KEY HIGHLIGHTS:
- सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक ‘अबीर गुलाल’ भारत में रिलीज नहीं होगी
- फिल्म में पाकिस्तानी अभिनेता फवाद खान की मुख्य भूमिका है
- भारत-पाकिस्तान संबंधों को देखते हुए लिया गया फैसला
- फिल्म की रिलीज पर उठे गंभीर सवाल
क्या फवाद खान की फिल्म ‘अबीर गुलाल’ भारत में कभी रिलीज होगी?
फिल्म के रिलीज पर केंद्र सरकार का रुख सख्त, दर्शकों के बीच उठे सवाल – क्या बॉर्डर के पार की कला भी राजनीति की भेंट चढ़ेगी?
भारत और पाकिस्तान के बीच के राजनीतिक संबंध सिर्फ कूटनीति तक सीमित नहीं रहते, बल्कि इसका असर कला, संस्कृति और खासकर फिल्मों की दुनिया में भी गहराई से महसूस होता है। इसी की ताज़ा मिसाल बनकर सामने आई है पाकिस्तानी एक्टर फवाद खान की फिल्म ‘अबीर गुलाल’, जिसकी भारत में रिलीज पर अब बड़ा सवालिया निशान लग चुका है।
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के सूत्रों ने साफ कर दिया है कि यह फिल्म भारत में रिलीज की अनुमति नहीं पाएगी। यह खबर सामने आने के बाद सोशल मीडिया से लेकर फिल्म इंडस्ट्री तक चर्चा का विषय बनी हुई है – क्या सिनेमा की सीमा भी अब राजनीति तय करेगी?
फवाद खान और भारतीय दर्शकों का पुराना रिश्ता
फवाद खान को भारत में एक समय पर बेहद पसंद किया गया था। ‘कपूर एंड सन्स’ और ‘खूबसूरत’ जैसी फिल्मों में उनके अभिनय को दर्शकों ने सराहा। लेकिन उरी अटैक (2016) के बाद भारत में पाकिस्तानी कलाकारों पर अनौपचारिक प्रतिबंध लगाया गया, जिसने दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान को ठप कर दिया।
‘अबीर गुलाल’ क्यों है विवादों में?
सूत्रों के मुताबिक, ‘अबीर गुलाल’ सिर्फ एक फिल्म नहीं है, बल्कि इसमें शामिल पाकिस्तानी कलाकारों की मौजूदगी, और भारत में मौजूदा राजनीतिक भावनाओं को देखते हुए इसकी रिलीज को संवेदनशील मुद्दा माना गया है। I&B मंत्रालय की तरफ से भले ही औपचारिक रूप से कोई विस्तृत बयान न आया हो, लेकिन मौजूदा संकेत यही बताते हैं कि फिल्म को भारत में रिलीज की अनुमति नहीं दी जाएगी।
यह सवाल अक्सर उठता रहा है कि क्या कला को राजनीतिक सीमाओं में बांधना चाहिए? फवाद खान जैसे कलाकार, जिन्होंने भारतीय दर्शकों के दिल में जगह बनाई, अब उन्हीं दर्शकों तक अपनी कला नहीं पहुँचा पाएंगे, सिर्फ इसलिए क्योंकि वो किसी “अनुचित देश” से हैं?
सोशल मीडिया पर इस खबर को लेकर मिश्रित प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं। कुछ लोग सरकार के इस कदम को देश की सुरक्षा और नीतियों के अनुरूप मानते हैं, वहीं कई लोग इसे रचनात्मक आज़ादी पर हमला बता रहे हैं।
भारत की फिल्म इंडस्ट्री पहले ही कई मुद्दों से जूझ रही है – चाहे वो बॉयकॉट कल्चर हो, सेंसरशिप का सवाल हो या डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर बढ़ता नियंत्रण। ऐसे में यह निर्णय भविष्य में अंतरराष्ट्रीय सहयोग को और भी सीमित कर सकता है।
यह भी पढ़े: PM Modi का भावुक संदेश: “दो मिनट का मौन रखिए” पहलगाम हमले में जान गंवाने वालों को श्रद्धांजलि