दिल्ली की राजनीति एक बार फिर गर्म हो चुकी है, और इस बार चर्चा है राष्ट्रपति शासन की। बीजेपी के कई विधायकों ने हाल ही में राष्ट्रपति को ज्ञापन सौंपकर दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लागू करने की मांग की है, जिससे सियासी माहौल और भी उग्र हो गया है। आम आदमी पार्टी (AAP) और भारतीय जनता पार्टी (BJP) के बीच पहले से ही तीखी टकराव चल रही थी, लेकिन अब कांग्रेस भी इस मामले में अपनी भूमिका निभाने के लिए तैयार दिख रही है।
दिल्ली की वर्तमान राजनीतिक स्थिति:
दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की नेतृत्व वाली AAP सरकार पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए गए हैं। बीजेपी ने राष्ट्रपति से दिल्ली में संवैधानिक संकट का हवाला देते हुए आप सरकार को बर्खास्त करने की मांग की है। बीजेपी के इस कदम से दिल्ली में राजनीतिक संकट और गहराता दिख रहा है। इसके पीछे प्रमुख कारणों में केजरीवाल पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप, शराब घोटाले में उनके सहयोगियों की गिरफ्तारी, और दिल्ली के प्रशासनिक मुद्दों का ठप होना शामिल हैं।
कांग्रेस की स्थिति और आरोप:
दिल्ली कांग्रेस, जो कभी राजधानी में 15 साल तक सत्ता में रही, अब एक बार फिर अपनी पकड़ मजबूत करने के प्रयास में है। कांग्रेस ने AAP और बीजेपी दोनों पर सत्ता की राजनीति में फंसे होने का आरोप लगाया है। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि आप सरकार जनता की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरी है और प्रशासनिक स्तर पर भी कई कमियां हैं। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष देवेंद्र यादव ने कहा कि आप सरकार भ्रष्टाचार और अव्यवस्थाओं में उलझी है, जिससे जनता परेशान है। कांग्रेस का कहना है कि दिल्ली की जनता अब आप और बीजेपी दोनों से ऊब चुकी है, और अब उनके पास कांग्रेस ही एकमात्र विकल्प बचा है।
राष्ट्रपति शासन की मांग और उसका प्रभाव:
बीजेपी ने राष्ट्रपति को ज्ञापन सौंपते हुए दिल्ली में आप सरकार को हटाने की मांग की, जिसे राष्ट्रपति ने गृह मंत्रालय को भेज दिया। यह कदम राजनीतिक गलियारों में भूचाल लेकर आया है। यदि दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लागू होता है, तो इसका मतलब होगा कि केंद्र सरकार सीधे दिल्ली का शासन अपने हाथ में ले लेगी। इससे दिल्ली के विकास कार्य, परियोजनाओं, और प्रशासनिक निर्णयों पर गहरा असर पड़ सकता है।
बीजेपी का आरोप है कि दिल्ली में संवैधानिक संकट है और आप सरकार के रहते हुए समस्याओं का समाधान असंभव है। लेकिन कांग्रेस ने इस मुद्दे पर बीजेपी की मंशा पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि बीजेपी दिल्ली में सरकार बदलने के लिए संवैधानिक प्रक्रिया का दुरुपयोग कर रही है।
क्या राष्ट्रपति शासन का विकल्प सही है?
दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लगाने का मुद्दा पहली बार नहीं उठ रहा। 2014 में भी दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लगाया गया था, जब अरविंद केजरीवाल ने अपनी 49 दिन की सरकार से इस्तीफा दे दिया था। राष्ट्रपति शासन का विकल्प तब उठता है जब राज्य सरकार अपनी जिम्मेदारियों का पालन करने में विफल हो जाती है या संविधान का उल्लंघन करती है। हालांकि, यह निर्णय काफी गंभीर होता है, क्योंकि इससे राज्य की स्वायत्तता खत्म हो जाती है और केंद्र सरकार सीधे हस्तक्षेप करती है।
कई राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लागू करना कोई हल नहीं होगा। इससे जनता का विश्वास और भी कमजोर हो सकता है, खासकर जब राजधानी में पहले से ही राजनीतिक अस्थिरता है। कांग्रेस ने यह भी कहा है कि दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लगाने से सिर्फ राजनीतिक संकट और बढ़ेगा और जनता को इसका कोई लाभ नहीं मिलेगा।
चुनावी समीकरण और कांग्रेस की रणनीति:
दिल्ली में आगामी विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस ने अपनी रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है। कांग्रेस का मानना है कि आप और बीजेपी दोनों ही सरकार में रहते हुए जनता की समस्याओं का समाधान नहीं कर पाए हैं, और यही कारण है कि कांग्रेस अब खुद को एक मजबूत विकल्प के रूप में पेश कर रही है। कांग्रेस के नेताओं का दावा है कि उनके 15 साल के शासनकाल में दिल्ली में विकास और समृद्धि थी, जो अब पूरी तरह से रुक चुकी है।
कांग्रेस का कहना है कि दिल्ली में आप और बीजेपी के बीच राजनीतिक खींचतान का सीधा असर जनता पर पड़ रहा है। उन्होंने आरोप लगाया कि दोनों पार्टियां अपने-अपने स्वार्थों के लिए जनता की भलाई को नजरअंदाज कर रही हैं।
दिल्ली में राष्ट्रपति शासन की संभावना पर चर्चाएं जोरों पर हैं, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि यह कदम कब उठाया जाएगा या इसका क्या परिणाम होगा। दिल्ली की जनता के लिए यह एक गंभीर मुद्दा है, क्योंकि राष्ट्रपति शासन का मतलब है कि राज्य सरकार के सभी अधिकार केंद्र सरकार के पास चले जाएंगे। हालांकि, कांग्रेस और आप दोनों ने बीजेपी की मंशाओं पर सवाल उठाए हैं और इसे लोकतंत्र के लिए खतरा बताया है। अब देखना यह होगा कि आने वाले समय में दिल्ली की राजनीति किस दिशा में जाती है और क्या राष्ट्रपति शासन वास्तव में लागू होता है या नहीं।
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