जन्माष्टमी के बारे में ये अद्भुत तथ्य आपको नहीं पता होंगे

You may not know these amazing facts about Janmashtami
You may not know these amazing facts about Janmashtami
WhatsApp Group Join Now

जन्माष्टमी, जिसे श्री कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में भी जाना जाता है, भगवान श्रीकृष्ण के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व हिन्दू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है, जो आमतौर पर अगस्त या सितंबर महीने में पड़ता है। इस पर्व का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व बहुत अधिक है, और इसे भारत ही नहीं, बल्कि विश्वभर में हिन्दू धर्मावलंबियों द्वारा बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।

कृष्ण जन्माष्टमी का पौराणिक महत्व

श्रीकृष्ण का जन्म द्वापर युग में हुआ था, जब अत्याचारी कंस ने धरती पर आतंक मचा रखा था। श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा नगरी में, वासुदेव और देवकी के घर हुआ। भगवान विष्णु ने कंस के अत्याचारों से पृथ्वी को मुक्त कराने के लिए श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लिया था। कृष्ण का जन्म अर्धरात्रि में हुआ था, और उनकी जन्मकुंडली के अनुसार, वे कंस का वध करके पृथ्वी को उसके अत्याचारों से मुक्त करेंगे।

जन्माष्टमी के दिन श्रद्धालु व्रत रखते हैं, मंदिरों में विशेष पूजा अर्चना होती है, और रासलीला का आयोजन किया जाता है। इस दिन को विशेष बनाने के लिए मंदिरों और घरों में झांकियां सजाई जाती हैं, जिनमें श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का चित्रण होता है।

दही-हांडी उत्सव

जन्माष्टमी के पर्व पर महाराष्ट्र और गुजरात में दही-हांडी उत्सव का आयोजन विशेष रूप से किया जाता है। इसमें मटकी में दही, मक्खन और अन्य मिठाइयां डालकर ऊंचाई पर लटका दी जाती हैं, और युवाओं की टोली मानव पिरामिड बनाकर उसे फोड़ने की कोशिश करती है। यह परंपरा श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का प्रतीक है, जब वे अपने सखाओं के साथ मिलकर माखन चोरी किया करते थे।

जन्माष्टमी के अगले दिन को नंदोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को नंद बाबा और यशोदा माता ने श्रीकृष्ण के जन्म की खुशी में आयोजित किया था। नंदोत्सव के दिन भी घरों और मंदिरों में विशेष पूजा और भोग का आयोजन होता है।

अन्य देशों में जन्माष्टमी का महत्व

भारत के अलावा, नेपाल, बांग्लादेश, फिजी, त्रिनिदाद और टोबैगो, गुयाना, मॉरिशस, केन्या, टांजेनिया, युगांडा, दक्षिण अफ्रीका, कनाडा, मलेशिया, सिंगापुर और यूनाइटेड किंगडम जैसे देशों में भी जन्माष्टमी का पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। विदेशों में बसे भारतीय समुदाय इस पर्व को मनाकर अपनी संस्कृति और परंपराओं को जीवित रखते हैं। इसका सबसे श्रेष्ठ कारन प्रभुपाद जी द्वारा भगवद्गीता का प्रचार प्रसार हुआ इसलिए विदेशो में भी जन्माष्टमी का पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।

श्रीकृष्ण के उपदेश और गीता का महत्व

श्रीकृष्ण ने महाभारत के युद्ध के दौरान अर्जुन को भगवद गीता का उपदेश दिया था, जो आज भी मानवता के लिए एक अमूल्य धरोहर है। गीता में दिए गए श्रीकृष्ण के उपदेश जीवन के हर पहलू को समर्पित हैं और इसमें निहित ज्ञान आज भी लोगों को जीवन के सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।

जन्माष्टमी के सामाजिक और सांस्कृतिक पहलू

जन्माष्टमी का पर्व समाज में एकता और भाईचारे का संदेश देता है। इस पर्व के अवसर पर लोग एकत्रित होकर भगवान श्रीकृष्ण की आराधना करते हैं, जिससे समाज में सामूहिकता और मेलजोल की भावना प्रबल होती है।

जन्माष्टमी का पर्व न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह हमें समाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों का भी पाठ पढ़ाता है। श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं से लेकर उनके द्वारा दिए गए गीता के उपदेशों तक, हर पहलू हमें जीवन के सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। इस पवित्र पर्व को मनाकर हम भगवान श्रीकृष्ण के प्रति अपनी भक्ति और श्रद्धा को प्रकट करते हैं और उनके आदर्शों को अपने जीवन में उतारने की कोशिश करते हैं।

यह भी पढ़े: प्रभु श्री राम के 108 नाम: जानिए भगवान राम के पूजनीय नामों का महत्त्व

Team K.H.
Team K.H. एक न्यूज़ वेबसाइट का लेखक प्रोफ़ाइल है। इस टीम में कई प्रोफेशनल और अनुभवी पत्रकार और लेखक शामिल हैं, जो अपने विशेषज्ञता के क्षेत्र में लेखन करते हैं। यहाँ हम खबरों, समाचारों, विचारों और विश्लेषण को साझा करते हैं, जिससे पाठकों को सटीक और निष्पक्ष जानकारी प्राप्त होती है। Team K.H. का मिशन है समाज में जागरूकता और जानकारी को बढ़ावा देना और लोगों को विश्वसनीय और मान्य स्रोत से जानकारी प्राप्त करने की सुविधा प्रदान करना।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here