मुख्य बिंदु:
- चैत्र नवरात्रि का आयोजन वसंत ऋतु में होता है और यह हिन्दू नव वर्ष की शुरुआत का प्रतीक है।
- यह पर्व देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा के लिए समर्पित है, जो आध्यात्मिक उन्नति और मोक्ष की ओर मार्गदर्शन करता है।
- पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी दुर्गा ने महिषासुर का वध कर धर्म की स्थापना की थी, जिसे इस नवरात्रि में स्मरण किया जाता है।
चैत्र नवरात्रि का महत्व:
चैत्र नवरात्रि हिन्दू पंचांग के अनुसार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक मनाया जाने वाला नौ दिवसीय पर्व है। यह वसंत ऋतु की आगमन का सूचक है और इसी समय हिन्दू नव वर्ष की शुरुआत भी होती है। इस दौरान, भक्तगण देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा-अर्चना करते हैं, जो आध्यात्मिक शक्ति, ज्ञान और मोक्ष की प्राप्ति में सहायक माने जाते हैं।
चैत्र नवरात्रि की पौराणिक कथा:
पौराणिक कथाओं के अनुसार, महिषासुर नामक असुर ने ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त कर लिया था कि उसकी मृत्यु केवल किसी स्त्री के हाथों से ही हो सकती है। इस वरदान के कारण, महिषासुर ने तीनों लोकों पर अत्याचार करना शुरू कर दिया और देवताओं को स्वर्ग से निर्वासित कर दिया। देवताओं ने मिलकर देवी दुर्गा का आह्वान किया, जिन्होंने नौ दिनों तक महिषासुर से युद्ध किया और दसवें दिन उसका वध किया। यह विजय अच्छाई की बुराई पर जीत का प्रतीक है और इसी उपलक्ष्य में नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है।

चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि में क्या अंतर है?
हिन्दू धर्म में वर्ष में दो प्रमुख नवरात्रि मनाई जाती हैं: चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि। चैत्र नवरात्रि वसंत ऋतु में आती है और हिन्दू नव वर्ष की शुरुआत का प्रतीक है, जबकि शारदीय नवरात्रि शरद ऋतु में मनाई जाती है और इसे महानवरात्रि भी कहा जाता है। चैत्र नवरात्रि में भक्तगण आध्यात्मिक सिद्धि और मोक्ष की कामना से देवी की पूजा करते हैं, जबकि शारदीय नवरात्रि में सांसारिक सुख और समृद्धि की प्राप्ति के लिए उपासना की जाती है।
चैत्र नवरात्रि एक महत्वपूर्ण हिन्दू पर्व है जो देवी दुर्गा की उपासना, आत्मशुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति का अवसर प्रदान करता है। इस दौरान की जाने वाली पूजा-अर्चना और व्रत न केवल भक्तों को आध्यात्मिक बल प्रदान करते हैं, बल्कि उन्हें जीवन में नैतिक मूल्यों और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा भी देते हैं।