श्रीरामरक्षास्तोत्रम् एक अत्यंत प्राचीन और प्रसिद्ध संस्कृत श्लोक संहिता है, जो भगवान श्रीराम की प्रशंसा करती है और उनके रक्षा की बात करती है। इसे पाठ करने से रोगनाशन, शत्रु नाशन, दुख नाशन, सुख समृद्धि और धन संपदा की प्राप्ति होती है। यह रामचरितमानस के संत तुलसीदास जी द्वारा लिखा गया है और यह संहिता संतों और भक्तों के लिए अत्यंत प्रिय है। इसे नियमित रूप से पढ़ने से मन, वाक्, और कर्म में समता आती है और भगवान श्रीराम की कृपा प्राप्त होती है।
संपुर्ण राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करने से होगी धन की वर्षा, जानें इसका महत्व | Ram Raksha Stotra Hindi
अस्य श्रीरामरक्षास्त्रोतमन्त्रस्य बुधकौशिक ऋषिः ।
अथ ध्यानम्:
राम रक्षा स्तोत्रम्:
ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम् ।
सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तंचरान्तकम् ।
रामरक्षां पठेत प्राज्ञः पापघ्नीं सर्वकामदाम् ।
कौसल्येयो दृशो पातु विश्वामित्रप्रियः श्रुति ।
जिह्वां विद्यानिधिः पातु कण्ठं भरतवन्दितः ।
करौ सीतापतिः पातु हृदयं जामदग्न्यजित ।
सुग्रीवेशः कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभुः ।
जानुनी सेतुकृत पातु जंघे दशमुखांतकः ।
एतां रामबलोपेतां रक्षां यः सुकृति पठेत ।
पातालभूतल व्योम चारिणश्छद्मचारिणः ।
रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वा स्मरन ।
जगज्जैत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम् ।
वज्रपञ्जरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत ।
आदिष्टवान् यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हरः ।
आरामः कल्पवृक्षाणां विरामः सकलापदाम् ।
तरुणौ रूपसम्पन्नौ सुकुमारौ महाबलौ ।
फलमूलाशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ ।
शरण्यौ सर्वसत्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम् ।
आत्तसज्जधनुषाविषुस्पृशा वक्ष याशुगनिषङ्गसङ्गिनौ ।
सन्नद्धः कवची खड्गी चापबाणधरो युवा ।
रामो दाशरथी शूरो लक्ष्मणानुचरो बली ।
वेदान्तवेद्यो यज्ञेशः पुराणपुरुषोत्तमः ।
इत्येतानि जपन नित्यं मद्भक्तः श्रद्धयान्वितः ।
रामं दुर्वादलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम ।
रामं लक्ष्मणपूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुन्दरं,
रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे ।
श्रीराम राम रघुनन्दनराम राम,
श्रीराम चन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि,
माता रामो मत्पिता रामचंन्द्र: ।
दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे च जनकात्मज ।
लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथं ।
मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम ।
कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम ।
आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसम्पदाम् ।
भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसम्पदाम् ।
रामो राजमणिः सदा विजयते,
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे ।
Laxman Mishra
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