सूर्य चालीसा हिन्दू धर्म के अनुयायियों के लिए एक महत्वपूर्ण स्तोत्र है। यह स्तोत्र भगवान सूर्य को समर्पित है, जो जीवन और ऊर्जा के प्रतीक माने जाते हैं। सूर्य चालीसा का नियमित पाठ करने से जीवन में सुख-समृद्धि और स्वास्थ्य लाभ होता है। इस लेख में हम सूर्य चालीसा के महत्व, उसके लाभ और पाठ की विधि के बारे में विस्तृत जानकारी देंगे।
सूर्य चालीसा का महत्व
सूर्य चालीसा का पाठ करने से मानसिक शांति और स्वास्थ्य में सुधार होता है। यह स्तोत्र भगवान सूर्य की स्तुति करता है और उनके आशीर्वाद से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। सूर्य चालीसा में भगवान सूर्य के गुणों और शक्तियों का वर्णन किया गया है, जो भक्तों के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने में सहायक होते हैं।
सूर्य चालीसा के लाभ
- स्वास्थ्य लाभ: सूर्य चालीसा का नियमित पाठ करने से शरीर में रक्त संचार अच्छा होता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। यह हृदय रोग, नेत्र रोग और त्वचा रोगों में लाभकारी होता है।
- मानसिक शांति: सूर्य चालीसा का पाठ करने से मानसिक तनाव कम होता है और व्यक्ति को मानसिक शांति मिलती है। यह ध्यान और ध्यान केंद्रित करने की क्षमता में सुधार करता है।
- आध्यात्मिक विकास: सूर्य चालीसा का पाठ व्यक्ति के आध्यात्मिक विकास में सहायक होता है। यह व्यक्ति को अपने भीतर की शक्तियों का अनुभव करने में मदद करता है और आत्म-ज्ञान की प्राप्ति होती है।
- सकारात्मक ऊर्जा: सूर्य चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। यह व्यक्ति को नकारात्मक विचारों से दूर रखता है और जीवन में उत्साह और उल्लास लाता है।
सूर्य चालीसा पाठ की विधि
सूर्य चालीसा का पाठ करने के लिए निम्नलिखित विधि का पालन करना चाहिए:
- स्नान और शुद्धि: सबसे पहले सुबह स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करें। शुद्धता का ध्यान रखना आवश्यक है।
- सूर्य नमस्कार: सूर्य चालीसा का पाठ करने से पहले सूर्य नमस्कार करें। इससे शरीर और मन दोनों तैयार होते हैं।
- पूजन सामग्री: सूर्य चालीसा का पाठ करते समय लाल फूल, चंदन, दीपक और तिल के तेल का दीपक जलाएं। यह सामग्री सूर्य देव को समर्पित करें।
- दिशा: सूर्य चालीसा का पाठ पूर्व दिशा की ओर मुख करके करें। यह दिशा सूर्य देवता की दिशा मानी जाती है और इसका विशेष महत्व है।
- ध्यान: पाठ करने से पहले भगवान सूर्य का ध्यान करें। उनकी मूर्ति या तस्वीर के सामने बैठकर उनका ध्यान करें और मन को एकाग्र करें।
- पाठ: अब सूर्य चालीसा का पाठ करें। ध्यान रखें कि पाठ करते समय मन में भगवान सूर्य के प्रति श्रद्धा और भक्ति का भाव होना चाहिए।
- आरती: पाठ के बाद सूर्य देव की आरती करें और प्रसाद चढ़ाएं। प्रसाद को सभी परिवारजनों में बांटें।
- समापन: अंत में भगवान सूर्य को धन्यवाद दें और उनसे अपने जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और स्वास्थ्य की कामना करें।
सूर्य चालीसा का पाठ | Shree Surya Chalisa Lyrics In Hindi
॥दोहा॥
कनक बदन कुण्डल मकर, मुक्ता माला अङ्ग,
पद्मासन स्थित ध्याइए, शंख चक्र के सङ्ग॥
॥चौपाई॥
जय सविता जय जयति दिवाकर,
सहस्त्रांशु सप्ताश्व तिमिरहर॥
भानु पतंग मरीची भास्कर,
सविता हंस सुनूर विभाकर॥ 1॥
विवस्वान आदित्य विकर्तन,
मार्तण्ड हरिरूप विरोचन॥
अम्बरमणि खग रवि कहलाते,
वेद हिरण्यगर्भ कह गाते॥ 2॥
सहस्त्रांशु प्रद्योतन, कहिकहि,
मुनिगन होत प्रसन्न मोदलहि॥
अरुण सदृश सारथी मनोहर,
हांकत हय साता चढ़ि रथ पर॥3॥
मंडल की महिमा अति न्यारी,
तेज रूप केरी बलिहारी॥
उच्चैःश्रवा सदृश हय जोते,
देखि पुरन्दर लज्जित होते॥4॥
मित्र मरीचि, भानु, अरुण, भास्कर,
सविता सूर्य अर्क खग कलिकर॥
पूषा रवि आदित्य नाम लै,
हिरण्यगर्भाय नमः कहिकै॥5॥
द्वादस नाम प्रेम सों गावैं,
मस्तक बारह बार नवावैं॥
चार पदारथ जन सो पावै,
दुःख दारिद्र अघ पुंज नसावै॥6॥
नमस्कार को चमत्कार यह,
विधि हरिहर को कृपासार यह॥
सेवै भानु तुमहिं मन लाई,
अष्टसिद्धि नवनिधि तेहिं पाई॥7॥
बारह नाम उच्चारन करते,
सहस जनम के पातक टरते॥
उपाख्यान जो करते तवजन,
रिपु सों जमलहते सोतेहि छन॥8॥
धन सुत जुत परिवार बढ़तु है,
प्रबल मोह को फंद कटतु है॥
अर्क शीश को रक्षा करते,
रवि ललाट पर नित्य बिहरते॥9॥
सूर्य नेत्र पर नित्य विराजत,
कर्ण देस पर दिनकर छाजत॥
भानु नासिका वासकरहुनित,
भास्कर करत सदा मुखको हित॥10॥
ओंठ रहैं पर्जन्य हमारे,
रसना बीच तीक्ष्ण बस प्यारे॥
कंठ सुवर्ण रेत की शोभा,
तिग्म तेजसः कांधे लोभा॥11॥
पूषां बाहू मित्र पीठहिं पर,
त्वष्टा वरुण रहत सुउष्णकर॥
युगल हाथ पर रक्षा कारन,
भानुमान उरसर्म सुउदरचन॥12॥
बसत नाभि आदित्य मनोहर,
कटिमंह, रहत मन मुदभर॥
जंघा गोपति सविता बासा,
गुप्त दिवाकर करत हुलासा॥13॥
विवस्वान पद की रखवारी,
बाहर बसते नित तम हारी॥
सहस्त्रांशु सर्वांग सम्हारै,
रक्षा कवच विचित्र विचारे॥14॥
अस जोजन अपने मन माहीं,
भय जगबीच करहुं तेहि नाहीं ॥
दद्रु कुष्ठ तेहिं कबहु न व्यापै,
जोजन याको मन मंह जापै॥15॥
अंधकार जग का जो हरता,
नव प्रकाश से आनन्द भरता॥
ग्रह गन ग्रसि न मिटावत जाही,
कोटि बार मैं प्रनवौं ताही॥
मंद सदृश सुत जग में जाके,
धर्मराज सम अद्भुत बांके॥16॥
धन्य-धन्य तुम दिनमनि देवा,
किया करत सुरमुनि नर सेवा॥
भक्ति भावयुत पूर्ण नियम सों,
दूर हटतसो भवके भ्रम सों॥17॥
परम धन्य सों नर तनधारी,
हैं प्रसन्न जेहि पर तम हारी॥
अरुण माघ महं सूर्य फाल्गुन,
मधु वेदांग नाम रवि उदयन॥18॥
भानु उदय बैसाख गिनावै,
ज्येष्ठ इन्द्र आषाढ़ रवि गावै॥
यम भादों आश्विन हिमरेता,
कातिक होत दिवाकर नेता॥19॥
अगहन भिन्न विष्णु हैं पूसहिं,
पुरुष नाम रविहैं मलमासहिं॥20॥
॥दोहा॥
भानु चालीसा प्रेम युत, गावहिं जे नर नित्य,
सुख सम्पत्ति लहि बिबिध, होंहिं सदा कृतकृत्य॥
व्यक्तिगत अनुभव:
मैं शुभम मिश्रा ग्वालियर का रहने वाला हूँ, मैंने स्वयं सूर्य चालीसा का पाठ नियमित रूप से किया है और इसके अद्भुत लाभों का अनुभव किया है। मेरे स्वास्थ्य में सुधार हुआ है, मानसिक शांति मिली है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार हुआ है। सूर्य चालीसा का पाठ एक अद्वितीय अनुभव है, जो व्यक्ति के जीवन में आध्यात्मिक और मानसिक विकास लाता है।
सूर्य चालीसा का पाठ एक अत्यंत महत्वपूर्ण और लाभकारी प्रक्रिया है। यह न केवल स्वास्थ्य में सुधार लाता है बल्कि मानसिक शांति और आध्यात्मिक विकास में भी सहायक होता है। सूर्य चालीसा का नियमित पाठ करने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और व्यक्ति के जीवन में खुशहाली आती है।
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