2024 के कश्मीर विधानसभा चुनावों का पहला चरण, 18 सितंबर को, एक ऐतिहासिक घटना साबित हुआ। यह चुनाव 2019 में अनुच्छेद 370 के हटाए जाने के बाद आयोजित हो रहे पहले विधानसभा चुनाव हैं। इस चरण में जम्मू-कश्मीर के 24 निर्वाचन क्षेत्रों में 58.85% मतदान दर्ज किया गया, जो पिछले 35 वर्षों में सबसे अधिक था। यह उत्साहपूर्ण मतदान दर्शाता है कि स्थानीय निवासियों में लोकतंत्र की शक्ति को लेकर एक नई समझ और जागरूकता आई है।
बदलते राजनीतिक समीकरण
2019 के बाद से कश्मीर की राजनीति में बड़े परिवर्तन हुए हैं। अनुच्छेद 370 के हटने और कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म होने के बाद से लोगों में आक्रोश और असंतोष था। हालाँकि, इस चुनाव में एक नया राजनीतिक उभार देखने को मिला, जिसमें खासकर दक्षिण कश्मीर के युवा मतदाताओं ने मतदान में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। पहले जो युवा हथियार उठाते थे या विरोध प्रदर्शन में शामिल होते थे, वे अब लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा बनकर अपना गुस्सा व्यक्त कर रहे हैं। यह बदलाव दर्शाता है कि कश्मीर की नई पीढ़ी ने लोकतंत्र को बदले की एक नई शक्ति के रूप में देखना शुरू कर दिया है।
मतदान का महत्त्वपूर्ण आँकड़ा
पहले चरण में कुल 24 निर्वाचन क्षेत्रों में मतदान हुआ, जिनमें सबसे ज्यादा मतदान किस्तवाड़ (77.23%) और डोडा (69.33%) में दर्ज हुआ। वहीं, सबसे कम मतदान पुलवामा (46.03%) और शोपियां (53.64%) में रहा। चुनाव आयोग और सुरक्षा बलों की सख्त तैयारियों और निष्पक्ष प्रक्रिया के चलते चुनाव शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हुए।
कई स्थानों पर महिला और युवा मतदाताओं की लंबी कतारें देखी गईं, जो यह दर्शाती हैं कि कश्मीर की जनता अब लोकतांत्रिक प्रक्रिया में सक्रिय रूप से हिस्सा लेने लगी है।
युवाओं का बदला
कश्मीर में लंबे समय से विरोध प्रदर्शन और हिंसक संघर्षों का दौर चला है, विशेषकर दक्षिण कश्मीर में। यहां के गांवों में युवा हथियार उठाकर संघर्ष करते थे, लेकिन इस बार उन्होंने बंदूक के बजाय मतदान के जरिए अपना गुस्सा जाहिर किया। उदाहरण के तौर पर, करिमाबाद गांव जो एक समय विरोध प्रदर्शनों का केंद्र था, वहां के युवा अब वोट डालकर अपनी नाराजगी व्यक्त कर रहे हैं। वे इस बार राजनीतिक पार्टियों, विशेषकर नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC), का समर्थन कर रहे हैं।
कई युवा यह मानते हैं कि यह मतदान उनके लिए सरकार से जवाबदेही और अधिकारों की मांग करने का तरीका है। उनका कहना है कि 2019 के बाद की परिस्थितियों से निपटने और बाहरी नौकरशाहों से निजात पाने के लिए उन्हें एक मजबूत विधानसभा की आवश्यकता है। बेरोजगारी और विशेष आरक्षण नीतियों से नाराज युवा अब बदलाव की उम्मीद में मतदान प्रक्रिया में शामिल हो रहे हैं।
पुराने घाव और नई उम्मीदें
कुछ परिवारों के लिए हालांकि इस चुनाव में भाग लेना आसान नहीं था। कई लोगों ने 2016 के बाद के हिंसक संघर्षों में अपने परिवार के सदस्यों को खोया है। ऐसे परिवार अब भी सरकार से निराश हैं और उनका कहना है कि उन्हें सिर्फ दर्द और असंतोष मिला है।
जैसे-जैसे कश्मीर का युवा लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में शामिल हो रहा है, वहां की जनता को उम्मीद है कि एक नई सरकार उनके मुद्दों का समाधान कर सकती है। लोगों को उम्मीद है कि विधानसभा एक ऐसा मंच बनेगी जहां उनके अधिकारों की रक्षा हो सकेगी, रोजगार के अवसर मिलेंगे और बाहरी हस्तक्षेप से मुक्ति मिलेगी।
इस चुनाव का पहला चरण कश्मीर में लोकतांत्रिक प्रक्रिया की वापसी का संकेत है। जहाँ पहले हिंसा और अस्थिरता का बोलबाला था, वहां अब लोकतंत्र का एक नया अध्याय लिखा जा रहा है। यह बदलाव कश्मीर के युवाओं की नई सोच को दर्शाता है, जो अब मतदान के जरिए अपना विरोध दर्ज कर रहे हैं। पहले चरण की सफलता से यह साफ है कि आने वाले समय में कश्मीर में राजनीतिक परिदृश्य और अधिक दिलचस्प होगा।
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