जब हम आध्यात्मिक जीवन की बात करते हैं, तो भगवान गणेश का नाम सबसे पहले आता है। वे विद्या, बुद्धि, संपत्ति, समृद्धि और सफलता के देवता माने जाते हैं। गणेश स्तोत्र का उच्चारण और समझने का महत्वपूर्ण साधना है, जो हमें इन्हीं गुणों को अपने जीवन में प्राप्त करने का मार्ग दिखाता है। इस लेख में, हम श्री गणेश स्तोत्र के महत्व, अर्थ और उसके प्रभाव के बारे में चर्चा करेंगे।
महत्व: गणपति स्तोत्र का उच्चारण और सुनना एक आध्यात्मिक साधना के रूप में महत्वपूर्ण है। यह हमें निरंतरता, समर्पण, और बुद्धि की शक्ति को प्राप्त करने में मदद करता है।
अर्थ: गणपति स्तोत्र में भगवान गणेश की महिमा, गुण, और भक्ति का वर्णन होता है। इसमें उनकी शक्तियों और कृपा का वर्णन भी होता है जो हमें सभी कठिनाइयों को पार करने में मदद करती है।
प्रभाव: गणेश स्तोत्र का नियमित उच्चारण और सुनना शुभ फल प्रदान करता है। यह हमें बुद्धि, समर्पण, और साहस के गुणों में समृद्धि करता है और जीवन में सफलता के मार्ग को प्रशस्त करता है।
गणेश स्तोत्र का उच्चारण और समझना हमारे आध्यात्मिक जीवन को संतुलित और समृद्ध करता है। इसे नियमित रूप से प्रार्थना करके हम अपने जीवन में स्थिरता, समृद्धि, और सफलता का अनुभव कर सकते हैं।
गणेश स्तोत्र | गणपति स्तोत्र | Pranamya Shirsa Devam
प्रणम्य शिरसा देवं गौरी विनायकम् ।
भक्तावासं स्मेर नित्यमाय्ः कामार्थसिद्धये ॥॥
प्रथमं वक्रतुडं च एकदंत द्वितीयकम् ।
तृतियं कृष्णपिंगात्क्षं गजववत्रं चतुर्थकम् ॥॥
लंबोदरं पंचम च पष्ठं विकटमेव च ।
सप्तमं विघ्नराजेंद्रं धूम्रवर्ण तथाष्टमम् ॥॥
नवमं भाल चंद्रं च दशमं तु विनायकम् ।
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजानन् ॥॥
द्वादशैतानि नामानि त्रिसंघ्यंयः पठेन्नरः ।
न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं प्रभो ॥॥
विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम् ।
पुत्रार्थी लभते पुत्रान्मो क्षार्थी लभते गतिम् ॥॥
जपेद्णपतिस्तोत्रं षडिभर्मासैः फलं लभते ।
संवत्सरेण सिद्धिंच लभते नात्र संशयः ॥॥
अष्टभ्यो ब्राह्मणे भ्यश्र्च लिखित्वा फलं लभते ।
तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादतः ॥॥
॥ इति श्री नारद पुराणे संकष्टनाशनं नाम श्री गणपति स्तोत्रं संपूर्णम् ॥