2024 का शतरंज ओलंपियाड भारत के खेल इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय के रूप में दर्ज हो चुका है। जब भारतीय पुरुष और महिला टीमों ने अभूतपूर्व प्रदर्शन करते हुए शतरंज की दुनिया पर राज किया, तो खेल प्रेमियों के मन में एक ही सवाल उठ खड़ा हुआ—क्या यह भारतीय शतरंज के लिए वही पल है, जो 1983 का क्रिकेट विश्वकप था?
भारतीय पुरुष टीम ने ओपन सेक्शन में जिस तरह से प्रदर्शन किया, उसे देखकर खेल विशेषज्ञ हैरान रह गए। 44 मुकाबलों में सिर्फ एक हार, 27 जीत और 16 ड्रॉ—यह प्रदर्शन भारतीय शतरंज के भविष्य की ताकत और उसकी दिशा को स्पष्ट करता है। इसी ओलंपियाड में भारत की स्वर्णिम पीढ़ी ने दो गोल्ड मेडल हासिल किए—एक पुरुष टीम ने और दूसरा महिला टीम ने। इसके साथ ही चार व्यक्तिगत स्वर्ण पदक भी भारतीय खिलाड़ियों के हिस्से आए। डी. गुकेश, अर्जुन एरिगैसी, दिव्या देशमुख और वंतिका अग्रवाल ने अपनी-अपनी श्रेणियों में व्यक्तिगत गोल्ड हासिल कर भारतीय शतरंज का परचम लहराया।
पुरुष टीम का अभूतपूर्व प्रदर्शन
पुरुष टीम ने ओपन सेक्शन में बेहद दबंग अंदाज में अपनी चुनौती पेश की। इस सफर में उन्होंने 44 मुकाबलों में केवल एक मैच गंवाया, जबकि 27 मुकाबले जीते और शेष ड्रॉ पर समाप्त हुए। टूर्नामेंट के आखिरी दौर में भारत ने स्लोवेनिया को हराते हुए तीन जीत और एक ड्रॉ के साथ गोल्ड मेडल अपने नाम किया।
महज इतना ही नहीं, भारतीय पुरुष टीम के स्टार खिलाड़ी डी. गुकेश और अर्जुन एरिगैसी ने अपने शानदार खेल से सबको मंत्रमुग्ध कर दिया। गुकेश, जो बोर्ड 1 पर खेल रहे थे, और अर्जुन, जो बोर्ड 3 पर उतरे थे, दोनों ने व्यक्तिगत गोल्ड मेडल हासिल किए। उनका खेल न केवल तकनीकी दृष्टिकोण से मजबूत था, बल्कि मानसिक दृढ़ता और आत्मविश्वास भी चरम पर था। अर्जुन एरिगैसी ने टूर्नामेंट के दौरान विश्व रैंकिंग में तीसरा स्थान हासिल किया, जबकि गुकेश ने विश्व के शीर्ष पांच खिलाड़ियों में अपनी जगह बना ली। यह उपलब्धि भारतीय शतरंज के लिए बेहद गर्व की बात है।
महिला टीम की स्वर्णिम सफलता
भारतीय महिलाओं की टीम भी पुरुषों से कम नहीं रही। उन्होंने भी अपने अद्भुत खेल कौशल से इतिहास रच दिया। फाइनल मुकाबले में उन्होंने अज़रबैजान को 3-1 से हराकर स्वर्ण पदक जीता। इस जीत का महत्व और भी बढ़ जाता है क्योंकि इस बार भारत की शीर्ष महिला खिलाड़ी कोनेरु हम्पी ने ओलंपियाड में हिस्सा नहीं लिया था। इसके बावजूद भारतीय महिला टीम ने अपने खेल से यह साबित कर दिया कि देश में शतरंज का भविष्य बेहद उज्ज्वल है।
दिव्या देशमुख और वंतिका अग्रवाल, जो क्रमशः बोर्ड 3 और 4 पर खेल रही थीं, ने भी व्यक्तिगत श्रेणी में गोल्ड मेडल हासिल कर देश का मान बढ़ाया। उनकी यह जीत बताती है कि भारतीय महिला शतरंज खिलाड़ियों का खेल अब वैश्विक मंच पर सम्मान के साथ देखा जा रहा है।
भारतीय शतरंज की गहराई और भविष्य की संभावनाएं
इस ओलंपियाड में भारतीय खिलाड़ियों की उपलब्धियां न केवल व्यक्तिगत प्रदर्शन का नतीजा थीं, बल्कि यह संकेत भी देती हैं कि भारत अब एक शतरंज महाशक्ति बन चुका है। पांच बार के विश्व चैंपियन विश्वनाथन आनंद ने फिडे के यूट्यूब चैनल पर इस उपलब्धि को “जादुई समय” कहकर संबोधित किया। आनंद के अनुसार, “यह अविश्वसनीय है। भारतीय पुरुष टीम इतनी प्रभावी है कि दूसरे ओलंपियाड में भी दोनों टीमें गोल्ड के लिए प्रतिस्पर्धा कर रही थीं।”
सूसन पोलगर, जो एक पूर्व महिला विश्व चैंपियन रही हैं, ने भी भारतीय शतरंज टीम की तारीफ की। उन्होंने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर कहा, “यह टीम आने वाले कई वर्षों तक शीर्ष पर बनी रहेगी, और अब भारत आधिकारिक तौर पर दुनिया की सर्वश्रेष्ठ शतरंज राष्ट्र बन चुका है।”
इस वर्ष भारतीय शतरंज ने पहले से ही कई बड़ी उपलब्धियां हासिल की हैं। 18 वर्षीय डी. गुकेश इस समय दुनिया के सबसे युवा विश्व चैंपियन बनने की कगार पर हैं। इसके अलावा, भारत के तीन खिलाड़ी पहली बार एलीट कैंडिडेट्स टूर्नामेंट में जगह बना चुके हैं। साथ ही, महिला कैंडिडेट्स टूर्नामेंट में भी दो भारतीय महिला खिलाड़ी हिस्सा लेंगी।
प्रज्ञानानंदा, जिन्होंने नॉर्वे शतरंज टूर्नामेंट में पहली बार विश्व नंबर 1 मैग्नस कार्लसन को हराया था, भी भारतीय शतरंज के भविष्य का बड़ा चेहरा बन चुके हैं। अर्जुन एरिगैसी, जिनका नाम कैंडिडेट्स टूर्नामेंट के लिए नहीं था, उन्होंने भी विश्व रैंकिंग में शीर्ष पांच में जगह बनाकर सभी को चौंका दिया है। यह सब भारतीय शतरंज की गहराई और उसके सुनहरे भविष्य का प्रमाण है।
टीम गोल्ड की महत्ता
भारतीय शतरंज के लिए यह ओलंपियाड विशेष रूप से महत्वपूर्ण इसलिए भी था क्योंकि टीम गोल्ड का मतलब व्यक्तिगत उपलब्धियों से कहीं बढ़कर होता है। यह जीत न केवल खिलाड़ियों की व्यक्तिगत मेहनत का नतीजा थी, बल्कि पूरी टीम की एकजुटता और सामूहिक प्रयास का प्रतीक थी। भारतीय टीम के कप्तान श्रीनाथ नारायणन ने द इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा, “हर खिलाड़ी में व्यक्तिगत मोटिवेशन था, लेकिन देश के लिए खेलते हुए गोल्ड जीतने का जुनून सभी खिलाड़ियों में दिखा। यह गोल्ड खास है क्योंकि हमने अब तक कभी भी ऑफलाइन ओलंपियाड में गोल्ड नहीं जीता था।”
2022 में भारतीय टीम गोल्ड के बेहद करीब थी, लेकिन अंत में ब्रॉन्ज से संतोष करना पड़ा। उस समय डी. गुकेश के एक गलत चाल ने भारत की उम्मीदों पर पानी फेर दिया था, लेकिन इस बार गुकेश ने कसम खाई थी कि वे कोई गलती नहीं दोहराएंगे। उन्होंने कहा, “इस बार मैं हर हाल में टीम गोल्ड जीतना चाहता था।”
शतरंज का 1983 पल
इस बार की जीत ने भारतीय शतरंज को एक नई ऊंचाई पर पहुंचा दिया है। ग्लोबल चेस लीग के सीईओ समीर पाठक का कहना है कि यह शतरंज के लिए वही पल है, जो 1983 का क्रिकेट विश्व कप था। “1983 ने भारतीय क्रिकेट में व्यावसायिक क्रांति की शुरुआत की। इसी तरह, भारतीय शतरंज अब वैश्विक शतरंज का इंजन बन चुका है।”
पाठक ने यह भी बताया कि 2020 के ऑनलाइन शतरंज ओलंपियाड में भारत की जीत ही ग्लोबल चेस लीग के लॉन्च का कारण बनी। उन्होंने कहा, “जब भारत ने 2020 के ऑनलाइन ओलंपियाड में संयुक्त रूप से गोल्ड मेडल जीता था, तब आनंद महिंद्रा इस खेल को देख रहे थे। यही वजह थी कि उन्होंने ग्लोबल चेस लीग की शुरुआत की। अब यह जीत साबित करती है कि भारतीय शतरंज सिर्फ एक खिलाड़ी का खेल नहीं है, बल्कि अब गुकेश, प्रज्ञानानंदा, अर्जुन जैसे कई सितारे हैं। यह एक पूरी पीढ़ी की कहानी है।”
भारतीय शतरंज का सुनहरा भविष्य
इस ओलंपियाड में मिली जीत भारतीय शतरंज के लिए एक नया अध्याय खोल सकती है। यह देश में शतरंज की लोकप्रियता को और बढ़ाने में मदद करेगी, और युवाओं को इस खेल में करियर बनाने के लिए प्रेरित करेगी। भारत के पास अब एक ऐसी पीढ़ी है, जो न केवल व्यक्तिगत स्तर पर बल्कि टीम स्तर पर भी विश्व की शीर्ष टीमों को चुनौती दे सकती है।
यह जीत केवल एक सफलता नहीं है, बल्कि यह एक नई शुरुआत है—एक ऐसे युग की, जहां भारत शतरंज की महाशक्ति बन चुका है। जैसे 1983 का क्रिकेट विश्व कप भारतीय क्रिकेट में क्रांति लाया था, वैसे ही 2024 का शतरंज ओलंपियाड भारतीय शतरंज को वैश्विक मंच पर नई ऊंचाइयों पर ले जाएगा।
इस जीत ने भारतीय शतरंज के भविष्य को स्वर्णिम बना दिया है। अब बस इंतजार है कि यह पीढ़ी आगे क्या करिश्मा दिखाती है।
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