाप के कारण बुजुर्गों की अधिकांश स्वास्थ्य संबंधी आवश्यकताएँ अस्पताल में भर्ती होने से पहले ही पूरी हो जाती हैं। इस प्रकार, लगभग 40-80% स्वास्थ्य खर्च ओपीडी सेवाओं पर होता है, जो इस योजना के अंतर्गत नहीं आते।
वरिष्ठ नागरिकों के संदर्भ में, यह स्थिति और गंभीर हो जाती है क्योंकि इस उम्र में लोगों को कई प्रकार की बीमारियों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में केवल अस्पताल में भर्ती होने के दौरान कवरेज देना पर्याप्त नहीं है।
ग्रामीण क्षेत्रों में योजना की पहुंच
आयुष्मान भारत योजना की एक और महत्वपूर्ण चुनौती है ग्रामीण और दूरस्थ क्षेत्रों में इसकी पहुंच का अभाव। आंकड़ों के अनुसार, इस योजना का प्रवेश दर छोटे शहरों और कस्बों में बहुत कम है, खासकर उत्तर और पूर्वी भारत में।
दक्षिणी राज्यों में स्थिति थोड़ी बेहतर है, जहां सरकार की प्राथमिक और द्वितीयक स्वास्थ्य सेवाओं में पहले से ही कुछ सुधार देखे गए हैं। लेकिन उत्तर भारत में सरकारी स्वास्थ्य सेवाएँ अपर्याप्त और अयोग्य हैं, जिससे वहाँ योजना का लाभ उठाना बेहद कठिन हो जाता है।
इसके अलावा, प्राथमिक और द्वितीयक स्वास्थ्य सेवाओं को सुदृढ़ किए बिना, तृतीयक स्वास्थ्य सेवाओं पर अत्यधिक दबाव पड़ता है। यही कारण है कि अगर सरकार सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करना चाहती है, तो उसे प्राथमिक और द्वितीयक स्वास्थ्य सेवाओं पर भी ध्यान देना होगा।
अंतरराष्ट्रीय अनुभव: थाईलैंड और अमेरिका से सबक
इस संदर्भ में भारत को थाईलैंड से सबक लेना चाहिए। थाईलैंड ने अपनी स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करने के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और ग्रामीण अस्पतालों पर ध्यान केंद्रित किया। यहाँ तक कि उन्होंने शहरी अस्पतालों के लिए निर्धारित बजट को ग्रामीण क्षेत्रों में स्थानांतरित कर दिया, ताकि यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज हासिल की जा सके।
इसके विपरीत, अमेरिका ने बीमा-आधारित स्वास्थ्य प्रणाली पर जोर दिया, जिससे स्वास्थ्य सेवाओं की लागत आसमान छूने लगी। भारत की स्थिति भी धीरे-धीरे उसी दिशा में जा रही है।
आयुष्मान भारत योजना में अब तक अधिकांश धनराशि का उपयोग निजी अस्पतालों में किया गया है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, योजना के तहत प्रत्येक वर्ष खर्च होने वाली कुल राशि का लगभग दो-तिहाई हिस्सा निजी अस्पतालों में जाता है। दक्षिणी राज्यों में यह आंकड़ा 53% तक है।
इससे एक और गंभीर समस्या पैदा होती है – यदि सरकार प्राथमिक और द्वितीयक स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत नहीं करती है, तो तृतीयक स्वास्थ्य सेवाओं में निजी क्षेत्र का दखल और बढ़ जाएगा। इससे सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति और कमजोर होगी, और अंततः लोगों को निजी अस्पतालों पर निर्भर रहना पड़ेगा।
भविष्य की राह: क्या बदलाव जरूरी हैं?
आयुष्मान भारत योजना निश्चित रूप से एक महत्वपूर्ण पहल है, लेकिन इसके साथ कई चुनौतियाँ जुड़ी हुई हैं। योजना के मौजूदा स्वरूप में निम्नलिखित सुधार आवश्यक हैं:
- ओपीडी कवरेज: जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, बुजुर्ग नागरिकों के लिए ओपीडी सेवाएं बेहद महत्वपूर्ण हैं। योजना में ओपीडी, डायग्नोस्टिक टेस्ट और दवाओं के लिए कवरेज शामिल करना बेहद आवश्यक है, ताकि इसे वाकई में लाभकारी बनाया जा सके।
- प्राथमिक और द्वितीयक स्वास्थ्य सेवाओं का सुदृढ़ीकरण: जब तक प्राथमिक और द्वितीयक स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत नहीं किया जाता, तब तक तृतीयक स्वास्थ्य सेवाओं पर अत्यधिक दबाव रहेगा। सरकार को थाईलैंड जैसे देशों से प्रेरणा लेनी चाहिए और ग्रामीण तथा छोटे कस्बों में स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए निवेश करना चाहिए।
- निजी और सार्वजनिक अस्पतालों के बीच संतुलन: योजना का अधिकांश लाभ निजी अस्पतालों को जा रहा है, जबकि सरकारी अस्पतालों की स्थिति में सुधार नहीं हो रहा। इस असंतुलन को ठीक करने के लिए नीति में बदलाव जरूरी है।
- बीमा मॉडल में सुधार: भारत को बीमा-आधारित मॉडल की बजाय स्वास्थ्य सेवा मॉडल को प्राथमिकता देनी चाहिए। बीमा आधारित स्वास्थ्य प्रणाली की अपनी सीमाएँ हैं और यह प्रणाली दीर्घकालिक समाधान प्रदान नहीं कर सकती।
आयुष्मान भारत योजना भारत की स्वास्थ्य प्रणाली को सुदृढ़ करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, लेकिन यह अपने मौजूदा स्वरूप में अपर्याप्त है। योजना में सुधार की अत्यधिक आवश्यकता है, ताकि यह वास्तव में देश के जरूरतमंद और बुजुर्ग नागरिकों के लिए लाभकारी साबित हो सके।
इसमें ओपीडी सेवाओं को शामिल करना, ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार करना, और प्राथमिक और द्वितीयक स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करना अनिवार्य है। भारत के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह अमेरिका जैसे बीमा आधारित मॉडल के बजाय थाईलैंड के मजबूत स्वास्थ्य सेवा मॉडल से सीख ले और अपने नागरिकों को सस्ती और सुलभ स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करे।
आयुष्मान भारत योजना अधूरी जरूर है, लेकिन इसे बेहतर बनाने की संभावनाएँ भी उतनी ही व्यापक हैं।