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New York Times की लगा दी लंका, पहलगाम आतंकी हमले को ‘मिलिटेंट अटैक’ बताना पड़ा भारी

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Key Highlights:

  • अमेरिकी हाउस पैनल ने न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्टिंग को बताया ‘गंभीर चूक’
  • आतंकवादी संगठन ने ली थी पहलगाम हमले की जिम्मेदारी
  • NYT ने शब्दों के चयन में दिखाई असंवेदनशीलता
  • रिपोर्टिंग में ‘मिलिटेंट अटैक’ शब्द का उपयोग बना विवाद की जड़

New York Times पर अमेरिकी समिति का शिकंजा

पहलगाम हमले की रिपोर्टिंग में न्यूयॉर्क टाइम्स की भाषा बनी विवाद का कारण, अमेरिकी हाउस पैनल ने जताई गंभीर आपत्ति

हाल ही में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले को लेकर न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्टिंग पर अमेरिकी हाउस पैनल ने सख्त नाराजगी जताई है। इस रिपोर्ट में हम जानेंगे कि आखिर क्यों एक अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित समाचार संस्था को अपनी शब्दावली के कारण आलोचना का सामना करना पड़ा।

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हाल ही में एक आतंकी हमला हुआ, जिसकी जिम्मेदारी पाकिस्तान-आधारित आतंकी संगठन ‘द रेसिस्टेंस फ्रंट’ (The Resistance Front) ने ली है। यह संगठन प्रतिबंधित लश्कर-ए-तैयबा का ही एक हिस्सा माना जाता है।

लेकिन जब इस हमले की खबर न्यूयॉर्क टाइम्स में छपी, तो उन्होंने इसे “मिलिटेंट अटैक” करार दिया। यहीं से विवाद शुरू हुआ।

अमेरिकी हाउस पैनल की प्रतिक्रिया

अमेरिका की एक प्रभावशाली संसदीय समिति (House Committee) ने इस रिपोर्टिंग को “असंवेदनशील और गलत शब्द चयन” करार देते हुए न्यूयॉर्क टाइम्स से जवाब मांगा है। पैनल का मानना है कि ‘मिलिटेंट’ जैसे शब्द आतंकवाद को कम गंभीर बताने का एक प्रयास हैं, जबकि असल में यह एक सीधा और बर्बर आतंकी हमला था।

जब कोई प्रतिष्ठित मीडिया संस्थान आतंकी हमलों को ‘मिलिटेंट अटैक’ कहता है, तो इससे न सिर्फ पीड़ितों की संवेदनाएं आहत होती हैं, बल्कि यह वैश्विक स्तर पर आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई को भी कमजोर करता है।

इसलिए हाउस पैनल की चिंता जायज़ है — क्योंकि शब्द ही वह हथियार होते हैं जो या तो सच को सामने लाते हैं या फिर उसे छिपा देते हैं।

भारत की प्रतिक्रिया और वैश्विक संदर्भ

भारत लंबे समय से अंतरराष्ट्रीय मंचों पर यह बात उठाता रहा है कि वैश्विक मीडिया अक्सर आतंकवाद के मुद्दों पर दोहरा रवैया अपनाता है। NYT जैसे मीडिया आउटलेट का ‘मिलिटेंट’ शब्द का प्रयोग इसी चिंतन को सही साबित करता है।

इस रिपोर्टिंग से यह भी उजागर हुआ है कि अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थानों को रिपोर्टिंग करते समय केवल ‘तटस्थता’ नहीं, बल्कि ‘जवाबदेही’ भी दिखानी चाहिए।

रिपोर्टर की नज़र से: अनुभव क्या कहता है?

एक रिपोर्टर के रूप में मैंने कई बार ऐसे उदाहरण देखे हैं जब शब्दों के चयन से पूरे घटनाक्रम की दिशा बदल जाती है। एक “आतंकी हमला” अगर “मिलिटेंट एक्ट” में बदल जाए, तो यह न सिर्फ आतंक की गंभीरता को हल्का करता है, बल्कि भविष्य में ऐसे कृत्यों को सामान्यीकृत कर सकता है।

इसलिए, रिपोर्टिंग में ईमानदारी, तथ्यात्मकता और सही शब्दावली का चयन बेहद ज़रूरी होता है।

NYT जैसे बड़े मीडिया संस्थानों को अपनी जिम्मेदारी का एहसास होना चाहिए। पत्रकारिता सिर्फ जानकारी देने का माध्यम नहीं, बल्कि जनमत और वैश्विक दृष्टिकोण को दिशा देने वाली ताकत भी है।

अगर मीडिया अपने शब्दों में लापरवाही बरतेगा, तो इसका खामियाज़ा केवल एक रिपोर्ट तक सीमित नहीं रहेगा — यह भविष्य की पत्रकारिता और समाज दोनों को प्रभावित करेगा।

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Shubham

शुभम झोपे एक प्रतिष्ठित लेखक हैं जो "ख़बर हरतरफ़" के लिए नियमित रूप से लेख लिखते हैं। उनकी लेखनी में समकालीन मुद्दों पर गहन विश्लेषण और सूक्ष्म दृष्टिकोण देखने को मिलता है। शुभम की लेखन शैली सहज और आकर्षक है, जो पाठकों को उनके विचारों से जोड़ देती है। शेयर बाजार, उद्यमिता और व्यापार में और सांस्कृतिक विषयों पर उनकी लेखनी विशेष रूप से सराही जाती है।

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