मुख्य बिंदु:
- ईरान के विदेश मंत्री सेय्यद अब्बास अराघची 7-8 मई को भारत दौरे पर हैं।
- वे राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और विदेश मंत्री एस. जयशंकर से मुलाकात करेंगे।
- भारत-ईरान संयुक्त आयोग की बैठक में व्यापार, चाबहार बंदरगाह और क्षेत्रीय सुरक्षा पर चर्चा होगी।
- अराघची ने हाल ही में भारत-पाकिस्तान तनाव को कम करने के लिए मध्यस्थता की पेशकश की थी।
ईरान के विदेश मंत्री अराघची की भारत यात्रा: क्षेत्रीय कूटनीति में नया अध्याय
ईरान के विदेश मंत्री सेय्यद अब्बास अराघची 7-8 मई को भारत की आधिकारिक यात्रा पर हैं। इस दौरान वे राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और विदेश मंत्री एस. जयशंकर से मुलाकात करेंगे। यह यात्रा ऐसे समय में हो रही है जब भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ा हुआ है, विशेषकर 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद, जिसमें 26 लोगों की जान गई थी।
अराघची और जयशंकर भारत-ईरान संयुक्त आयोग की बैठक की सह-अध्यक्षता करेंगे। यह बैठक दिसंबर 2019 के बाद पहली बार हो रही है। बैठक में चाबहार बंदरगाह परियोजना, व्यापार भुगतान व्यवस्था और अमेरिकी प्रतिबंधों के बीच आर्थिक सहयोग के रास्ते तलाशने पर चर्चा होगी।
भारत-पाकिस्तान तनाव में ईरान की मध्यस्थता की पेशकश
इस यात्रा से पहले अराघची ने पाकिस्तान का दौरा किया, जहां उन्होंने प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर से मुलाकात की। उन्होंने भारत और पाकिस्तान से संयम बरतने और तनाव कम करने की अपील की। अराघची ने दोनों देशों को “भाईचारे वाले पड़ोसी” बताया और ईरान की ओर से मध्यस्थता की पेशकश की।
चाबहार बंदरगाह: भारत-ईरान सहयोग का केंद्र
चाबहार बंदरगाह परियोजना भारत और ईरान के बीच रणनीतिक सहयोग का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। मई 2024 में दोनों देशों ने इस परियोजना के विकास के लिए 10 साल का समझौता किया था। यह बंदरगाह भारत को अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुंच प्रदान करता है, जो चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का एक विकल्प है।
अराघची की भारत यात्रा न केवल द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने का अवसर है, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता के लिए कूटनीतिक प्रयासों का भी हिस्सा है। ईरान की मध्यस्थता की पेशकश और भारत के साथ आर्थिक सहयोग बढ़ाने की पहल से यह स्पष्ट है कि तेहरान दक्षिण एशिया में शांति और विकास के लिए सक्रिय भूमिका निभाना चाहता है।
ईरान के विदेश मंत्री अराघची की भारत यात्रा कई मायनों में महत्वपूर्ण है। यह न केवल भारत-ईरान संबंधों को नई दिशा देने का अवसर है, बल्कि क्षेत्रीय कूटनीति में भी एक नया अध्याय जोड़ सकती है। आने वाले दिनों में इस यात्रा के प्रभाव और परिणामों पर नजर रखना जरूरी होगा।
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