Key Highlights
- भारत ने इस्लामाबाद स्थित उच्चायोग से अपने रक्षा, नौसेना और वायु सलाहकारों को वापस बुलाने का निर्णय लिया।
- नई दिल्ली स्थित पाकिस्तानी उच्चायोग के सैन्य सलाहकारों को Persona Non Grata घोषित किया गया।
- दोनों देशों के उच्चायोगों की कुल स्टाफ संख्या 55 से घटाकर 30 की जाएगी।
- यह कदम भारत और पाकिस्तान के बीच बिगड़ते संबंधों का संकेत है।
भारत ने इस्लामाबाद से अपने रक्षा, नौसेना और वायु सलाहकारों को बुलाया वापस
भारत और पाकिस्तान के बीच कूटनीतिक संबंधों में आई नई दरार, सुरक्षा सलाहकारों की वापसी के पीछे क्या है रणनीति?
भारत और पाकिस्तान के बीच लंबे समय से तनावपूर्ण रहे संबंध एक बार फिर चर्चा में हैं। इस बार मुद्दा है कूटनीतिक प्रतिनिधित्व का। विदेश सचिव विक्रम मिस्री द्वारा हाल ही में दिए गए बयान में स्पष्ट किया गया कि पाकिस्तान के उच्चायोग में तैनात रक्षा, नौसेना और वायु सलाहकारों को Persona Non Grata घोषित कर दिया गया है — इसका मतलब है कि वे अब भारत में रहने के अधिकारी नहीं हैं और उन्हें एक सप्ताह के भीतर देश छोड़ना होगा।
भारत ने इसके साथ ही यह भी घोषणा की कि वह अपने ही रक्षा, नौसेना और वायु सलाहकारों को इस्लामाबाद में भारतीय उच्चायोग से वापस बुला रहा है। यह कदम दोनों देशों के बीच बढ़ते तनाव का परिचायक है, जहां राजनयिक संवाद सीमित होते जा रहे हैं।
कूटनीतिक संतुलन में बदलाव
पारंपरिक रूप से, दोनों देशों के उच्चायोगों में सैन्य सलाहकारों की नियुक्ति एक संकेत होती थी कि संवाद की गुंजाइश बनी हुई है। लेकिन अब इन पदों को “अवमान्य (Annulled)” करार दिया गया है। इसके साथ ही, इन सैन्य सलाहकारों के साथ कार्यरत पाँच सहायक स्टाफ भी हटा लिए जाएंगे।
यह निर्णय केवल सलाहकारों तक सीमित नहीं है। भारत और पाकिस्तान दोनों ने यह भी तय किया है कि 1 मई 2025 तक उच्चायोगों में कार्यरत स्टाफ की कुल संख्या को 55 से घटाकर 30 किया जाएगा। यह बदलाव स्पष्ट करता है कि भविष्य में दोनों देशों के बीच कूटनीतिक वार्ताएं और भी सीमित हो सकती हैं।
विश्लेषण: क्या है इसके दूरगामी प्रभाव?
इस कदम से भारत ने यह संकेत दिया है कि पाकिस्तान के साथ अब सामान्य कूटनीतिक संबंध भी चुनौतीपूर्ण होते जा रहे हैं। सैन्य सलाहकारों को हटाना केवल एक प्रतीकात्मक कार्रवाई नहीं है, बल्कि यह इस बात का संकेत है कि सुरक्षा और भरोसे के मुद्दे गंभीर होते जा रहे हैं।
भारत का यह निर्णय न केवल राजनयिक स्तर पर बदलाव लाएगा, बल्कि इससे क्षेत्रीय स्थिरता और संवाद की संभावनाओं पर भी असर पड़ सकता है। आने वाले समय में दोनों देशों के बीच संपर्क की सीमाएं और भी संकीर्ण होती जा सकती हैं।
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