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कश्मीर की टूटी शांति पर बोले रिजिजू: क्या फिर लौटेगा डर का दौर?

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Key Highlights:

  • किरण रिजिजू ने कहा कि वर्षों की शांति के बाद कश्मीर घाटी की शांति को झटका लगा है
  • सभी राजनीतिक दलों ने एकजुट होकर आतंकवाद के खिलाफ लड़ने पर सहमति जताई
  • पहलगाम आतंकी हमले पर सर्वदलीय बैठक में सर्वसम्मति से सरकार के साथ खड़े रहने की बात
  • घाटी में हालिया हमले ने आम नागरिकों में फिर से असुरक्षा की भावना पैदा कर दी है

कश्मीर की शांति पर फिर मंडराया खतरा: रिजिजू बोले – वर्षों बाद टूटी शांति की डोर

आतंकियों के हमले ने पहलगाम की फिजाओं को दहला दिया, सरकार और विपक्ष ने एक सुर में की आतंकवाद की निंदा

कश्मीर घाटी वर्षों बाद जब थोड़ी राहत की सांस ले रही थी, तब एक आतंकी हमले ने उस शांति की फिजा को एक बार फिर खून से रंग दिया। यह हमला न केवल निर्दोषों की जान लेने वाला साबित हुआ, बल्कि घाटी में बनी वह शांति भी टूट गई, जिसकी नींव लंबे संघर्ष और संवाद से रखी गई थी।

इस आतंकी हमले को लेकर केंद्रीय मंत्री किरण रिजिजू ने कहा, “कश्मीर में बीते कुछ वर्षों से हालात शांतिपूर्ण बने हुए थे, लेकिन इस हमले ने उस भरोसे को तोड़ दिया है। घाटी के लोग अब फिर से असुरक्षा महसूस कर रहे हैं।” उन्होंने यह बयान उस सर्वदलीय बैठक के बाद दिया, जिसमें सभी राजनीतिक दलों ने एकजुट होकर आतंकवाद के खिलाफ खड़े रहने की बात कही।

आतंक के खिलाफ एक सुर में बोले सभी दल:

रिजिजू ने जानकारी दी कि यह बैठक रचनात्मक रही और इसमें विपक्ष तथा सरकार के बीच किसी तरह का मतभेद नहीं दिखा। सभी राजनीतिक दलों ने स्पष्ट किया कि कश्मीर में शांति बहाल रखना केवल सरकार की नहीं, बल्कि पूरे देश की जिम्मेदारी है।

उनके अनुसार, “हम सभी को एक साथ खड़े होकर आतंकवाद का डटकर सामना करना होगा। यह वक्त राजनीति से ऊपर उठकर देशहित में काम करने का है।”

पहलगाम पर हमला: घाटी में फैला डर का साया

हाल ही में पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने घाटी में दहशत का माहौल पैदा कर दिया है। जहां एक ओर पर्यटक धीरे-धीरे लौट रहे थे, वहीं दूसरी ओर इस हमले ने पर्यटन को भी प्रभावित किया है। स्थानीय लोगों में डर है कि कहीं फिर से वह दौर न लौट आए जब रोज़मर्रा की जिंदगी गोलियों की आवाज़ से गूंजती थी।

इस घटनाक्रम ने केंद्र और राज्य प्रशासन को एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि शांति बनाए रखने के लिए केवल सैन्य ताकत ही नहीं, बल्कि जनता के विश्वास को जीतना भी उतना ही ज़रूरी है। क्योंकि जब एक आम कश्मीरी खुद को सुरक्षित महसूस करेगा, तभी घाटी में स्थायी शांति संभव होगी।

विशेषज्ञों की राय:

  • सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि आतंकियों की यह रणनीति घाटी में डर फैलाने की है, ताकि सामान्य जीवन बाधित हो।
  • राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि इस हमले के बाद सरकार को एक बार फिर शांति बहाली के लिए सामरिक रणनीति के साथ-साथ सामाजिक जुड़ाव को भी प्राथमिकता देनी होगी।

कश्मीर की फिजाओं में पसरी यह नयी बेचैनी सरकार, विपक्ष और आम नागरिक—सभी के लिए एक चेतावनी है कि शांति कोई स्थायी गारंटी नहीं, बल्कि उसे रोज़ बनाना पड़ता है। आतंकवाद के खिलाफ सिर्फ हथियार नहीं, बल्कि एकजुटता ही सबसे बड़ा हथियार है।

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Shubham

शुभम झोपे एक प्रतिष्ठित लेखक हैं जो "ख़बर हरतरफ़" के लिए नियमित रूप से लेख लिखते हैं। उनकी लेखनी में समकालीन मुद्दों पर गहन विश्लेषण और सूक्ष्म दृष्टिकोण देखने को मिलता है। शुभम की लेखन शैली सहज और आकर्षक है, जो पाठकों को उनके विचारों से जोड़ देती है। शेयर बाजार, उद्यमिता और व्यापार में और सांस्कृतिक विषयों पर उनकी लेखनी विशेष रूप से सराही जाती है।

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