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सम्पूर्ण आदित्य हृदय स्तोत्र | Aditya Hridaya Stotram Hindi

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आज हम एक ऐसे प्रमुख और महत्वपूर्ण स्तोत्र के बारे में चर्चा करेंगे जो हमें सूर्य की शक्ति से संतुष्टि और साहस देता है – “आदित्य हृदय स्तोत्र”।

आदित्य हृदय स्तोत्र रामायण के युद्ध कांड में महर्षि अगस्त्य और भगवान राम के बीच हुआ एक महत्वपूर्ण संवाद है। इस स्तोत्र का पाठ करने से सूर्य देवता की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में ऊर्जा, शक्ति, धैर्य, और साहस आता है।

आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ कैसे करें:

  1. सबसे पहले अपने मन को शांत करें और गायत्री मंत्र का जप करें।
  2. फिर स्तोत्र का पाठ शुरू करें। इसे सच्चे मन से और भक्ति भाव से पढ़ें।
  3. स्तोत्र के पाठ के बाद सूर्य देव का ध्यान करें और उनकी कृपा का अनुभव करें।
  4. अंत में, स्तोत्र की महिमा को समझें और इसे नियमित रूप से पाठ करने का संकल्प लें।

आदित्य हृदय स्तोत्र | Aditya Hridaya Stotram Hindi

ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम् ।
रावणं चाग्रतो दृष्टवा युद्धाय समुपस्थितम् ॥1॥

दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम् ।
उपगम्याब्रवीद् राममगरत्यो भगवांस्तदा ॥2॥

राम राम महाबाहो श्रृणु गुह्यं सनातनम् ।
येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसे ॥3॥

आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम् ।
जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम् ॥4॥

सर्वमंगलमांगल्यं सर्वपापप्रणाशनम् ।
चिन्ताशोकप्रशमनमायुर्वधैनमुत्तमम् ॥5॥

रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम् ।
पूजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम् ॥6॥

सर्वदेवतामको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावनः ।
एष देवासुरगणाँल्लोकान् पाति गभस्तिभिः ॥7॥

एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिवः स्कन्दः प्रजापतिः ।
महेन्द्रो धनदः कालो यमः सोमो ह्यपां पतिः ॥8॥

पितरो वसवः साध्या अश्विनौ मरुतो मनुः ।
वायुर्वन्हिः प्रजाः प्राण ऋतुकर्ता प्रभाकरः ॥9॥

आदित्यः सविता सूर्यः खगः पूषा गर्भास्तिमान् ।
सुवर्णसदृशो भानुहिरण्यरेता दिवाकरः ॥10॥

हरिदश्वः सहस्रार्चिः सप्तसप्तिर्मरीचिमान् ।
तिमिरोन्मथनः शम्भूस्त्ष्टा मार्तण्डकोंऽशुमान् ॥11॥

हिरण्यगर्भः शिशिरस्तपनोऽहरकरो रविः ।
अग्निगर्भोऽदितेः पुत्रः शंखः शिशिरनाशनः ॥12॥

व्योमनाथस्तमोभेदी ऋम्यजुःसामपारगः ।
घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवंगमः ॥13॥

आतपी मण्डली मृत्युः पिंगलः सर्वतापनः ।
कविर्विश्वो महातेजा रक्तः सर्वभवोदभवः ॥14॥

नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावनः ।
तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन् नमोऽस्तु ते ॥15॥

नमः पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नमः ।
ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नमः ॥16॥

जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नमः ।
नमो नमः सहस्रांशो आदित्याय नमो नमः ॥17॥

नम उग्राय वीराय सारंगाय नमो नमः ।
नमः पद्मप्रबोधाय प्रचण्डाय नमोऽस्तु ते ॥18॥

ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सूरायदित्यवर्चसे ।
भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नमः ॥19॥

तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने ।
कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नमः ॥20॥

तप्तचामीकराभाय हस्ये विश्वकर्मणे ।
नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे ॥21॥

नाशयत्येष वै भूतं तमेव सृजति प्रभुः ।
पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभिः ॥22॥

एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठितः ।
एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम् ॥23 ॥

देवाश्च क्रतवश्चैव क्रतूनां फलमेव च ।
यानि कृत्यानि लोकेषु सर्वेषु परमप्रभुः ॥24॥

एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च ।
कीर्तयन् पुरुषः कश्चिन्नावसीदति राघव ॥25॥

पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगत्पतिम् ।
एतत् त्रिगुणितं जप्तवा युद्धेषु विजयिष्ति ॥26॥

अस्मिन् क्षणे महाबाहो रावणं त्वं जहिष्यसि ।
एवमुक्त्वा ततोऽगस्त्यो जगाम स यथागतम् ॥27॥

एतच्छ्रुत्वा महातेजा, नष्टशोकोऽभवत् तदा ।
धारयामास सुप्रीतो राघवः प्रयतात्मवान् ॥28॥

आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्तवान् ।
त्रिराचम्य शुचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान् ॥29॥

रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा जयार्थे समुपागमत् ।
सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेऽभवत् ॥30॥

अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितनाः परमं प्रहृष्यमाणः ।
निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति ॥31 ॥

आदित्य हृदय स्तोत्र कब करना चाहिए?

आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ निर्धारित समय या परिस्थिति के बजाय, अपनी आवश्यकताओं और अनुसार्ध के अनुसार किया जा सकता है। यह स्तोत्र अन्य स्तोत्रों की तरह नियमित रूप से भी पाठ किया जा सकता है या यदि कोई विशेष समस्या हो तो उस समस्या का समाधान करने के लिए किया जा सकता है।

कुछ विशेष स्थितियों में आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ किया जा सकता है:

  1. सूर्योदय के समय: सूर्योदय के समय में आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करने से बहुत अधिक लाभ होता है।
  2. पर्व या विशेष दिनों पर: कुछ लोग आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ सूर्याष्टमी, नवरात्रि आदि पर्वों के दिन करते हैं।
  3. रोगनिवारण के लिए: अगर कोई व्यक्ति बीमार है या उसे किसी रोग से पीड़िती है, तो उसे आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ उस रोग के निवारण के लिए किया जा सकता है।
  4. दिन की शुरुआत में: कुछ लोग अपने दिन की शुरुआत में आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करते हैं ताकि उन्हें ऊर्जा और सकारात्मकता मिले।
  5. विशेष समस्याओं के लिए: यदि किसी व्यक्ति को किसी विशेष समस्या का सामना करना हो, जैसे कोई संकट, टेंशन, या दुःख, तो उसे आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करने से उसे आत्म-शांति मिलती है।

संक्षेप में कहें तो, आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ आपकी आवश्यकताओं, समय, और संदर्भ के अनुसार किया जा सकता है।

आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ क्यों किया जाता है?

आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ कई कारणों से किया जाता है। यह स्तोत्र सूर्य देव की महिमा और शक्ति को याद करने के लिए पाठ किया जाता है। इसके अलावा, इसे अनेक समस्याओं का समाधान करने के लिए भी किया जाता है। कुछ मुख्य कारणों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  1. ऊर्जा और शक्ति के लिए: आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति को ऊर्जा, शक्ति, और धैर्य मिलता है।
  2. बुराईयों का नाश: इस स्तोत्र के पाठ से बुराईयों और नकारात्मकता का नाश होता है।
  3. सौभाग्य और सफलता के लिए: यह स्तोत्र सौभाग्य और सफलता की प्राप्ति के लिए भी प्रयोग किया जाता है।
  4. आध्यात्मिक उन्नति के लिए: आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करने से आध्यात्मिक उन्नति होती है और व्यक्ति का मानसिक स्थिति मजबूत होता है।
  5. रोगनिवारण के लिए: कई लोग इस स्तोत्र का पाठ करते हैं ताकि उन्हें रोगों से मुक्ति मिले और शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार हो।

इस प्रकार, आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ विभिन्न कारणों से किया जाता है और लोग इसे नियमित रूप से पाठ करके अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने का प्रयास करते हैं।

आदित्य हृदय स्तोत्र के लाभ:

  1. यह स्तोत्र शारीरिक, मानसिक, और आध्यात्मिक रूप से संतुष्टि और समृद्धि लाता है।
  2. इसके पाठ से दिल में शांति और ऊर्जा का अनुभव होता है।
  3. सूर्य देव की कृपा से बुराईयों से लड़ने की शक्ति मिलती है और जीवन में सफलता प्राप्त होती है।
  4. इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से रोगों से मुक्ति मिलती है और शरीर में ऊर्जा का संचार होता है।

आदित्य हृदय स्तोत्र के पाठ से हम अपने जीवन को सकारात्मक दिशा में ले जा सकते हैं और सूर्य की शक्ति का आभास कर सकते हैं। इसलिए, यह स्तोत्र हमारे जीवन में ऊर्जा, शक्ति, और समृद्धि की ओर एक महत्वपूर्ण कदम है।

आप सभी से निवेदन है कि इस स्तोत्र का नियमित रूप से पाठ करें और इसके लाभों को अपने जीवन में महसूस करें। सूर्य देव की कृपा सदा आपके साथ रहे।

आदित्य हृदय स्तोत्र किसने लिखा था?

आदित्य हृदय स्तोत्र का श्रेय ऋषि अगस्त्य को जाता है, जिन्होंने इसे भगवान राम को युद्ध के वक्त पढ़ाया था। यह स्तोत्र रामायण के युद्ध कांड में आता है और युद्ध के पहले अगस्त्य ऋषि ने इसे भगवान राम को सिखाया था। इस स्तोत्र में सूर्य देव की महिमा और शक्ति का वर्णन किया गया है, जो कि राम को युद्ध के लिए ऊर्जावान बनाने के लिए किया गया था। इसलिए, आदित्य हृदय स्तोत्र को ऋषि अगस्त्य द्वारा लिखा गया था।

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Laxman Mishra

पंडित लक्ष्मण मिश्रा एक अनुभवी ज्योतिषाचार्य हैं, जो वैदिक ज्योतिष, कुंडली विश्लेषण, विवाह योग, धन योग और वास्तु शास्त्र में विशेषज्ञता रखते हैं। उनकी सटीक भविष्यवाणियाँ और उपाय अनगिनत लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव ला चुके हैं। वे ज्योतिष को तार्किक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से प्रस्तुत कर, लोगों को सही मार्गदर्शन प्रदान करने में विश्वास रखते हैं। अगर आप अपने जीवन से जुड़ी किसी समस्या का समाधान चाहते हैं, तो पंडित लक्ष्मण मिश्रा से परामर्श अवश्य लें।

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