श्री यमुनाष्टक: (Shree Yamunashtak) श्री वल्लभाचार्य रचित अद्भुत स्तुति जो लाए हरि कृपा

Shree Yamunashtak
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श्री यमुनाष्टक, श्री वल्लभाचार्य द्वारा रचित एक दिव्य स्तुति है, जो यमुना नदी की महिमा का वर्णन करती है। इसे पढ़ने और गाने से न केवल भक्तों को आध्यात्मिक शांति मिलती है, बल्कि यह हरि कृपा का द्वार खोलने में सहायक मानी जाती है। इस स्तुति का प्रत्येक श्लोक यमुना जी के महत्व और उनके पवित्र स्वरूप का गहराई से वर्णन करता है।

सम्पूर्ण श्री यमुनाष्टक: Shree Yamunashtak

तटस्थ नव कानन प्रकटमोद पुष्पाम्बुना
सुरासुरसुपूजित स्मरपितुः श्रियं बिभ्रतीम ॥१॥

कलिन्द गिरि मस्तके पतदमन्दपूरोज्ज्वला
विलासगमनोल्लसत्प्रकटगण्ड्शैलोन्न्ता ।

सघोषगति दन्तुरा समधिरूढदोलोत्तमा
मुकुन्दरतिवर्द्धिनी जयति पद्मबन्धोः सुता ॥२॥

भुवं भुवनपावनीमधिगतामनेकस्वनैः
प्रियाभिरिव सेवितां शुकमयूरहंसादिभिः ।

तरंगभुजकंकण प्रकटमुक्तिकावाकुका-
नितन्बतटसुन्दरीं नमत कृष्ण्तुर्यप्रियाम ॥३॥

अनन्तगुण भूषिते शिवविरंचिदेवस्तुते
घनाघननिभे सदा ध्रुवपराशराभीष्टदे ।

विशुद्ध मथुरातटे सकलगोपगोपीवृते
कृपाजलधिसंश्रिते मम मनः सुखं भावय ॥४॥

यया चरणपद्मजा मुररिपोः प्रियं भावुका
समागमनतो भवत्सकलसिद्धिदा सेवताम ।

तया सह्शतामियात्कमलजा सपत्नीवय-
हरिप्रियकलिन्दया मनसि मे सदा स्थीयताम ॥५॥

नमोस्तु यमुने सदा तव चरित्र मत्यद्भुतं
न जातु यमयातना भवति ते पयः पानतः ।

यमोपि भगिनीसुतान कथमुहन्ति दुष्टानपि
प्रियो भवति सेवनात्तव हरेर्यथा गोपिकाः ॥६॥

ममास्तु तव सन्निधौ तनुनवत्वमेतावता
न दुर्लभतमारतिर्मुररिपौ मुकुन्दप्रिये ।

अतोस्तु तव लालना सुरधुनी परं सुंगमा-
त्तवैव भुवि कीर्तिता न तु कदापि पुष्टिस्थितैः ॥७॥

स्तुति तव करोति कः कमलजासपत्नि प्रिये
हरेर्यदनुसेवया भवति सौख्यमामोक्षतः ।

इयं तव कथाधिका सकल गोपिका संगम-
स्मरश्रमजलाणुभिः सकल गात्रजैः संगमः ॥८॥

तवाष्टकमिदं मुदा पठति सूरसूते सदा
समस्तदुरितक्षयो भवति वै मुकुन्दे रतिः ।

तया सकलसिद्धयो मुररिपुश्च सन्तुष्यति
स्वभावविजयो भवेत वदति वल्लभः श्री हरेः ॥९॥

॥ इति श्री वल्लभाचार्य विरचितं यमुनाष्टकं सम्पूर्णम ॥

श्री यमुनाष्टक के श्लोक और उनका अर्थ

  1. नमामि यमुनामहं सकल सिद्धि हेतुं मुदा…
    इस श्लोक में यमुना जी को ‘सकल सिद्धि का हेतु’ कहा गया है। उनके तट पर पुष्पों की सुगंध और भक्तों की सेवा से यमुना जी की दिव्यता प्रकट होती है।
  2. कलिन्द गिरि मस्तके पतदमन्दपूरोज्ज्वला…
    यहां यमुना जी के प्रवाह और उनकी शोभा का वर्णन किया गया है। वे कलिन्द पर्वत से प्रवाहित होकर अपने जल से पृथ्वी को पवित्र करती हैं।
  3. भुवं भुवनपावनीमधिगतामनेकस्वनैः…
    इस श्लोक में यमुना जी को भुवनों को पवित्र करने वाली कहा गया है। उनके जल में डुबकी लगाने से पापों का नाश होता है।
  4. अनन्तगुण भूषिते शिवविरंचिदेवस्तुते…
    यमुना जी को शिव, ब्रह्मा और अन्य देवताओं द्वारा स्तुति प्राप्त है। उनका जल मोक्ष प्राप्ति में सहायक माना जाता है।

यमुनाष्टक का आध्यात्मिक महत्व

यमुना जी केवल एक नदी नहीं हैं, बल्कि वैदिक परंपरा में उन्हें एक देवी के रूप में पूजा जाता है। श्री वल्लभाचार्य ने यमुना जी को कृष्ण प्रेम का प्रतीक मानते हुए उनकी स्तुति की। यमुनाष्टक यह बताता है कि यमुना जी के जल से स्नान करने और उनके भजन गाने से हरि कृपा प्राप्त होती है।

श्री वल्लभाचार्य और यमुनाष्टक

श्री वल्लभाचार्य, पुष्टिमार्ग के प्रवर्तक, ने यमुना जी की महिमा को भक्तों के सामने प्रस्तुत किया। उनके अनुसार, यमुनाष्टक का पाठ करने से जीवन के समस्त दोष समाप्त हो जाते हैं और आत्मा को शुद्धता प्राप्त होती है।

यमुना जी की पौराणिक और धार्मिक मान्यता

यमुना जी को भगवान सूर्य की पुत्री और यमराज की बहन के रूप में जाना जाता है। यह भी माना जाता है कि उनके जल का पान करने वाले को यमराज का भय नहीं होता।

कैसे करें यमुनाष्टक का पाठ?

  • सुबह स्नान के बाद यमुनाष्टक का पाठ करना शुभ माना जाता है।
  • इसे यमुना नदी के तट पर या कृष्ण मंदिर में पढ़ने से विशेष फल मिलता है।
  • यमुनाष्टक के पाठ के दौरान ध्यान भगवान कृष्ण और यमुना जी पर केंद्रित करना चाहिए।

यमुनाष्टक के लाभ

  • आध्यात्मिक उन्नति और हरि कृपा प्राप्त होती है।
  • यमराज के भय से मुक्ति मिलती है।
  • जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है।
  • भक्तों को मोक्ष प्राप्ति का मार्ग दिखाता है।

कहां पढ़ें श्री यमुनाष्टक और अधिक जानकारी

श्री यमुनाष्टक को पढ़ने के लिए आप इसे विभिन्न धर्मग्रंथों में प्राप्त कर सकते हैं। इसके अलावा, Khabar Hartaraf पर भी इसे पढ़ने और समझने के लिए विस्तृत जानकारी उपलब्ध है।

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