ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद, जिनका जन्म 1 सितंबर 1896 को कोलकाता में अभय चरण दे के नाम से हुआ, एक प्रमुख भारतीय धार्मिक नेता और इस्कॉन (अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ) के संस्थापक थे। उनके माता-पिता गौर मोहन दे और रजनी दे, वैष्णव परंपरा के अनुयायी थे, और बचपन से ही प्रभुपाद ने कृष्ण भक्ति में गहरी रुचि दिखाई। उन्होंने स्कॉटिश चर्च कॉलेज से शिक्षा प्राप्त की, लेकिन स्वतंत्रता संग्राम में योगदान के रूप में अपनी डिग्री लेने से इंकार कर दिया।
अध्यात्मिक गुरू से मुलाकात और मार्गदर्शन
1922 में, प्रभुपाद की मुलाकात उनके अध्यात्मिक गुरू, श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती गोस्वामी से हुई, जिन्होंने उन्हें पश्चिमी दुनिया में वैदिक ज्ञान फैलाने के लिए प्रेरित किया। 1933 में, प्रभुपाद ने भक्तिसिद्धांत सरस्वती गोस्वामी के मार्गदर्शन में दीक्षा ली और अपने जीवन को कृष्ण भक्ति के प्रचार के लिए समर्पित कर दिया।
इस्कॉन की स्थापना और वैश्विक विस्तार
1959 में, प्रभुपाद ने संन्यास ग्रहण किया और वृंदावन चले गए, जहां उन्होंने श्रीमद भागवतम पर अपने महाकाव्य अनुवाद और टीकाएं लिखनी शुरू कीं। 1965 में, उन्होंने 69 वर्ष की आयु में अमेरिका की यात्रा की और न्यूयॉर्क में इस्कॉन की स्थापना की। प्रारंभिक चुनौतियों के बावजूद, प्रभुपाद का संदेश युवा पीढ़ी में लोकप्रिय हुआ, विशेषकर 1960 के दशक के हिप्पी आंदोलन के बीच।
प्रभुपाद ने 12 वर्षों में 14 बार विश्व का भ्रमण किया और 100 से अधिक मंदिरों की स्थापना की। उन्होंने 5000 से अधिक शिष्यों को दीक्षा दी और इस्कॉन को एक वैश्विक आंदोलन में बदल दिया।
साहित्यिक योगदान और कृष्ण भक्ति का प्रचार
प्रभुपाद ने 70 से अधिक पुस्तकें लिखीं, जिनमें ‘Bhagavad Gita As It Is‘ और ‘श्रीमद भागवतम’ जैसे महत्वपूर्ण ग्रंथ शामिल हैं। इन पुस्तकों का 76 भाषाओं में अनुवाद किया गया और ये विभिन्न विश्वविद्यालयों में पाठ्यक्रम का हिस्सा हैं। प्रभुपाद ने इस्कॉन के माध्यम से विश्व भर में वेदांत और कृष्ण भक्ति के संदेश को फैलाने का महत्वपूर्ण कार्य किया।
अंतिम वर्ष और विरासत
प्रभुपाद का 14 नवंबर 1977 को वृंदावन में निधन हो गया। उनके प्रयासों से कृष्ण भक्ति का प्रचार एक वैश्विक स्तर पर हुआ और आज भी उनकी शिक्षाएं और लिखित कार्य लोगों को आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्रदान कर रहे हैं। उनके द्वारा स्थापित इस्कॉन आज भी लाखों अनुयायियों द्वारा संचालित हो रहा है, और उनका जीवन और कार्य अनगिनत लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना हुआ है।
निष्कर्ष
ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद ने अपनी साधना और आत्मनिष्ठा से न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में कृष्ण भक्ति का प्रचार किया। उनके द्वारा स्थापित इस्कॉन ने वैश्विक स्तर पर वैदिक शिक्षा और कृष्ण भक्ति को एक नई दिशा दी। प्रभुपाद की विरासत आज भी उनके अनुयायियों और उनके द्वारा स्थापित संस्थानों के माध्यम से जीवित है, और उनकी शिक्षाएं अनगिनत लोगों के जीवन को सकारात्मक रूप से प्रभावित कर रही हैं।
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