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मीट खाने वाले खुद को ‘एनिमल लवर’ बताते हैं: सुप्रीम कोर्ट में सरकार की टिप्पणी, 37 लाख डॉग बाइट केस सालभर में

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में चल रहे आवारा कुत्तों के मामले में सोमवार को एक अहम सुनवाई हुई, जिसमें सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने एक चौंकाने वाली टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि उन्होंने ऐसे लोगों को देखा है जो सोशल मीडिया पर मीट खाने के वीडियो पोस्ट करते हैं और फिर खुद को ‘एनिमल लवर’ बताते हैं।

तुषार मेहता ने कहा, “कोई भी जानवरों से नफरत नहीं करता, लेकिन सच्चाई यह है कि देश में आवारा कुत्तों का खतरा तेजी से बढ़ रहा है और इसकी मार आम जनता को झेलनी पड़ रही है।”

सालभर में 37 लाख डॉग बाइट केस

सरकार की ओर से कोर्ट को बताया गया कि एक साल में करीब 37 लाख डॉग बाइट केस दर्ज हुए हैं। इसका मतलब है कि रोजाना करीब 10,000 लोग कुत्तों के हमलों का शिकार हो रहे हैं। डब्ल्यूएचओ के अनुमान के मुताबिक, रैबीज़ से होने वाली मौतों का आंकड़ा आधिकारिक रिकॉर्ड से कहीं ज्यादा है। केवल उसी वर्ष में 305 लोगों की मौत रैबीज़ के कारण हुई।

सुप्रीम कोर्ट का आदेश

11 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर से सभी आवारा कुत्तों को आठ हफ्तों के भीतर पकड़कर शेल्टर में रखने का आदेश दिया था। कोर्ट ने साफ किया था कि इन्हें दोबारा सड़कों पर नहीं छोड़ा जाएगा। साथ ही, कोर्ट ने चेतावनी दी थी कि अगर कोई व्यक्ति या संस्था इस प्रक्रिया में बाधा डालेगी तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।

‘वोकल माइनॉरिटी’ बनाम ‘साइलेंट मेजॉरिटी’

तुषार मेहता ने अदालत में कहा कि इस मुद्दे पर एक ‘बहुत तेज आवाज़ वाली अल्पसंख्यक’ और एक ‘चुपचाप पीड़ित बहुसंख्यक’ है। उनका कहना था कि आवारा कुत्तों के खतरे के कारण कई लोग अपने बच्चों को खुले में खेलने भेजने से डरते हैं। उन्होंने साफ किया, “यह मेरी व्यक्तिगत राय है, न कि सरकार की आधिकारिक स्थिति, लेकिन समाधान ढूंढना जरूरी है।”

मासूमों की सुरक्षा पर जोर

पहले की सुनवाई में जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने कहा था कि मासूम बच्चों को किसी भी हालत में आवारा कुत्तों का शिकार नहीं बनने देना चाहिए। अदालत ने स्पष्ट किया था कि यह आदेश बड़े जनहित को ध्यान में रखकर दिया जा रहा है।

नए बेंच, जिसकी अगुवाई जस्टिस विक्रम नाथ कर रहे हैं, ने मामले पर सुनवाई पूरी कर ली है और आदेश सुरक्षित रख लिया है। अब देखना होगा कि कोर्ट का अंतिम फैसला क्या आता है और क्या यह देशभर में आवारा कुत्तों के प्रबंधन के लिए एक ठोस रास्ता दिखा पाएगा।

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Shubham

शुभम झोपे एक प्रतिष्ठित लेखक हैं जो "ख़बर हरतरफ़" के लिए नियमित रूप से लेख लिखते हैं। उनकी लेखनी में समकालीन मुद्दों पर गहन विश्लेषण और सूक्ष्म दृष्टिकोण देखने को मिलता है। शुभम की लेखन शैली सहज और आकर्षक है, जो पाठकों को उनके विचारों से जोड़ देती है। शेयर बाजार, उद्यमिता और व्यापार में और सांस्कृतिक विषयों पर उनकी लेखनी विशेष रूप से सराही जाती है।

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