Shri Shiv Stuti Lyrics | शिवस्तुति | भगवान शंकर की शिव स्तुति हिंदी अर्थ सहित

Shri Shiv Stuti Lyrics
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शिव स्तुति का महत्व अत्यंत उच्च है। इसे न केवल हिंदू धर्म में, बल्कि विश्वभर के धार्मिक परंपराओं में भी महत्वपूर्ण माना जाता है। यह एक आध्यात्मिक प्रवृत्ति है जो हमें भगवान शिव की उच्चतम गुणों की प्रशंसा करने के लिए प्रेरित करती है। शिव स्तुति के महत्व के कुछ मुख्य पहलुओं को निम्नलिखित रूप में समझा जा सकता है:

आत्म-समर्पण: शिव स्तुति करने से हम अपने मन, वचन, और कर्मों को भगवान शिव के चरणों में समर्पित करते हैं। इससे हमारा आत्मिक विकास होता है और हम दैवीय संयोग को प्राप्त करते हैं।

मानसिक शांति: शिव स्तुति का अभ्यास करने से हमारा मन शांत होता है और हम अंतरंग शांति का अनुभव करते हैं। यह हमें जीवन की चुनौतियों का सामना करने में मदद करता है।

कल्याण और सुख: शिव स्तुति का अभ्यास करने से हमें कल्याण और सुख की प्राप्ति होती है। भगवान शिव हमें आध्यात्मिक और भौतिक सुख का साधन करने में मदद करते हैं।

कर्मों की सफलता: शिव स्तुति का अभ्यास करने से हमारे कर्मों की सफलता में वृद्धि होती है। यह हमें सही दिशा में चलने के लिए प्रेरित करता है और हमारे उद्देश्यों को प्राप्त करने में सहायक होता है।

इस प्रकार, शिव स्तुति का महत्व जीवन को संतुलित और आनंदमय बनाने में अत्यधिक है। यह हमें आध्यात्मिक साधना के लिए प्रेरित करता है और हमारे जीवन को उच्चतम आदर्शों की दिशा में ले जाता है।

आशुतोष शशांक शेखर | Ashutosh Shashank Shekhar Shiv Stuti

आशुतोष शशाँक शेखर,
चन्द्र मौली चिदंबरा,
कोटि कोटि प्रणाम शम्भू,
कोटि नमन दिगम्बरा !!
¡¡ निर्विकार ओमकार अविनाशी,
तुम्ही देवाधि देव,
जगत सर्जक प्रलय करता,
शिवम सत्यम सुंदरा !!
¡¡ निरंकार स्वरूप कालेश्वर,
महा योगीश्वरा,
दयानिधि दानिश्वर जय,
जटाधार अभयंकरा !!
¡¡ शूल पानी त्रिशूल धारी,
औगड़ी बाघम्बरी,
जय महेश त्रिलोचनाय,
विश्वनाथ विशम्भरा !!
¡¡ नाथ नागेश्वर हरो हर,
पाप साप अभिशाप तम,
महादेव महान भोले,
सदा शिव शिव संकरा !!
¡¡ जगत पति अनुरकती भक्ति,
सदैव तेरे चरण हो,
क्षमा हो अपराध सब,
जय जयति जगदीश्वरा !!
¡¡ जनम जीवन जगत का,
संताप ताप मिटे सभी,
ओम नमः शिवाय मन,
जपता रहे पञ्चाक्षरा !!
¡¡ आशुतोष शशाँक शेखर,
चन्द्र मौली चिदंबरा,
कोटि कोटि प्रणाम शम्भू,
कोटि नमन दिगम्बरा !!
कोटि नमन दिगम्बरा..
कोटि नमन दिगम्बरा..

शिव स्तुति के लाभ: 

शिव स्तुति का अभ्यास करने से अनेक लाभ होते हैं, जो आत्मा के विकास और आत्मिक शक्ति को महसूस करने में मदद करते हैं। यहाँ शिव स्तुति के कुछ महत्वपूर्ण लाभ दिए जा रहे हैं:

  1. मानसिक शांति: शिव स्तुति का अभ्यास करने से मन की चंचलता कम होती है और आत्मा की शांति का अनुभव होता है। यह हमें स्थिर और शांत जीवन जीने में मदद करता है।
  2. आत्मिक विकास: शिव स्तुति के माध्यम से हम आत्मा के गहरे संवाद में आ सकते हैं और अपने आत्मिक विकास का मार्ग ढूंढ सकते हैं।
  3. कर्मयोगी जीवन: शिव स्तुति का अभ्यास करने से हमें कर्मयोगी जीवन जीने की सीख मिलती है। हम निष्काम कर्म करते हुए आत्मा के समर्पण में बने रहते हैं।
  4. आत्म-समर्पण: शिव स्तुति करने से हम अपने आत्मा को भगवान शिव के समर्पित करते हैं, जो हमें आत्मिक समृद्धि और सम्पूर्णता की अनुभूति देता है।
  5. आत्मज्ञान: शिव स्तुति के माध्यम से हम आत्मज्ञान का अध्ययन करते हैं और अपने जीवन को आध्यात्मिक दृष्टि से समझते हैं।
  6. संतोष और समृद्धि: शिव स्तुति का अभ्यास करने से हमें संतोष और समृद्धि की प्राप्ति होती है। भगवान शिव की कृपा से हमें आनंद और समृद्धि का अनुभव होता है।

इस प्रकार, शिव स्तुति का अभ्यास करने से हमें आत्मा के उच्चतम स्थानों की प्राप्ति होती है और हम आत्मा के साथ मिलकर उच्च आदर्शों की प्राप्ति के लिए प्रयासरत रहते हैं।

शिव स्तुति का अभ्यास करने के कुछ उपाय निम्नलिखित हैं:

  1. मंत्र जाप: भगवान शिव के मंत्रों का नियमित जाप करने से हम उनकी कृपा प्राप्त कर सकते हैं। “ॐ नमः शिवाय” और “ॐ नमः शिवाय” जैसे मंत्रों का जाप करने से हम आत्मिक शक्ति का अनुभव करते हैं।
  2. पूजा-अर्चना: नियमित रूप से भगवान शिव की पूजा और अर्चना करने से हम उनके आसन पर बैठने का अवसर प्राप्त करते हैं। इससे हमें आत्मा के समर्पण में सुख मिलता है।
  3. ध्यान और ध्यान योग: शिव स्तुति के द्वारा हम ध्यान और ध्यान योग का अभ्यास कर सकते हैं। यह हमें मानसिक शांति प्रदान करता है और आत्मा के समृद्धि के मार्ग पर ले जाता है।
  4. भजन-कीर्तन: भगवान शिव के भजन और कीर्तन करने से हम उनकी महिमा का गान करते हैं और आत्मा के सम्पूर्णता की ओर बढ़ते हैं।
  5. साधना: शिव स्तुति के माध्यम से हम साधना का अभ्यास कर सकते हैं और अपने आत्मा को ऊँचाईयों तक ले जा सकते हैं। यह हमें आध्यात्मिक समृद्धि की प्राप्ति में सहायक होता है।

इन उपायों का नियमित अभ्यास करके हम भगवान शिव के निकटता में आत्मा को समर्पित कर सकते हैं और आत्मिक शक्ति को महसूस कर सकते हैं।

आशुतोष शशांक शेखर शिव स्तुति अर्थ:

“आशुतोष” शब्द का अर्थ है “जल्दी प्रसन्न होनेवाला” या “तुरंत खुश होनेवाला”। भगवान शिव को “आशुतोष” कहा जाता है क्योंकि वे अपने भक्तों को तुरंत प्रसन्न करने वाले होते हैं और उनकी पूजा-अर्चना को तत्परता से स्वीकार करते हैं।

“शशांक” का अर्थ है “चंद्रमा”। इससे भगवान शिव की शोभा और उनकी महिमा का संबोधन किया जाता है। भगवान शिव को “शशांक” कहा जाता है क्योंकि उनका मुख सुंदरता से शोभायमान होता है और उनकी दिव्यता का चांद्रमा के समान चमकता है।

“शेखर” का अर्थ है “शिखर” या “श्रेष्ठ”। भगवान शिव को “शेखर” कहा जाता है क्योंकि वे सर्वोत्तम और उच्चतम हैं, जिनके ऊपर सबकुछ स्थित है।

“शिव स्तुति” का अर्थ है “भगवान शिव की प्रशंसा”। इस शब्द का अर्थ है भगवान शिव के गुणों, महिमा, और उनके आध्यात्मिक आयामों की प्रशंसा करना और उनकी उपासना करना। शिव स्तुति भगवान शिव के आदर्शों की राहगीर है और उनके भक्तों के द्वारा उन्हें प्रशंसा की जाती है।

शिव स्तुति कब पढ़ना है?

शिव स्तुति का पाठ करने का समय और स्थान ध्यान और आध्यात्मिक विशेषज्ञों द्वारा निर्धारित किया जाता है। यहां कुछ सामान्य दिशानिर्देश दिए जा रहे हैं:

  1. प्रातः काल: भगवान शिव की स्तुति का पाठ सुबह के समय किया जाता है, जब मन और शरीर निर्मल और शांत होते हैं। यह आत्मिक शक्ति और सामर्थ्य को बढ़ावा देता है।
  2. सायं समय: भगवान शिव की स्तुति का पाठ शाम के समय किया जाता है, जब दिन की गतिविधियों के बाद मन शांत होता है और आत्मा की समीपता महसूस होती है।
  3. शिवरात्रि: यह हिंदू परंपराओं में भगवान शिव को पूजने का एक प्रमुख दिन है। इस दिन भगवान शिव की स्तुति का पाठ विशेष भावना के साथ किया जाता है।
  4. रुद्राभिषेक: रुद्राभिषेक के समय भगवान शिव की स्तुति का पाठ भी किया जाता है। यह एक प्रमुख आध्यात्मिक अनुष्ठान है जो भगवान शिव के आध्यात्मिक गुणों को प्रस्तुत करता है।

इसके अलावा, भगवान शिव की स्तुति का पाठ किसी भी समय और किसी भी स्थान पर किया जा सकता है, यदि आपके मन में उनके प्रति श्रद्धा और भक्ति हो। यह मुख्य रूप से आपके आध्यात्मिक भावनाओं और समय के अनुसार निर्धारित होता है।

शिव स्तुति के अवसर

शिव की स्तुति को विभिन्न अवसरों पर किया जाता है:

  1. महाशिवरात्रि: यह शिव की पूजा का प्रमुख त्योहार है, जिसमें शिव की स्तुति और आराधना की जाती है।
  2. सोमवार: सोमवार को शिव का दिन माना जाता है, जिसमें शिव की विशेष पूजा और स्तुति की जाती है।
  3. श्रावण मास: श्रावण मास में शिव की विशेष पूजा और स्तुति की जाती है, जिससे भक्तों को शिव की कृपा प्राप्त होती है।

शिव की लीलाएं और कथाएं

शिव की लीलाएं और कथाएं भारतीय पौराणिक कथाओं का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। इन कथाओं में शिव की विभिन्न लीलाओं का वर्णन है, जो भक्तों को उनके विविध रूपों और शक्तियों का अनुभव कराते हैं।

1. शिव और सती:

सती भगवान शिव की पहली पत्नी थीं। उनके पिता दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें शिव को आमंत्रित नहीं किया गया था। सती ने यज्ञ में जाने का निर्णय लिया, लेकिन वहां उन्हें अपमान सहना पड़ा। इस अपमान से आहत होकर सती ने यज्ञ कुंड में कूदकर अपनी जान दे दी। यह घटना शिव के क्रोध का कारण बनी और उन्होंने तांडव नृत्य किया, जिससे ब्रह्मांड में हाहाकार मच गया।

2. शिव और पार्वती:

सती की मृत्यु के बाद, पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार किया। पार्वती और शिव का विवाह एक महान आध्यात्मिक और सांस्कृतिक घटना थी, जिससे दोनों की जोड़ी को ‘अर्धनारीश्वर’ के रूप में पूजा जाता है।

3. गंगा का पृथ्वी पर अवतरण:

गंगा नदी का अवतरण शिव की कृपा से हुआ था। राजा भगीरथ ने गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर गंगा ने पृथ्वी पर अवतरण का वचन दिया, लेकिन उनके वेग को नियंत्रित करने के लिए शिव ने गंगा को अपनी जटाओं में समाहित कर लिया और धीरे-धीरे उन्हें पृथ्वी पर प्रवाहित किया।

शिव स्तुति के धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

शिव स्तुति का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व अत्यधिक है। हिन्दू धर्म में शिव को संहारक, संरक्षक, और सृजनकर्ता के रूप में पूजा जाता है। शिव की स्तुति से भक्तों को आध्यात्मिक शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। शिव की पूजा में उनकी महिमा का गुणगान किया जाता है और उन्हें समर्पण, भक्ति, और आस्था के साथ पूजा जाता है।

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