Key Highlights:
- डॉ. भीमराव आंबेडकर जयंती हर साल 14 अप्रैल को मनाई जाती है
- 2025 में उनकी 134वीं जयंती पर पूरे देश में बड़े स्तर पर कार्यक्रम होंगे
- संविधान निर्माता डॉ. आंबेडकर का सामाजिक न्याय और समानता में योगदान
- स्कूलों, कॉलेजों और सरकारी संस्थानों में विशेष आयोजन
- युवाओं के लिए डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर जयंती 2025: जानिए क्यों आज भी ज़रूरी हैं उनके विचार | पढ़ें पूरी जानकारी के विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक
डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर जयंती 2025: विचारों से क्रांति तक
हर साल 14 अप्रैल को पूरे भारत में डॉ. भीमराव आंबेडकर की जयंती को राष्ट्रीय सम्मान के साथ मनाया जाता है। 2025 में, यह विशेष दिन और भी ऐतिहासिक होने जा रहा है क्योंकि यह उनकी 134वीं जयंती होगी।
डॉ. आंबेडकर सिर्फ संविधान निर्माता नहीं थे, बल्कि वे एक समाज सुधारक, शिक्षाविद्, मानवाधिकार योद्धा और आर्थिक नीति विशेषज्ञ भी थे। उनकी सोच ने एक पूरी पीढ़ी को न केवल प्रेरित किया, बल्कि उन्हें अधिकारों के लिए लड़ना भी सिखाया।
शिक्षा का मंत्र: “शिक्षित बनो, संगठित रहो और संघर्ष करो”
डॉ. अंबेडकर का मानना था कि शिक्षा ही वह शक्ति है जो किसी भी वर्ग, जाति या समुदाय को सामाजिक बंधनों से मुक्त कर सकती है। आज, जब डिजिटल शिक्षा, ऑनलाइन लर्निंग और स्किल डेवलपमेंट की बात होती है, अंबेडकर के विचार और भी अधिक प्रासंगिक हो जाते हैं।
सामाजिक न्याय की आधारशिला
भारतीय संविधान में अनुसूचित जातियों, जनजातियों और पिछड़े वर्गों के लिए जो आरक्षण की व्यवस्था की गई है, उसका मूल दर्शन समानता और न्याय है, जिसकी नींव बाबासाहेब ने रखी।
आज भी दलित और वंचित समुदायों के अधिकारों की रक्षा में अंबेडकर के सिद्धांत मार्गदर्शक हैं।
जयंती के अवसर पर आयोजन
2025 में डॉ. आंबेडकर जयंती को लेकर स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालयों से लेकर सामाजिक संगठनों और सरकारी विभागों द्वारा कई कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे:
- भाषण प्रतियोगिताएं
- निबंध लेखन
- संविधान अध्ययन कार्यशालाएं
- अंबेडकर विचार गोष्ठियां
- झांकियां और रैलियां
एक लेखक और सामाजिक सेवक के रूप में, मैंने समाज के हर वर्ग में अंबेडकर के विचारों का असर देखा है। जब कोई युवा, दलित बच्चा मेडिकल कॉलेज में एडमिशन लेता है, तो मुझे लगता है — यह आंबेडकर की दूरदर्शिता का ही परिणाम है।
क्यों आज भी ज़रूरी हैं आंबेडकर?
- जातिवाद और भेदभाव आज भी समाज में व्याप्त हैं
- शिक्षा और अधिकारों को लेकर अब भी जागरूकता की कमी है
- युवा वर्ग को विचारों की सही दिशा देने की आवश्यकता है
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