Key Highlights (मुख्य बातें):
- पीएम मोदी का पाकिस्तान को इशारों में बड़ा संदेश
- इंदस जल संधि पर फिर छिड़ी बहस
- भारत की नदियों का पानी अब भारत के लिए: पीएम मोदी
- पहलगाम आतंकी हमले के बाद बढ़ा तनाव
- 1960 की इंदस संधि पर भारत ने फिर किया विचार
भारत का पानी अब भारत के लिए बहेगा’
नई दिल्ली में एक कार्यक्रम के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जल संसाधनों को लेकर एक बड़ा और साफ़ संदेश दिया। उन्होंने कहा कि “जो पानी पहले भारत से बाहर बहता था, वह अब भारत की सेवा करेगा।” भले ही उन्होंने किसी देश का नाम न लिया हो, लेकिन स्पष्ट है कि उनका इशारा पाकिस्तान की ओर था। विशेष रूप से इंदस जल संधि की तरफ़, जो वर्षों से भारत और पाकिस्तान के बीच पानी बंटवारे का आधार रही है।
1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता से एक ऐतिहासिक संधि हुई थी। इंदस वाटर ट्रीटी। इसके तहत भारत को ब्यास, रावी और सतलज नदियों का उपयोग मिला, जबकि सिंधु, झेलम और चेनाब पाकिस्तान को दिए गए। पर वर्षों से यह सवाल उठता रहा है कि क्या भारत इस संधि में अकारण उदार रहा?
पीएम मोदी का संकल्प: अब पानी नहीं जाएगा बाहर
अपने अनुभव साझा करते हुए पीएम मोदी ने कहा, “हमारे देश का पानी जो पहले बहकर किसी और की धरती को सींचता था, वह अब हमारे किसानों के काम आएगा, हमारे उद्योगों को आगे बढ़ाएगा और हमारे देश की सेवा करेगा।”
उनकी यह टिप्पणी ऐसे समय आई है जब 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले में 26 लोगों की जान चली गई। जिनमें से अधिकांश पर्यटक थे। इस घटना के बाद भारत ने कई सख्त कदम उठाए हैं, जिनमें इंदस जल संधि को पुनर्विचार के लिए स्थगित करना भी शामिल है।
पाकिस्तान पर रणनीतिक दबाव
पाकिस्तान पहले ही चेतावनी दे चुका है कि यदि भारत ने पानी रोका, तो यह युद्ध का कारण बन सकता है। लेकिन भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि वह अब अपने राष्ट्रीय हितों से समझौता नहीं करेगा। इस बयान के बाद पाकिस्तान की स्थिति और असहज हो गई है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि यह न केवल पाकिस्तान पर दबाव की रणनीति है, बल्कि एक दीर्घकालिक जल नीति का संकेत भी है जिसमें भारत अपने जल संसाधनों का अधिकतम और न्यायसंगत उपयोग करना चाहता है।
आम जनता के लिए क्या मायने रखता है यह फैसला?
- किसानों के लिए राहत: अब उन्हें खेती के लिए और अधिक पानी उपलब्ध हो सकता है।
- जल संरक्षण में सुधार: यदि भारत अपने पानी को सीमाओं में रोकता है, तो जलप्रबंधन और संरचना में सुधार संभव है।
- रणनीतिक स्वतंत्रता: जल संसाधनों को रणनीतिक दृष्टि से नियंत्रित करना भारत की सुरक्षा नीति का हिस्सा बन रहा है।
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