भारत में चुनावी प्रक्रिया को सरल और प्रभावी बनाने के उद्देश्य से संविधान (129वां) संशोधन विधेयक, 2024 पेश किया गया है। यह विधेयक लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावों को एक साथ कराने की सिफारिश करता है। इस पहल की सिफारिश पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली उच्च स्तरीय समिति ने की है।
इस विधेयक का उद्देश्य भारत में बार-बार होने वाले चुनावों से उत्पन्न वित्तीय और प्रशासनिक बोझ को कम करना और शासन में सुधार करना है। इसके तहत संविधान के अनुच्छेद 83, अनुच्छेद 172 और एक नया अनुच्छेद 82ए जोड़ने का प्रस्ताव है।
विधेयक की मुख्य बातें
- अनुच्छेद 82A का प्रावधान: यह अनुच्छेद लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावों को एक साथ कराने का आधार तैयार करता है।
- निर्वाचन काल का निर्धारण: लोकसभा और विधानसभाओं का कार्यकाल “नियत तिथि” से पांच साल का होगा।
- असमय विघटन का समाधान: यदि कोई सदन अपनी अवधि पूरी होने से पहले भंग होता है, तो नई सभा का कार्यकाल पूर्व निर्धारित समय तक सीमित रहेगा।
विधेयक के उद्देश्य
- चुनावी खर्च में कमी: बार-बार चुनावों से होने वाले वित्तीय बोझ को कम करना।
- प्रशासनिक सुधार: चुनावों के दौरान प्रशासनिक कामकाज ठप होने की समस्या को हल करना।
- लंबी अवधि के लिए नीतिगत निर्णय: सरकारों को दीर्घकालिक योजनाओं पर ध्यान केंद्रित करने का मौका मिलेगा।
- चुनावी थकान कम करना: बार-बार मतदान से नागरिकों को होने वाली असुविधा को कम करना।
विधेयक पर संवैधानिक और कानूनी बहस
विधेयक के कई पहलुओं पर कानूनी और संवैधानिक बहस छिड़ी हुई है। मुख्य विवाद संघवाद, लोकतंत्र और संविधान की मूल संरचना को लेकर है।
- संघीय ढांचे पर प्रभाव: आलोचकों का कहना है कि यह विधेयक राज्य विधानसभाओं की स्वायत्तता को कमजोर करता है।
- संविधान का मूल ढांचा: विधेयक संविधान के संघीय और लोकतांत्रिक ढांचे को चुनौती दे सकता है।
- राज्य की सहमति की आवश्यकता: विशेषज्ञों के अनुसार, यह विधेयक राज्यों की सहमति के बिना लागू नहीं किया जा सकता।
विशेषज्ञों की राय
अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा, “यह राज्य की स्वायत्तता को सीधे प्रभावित करता है, इसलिए राज्यों की मंजूरी अनिवार्य है।”
वहीं, सिद्धार्थ लूथरा का मानना है कि यह विधेयक संघवाद के मुद्दे पर कानूनी चुनौती का सामना कर सकता है।
संसद और विशेष बहुमत की प्रक्रिया
विधेयक पारित करने के लिए अनुच्छेद 368 के तहत संसद के दोनों सदनों में विशेष बहुमत की आवश्यकता होगी। यह बहुमत सदस्यों की दो-तिहाई उपस्थिति और मतदान से प्राप्त होगा।
आलोचना और संभावित चुनौतियां
- संघवाद की अनदेखी: आलोचक इसे केंद्र सरकार द्वारा सत्ता के केंद्रीकरण का प्रयास मानते हैं।
- संवैधानिक वैधता: कई कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यह विधेयक न्यायालय में चुनौती का सामना करेगा।
- संसद में बहुमत का अभाव: वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में सरकार के पास आवश्यक बहुमत नहीं है।
‘One Nation One Election’ विधेयक भारतीय लोकतंत्र और चुनाव प्रणाली में एक बड़ा बदलाव ला सकता है। हालांकि, इसके कानूनी और संवैधानिक पहलुओं पर गहन विचार-विमर्श और राज्यों के साथ समन्वय की आवश्यकता है।
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