प्रयागराज में दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक आयोजन महाकुंभ मेले 2025 की तैयारियां ज़ोर-शोर से चल रही हैं। यह मेला लाखों श्रद्धालुओं के साथ-साथ नागा साधुओं का स्वागत करेगा, जो अपने रहस्यमय जीवन और अद्वितीय परंपराओं के कारण आकर्षण का केंद्र रहते हैं।
कौन हैं नागा साधु?
नागा साधु वे योद्धा-संन्यासी हैं, जो सनातन धर्म की रक्षा के लिए समर्पित रहे हैं। उनकी शुरुआत का उल्लेख प्राचीन भारतीय इतिहास में मिलता है। मोहनजोदड़ो की मुद्राओं में शिव के पाशुपतिनाथ स्वरूप की पूजा करते हुए नागा साधुओं के प्रमाण मिलते हैं।
ये साधु अपने शरीर पर भस्म लगाते हैं, जो त्याग, पवित्रता और भगवान शिव के प्रति समर्पण का प्रतीक है।
महिला नागा साधु: एक अनसुना पहलू
महाकुंभ में केवल पुरुष नागा साधु ही नहीं, बल्कि महिला नागा साधु भी हिस्सा लेती हैं। वे भी उतनी ही कठोर साधना और संयम के साथ इस पद को प्राप्त करती हैं।
- महिला नागा साधु अपने पारंपरिक वस्त्र “गंती” पहनती हैं।
- दीक्षा से पहले वे अपना “पिंडदान” करती हैं, जो उनके पुराने जीवन से पूर्णतः नाता तोड़ने का प्रतीक है।
- वे अपने गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण दिखाती हैं और 6 से 12 वर्षों तक ब्रह्मचर्य का पालन करती हैं।
महिला नागा साधु को “माता” के रूप में संबोधित किया जाता है, जो उनके सम्मान और आध्यात्मिक महत्व को दर्शाता है।
महाकुंभ में नागा साधुओं की भूमिका
महाकुंभ का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है शाही स्नान, जिसकी शुरुआत नागा साधु करते हैं।
- नागा साधु सुसज्जित रथों पर सवार होकर गंगा के घाट तक पहुंचते हैं।
- मंत्रोच्चारण और युद्ध कौशल के प्रदर्शन के साथ वे पवित्र डुबकी लगाते हैं।
- यह स्नान न केवल मेले की शुरुआत का प्रतीक है, बल्कि इसे आत्मा की शुद्धि का अवसर भी माना जाता है।
महाकुंभ 2025: रहस्य, भक्ति और परंपरा का संगम
महाकुंभ 2025 में नागा साधु एक बार फिर अपनी अनूठी परंपराओं के साथ दुनिया भर के श्रद्धालुओं को मंत्रमुग्ध करेंगे। इस मेले में आध्यात्म, त्याग और रहस्य का संगम होगा, जो हर किसी को एक बार जरूर अनुभव करना चाहिए।
महाकुंभ और अन्य प्रमुख खबरों के लिए पढ़ें Khabar Hartaraf
यह भी पढ़े: ओडिशा में 18वें प्रवासी भारतीय दिवस का उद्घाटन, पीएम मोदी बोले- ‘दुनिया आज भारत को सुनती है’