आषाढ़ी एकादशी: जानिए क्यों है यह शुभ अवसर!

Ashadhi Ekadashi: Know why it is an auspicious occasion!
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आषाढ़ी एकादशी, जिसे शयनी एकादशी, महा एकादशी, तोली एकादशी, पद्मा एकादशी, या देवशयनी एकादशी भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण अवसर है। विशेष रूप से वैष्णव भक्तों के लिए यह दिन विशेष महत्व रखता है, क्योंकि यह भगवान विष्णु को समर्पित होता है।

आषाढ़ी एकादशी 2024: तिथि और समय

हिंदू पंचांग के अनुसार, अषाढ़ी एकादशी आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार, यह अवसर जून और जुलाई के बीच आता है। इस वर्ष आषाढ़ी एकादशी 17 जुलाई, 2024 को मनाई जाएगी।

आषाढ़ी एकादशी का महत्व और क्यों मनाई जाती है यह एकादशी?

भारतीय मान्यताओं और पौराणिक कथाओं के अनुसार, वर्ष में 24 एकादशी होती हैं, और हर एकादशी का अपना विशेष महत्व होता है। इनमें से आषाढ़ी एकादशी का महत्व सबसे अधिक है। इस अवसर को अनेकों भाषाओं में अलग-अलग नामों से जाना जाता है, लेकिन आषाढ़ी एकादशी सबसे प्रचलित नाम है।

आषाढ़ी एकादशी को भगवान विष्णु के योग निद्रा में प्रवेश करने के दिन के रूप में जाना जाता है। इस दिन से भगवान विष्णु चार महीनों की गहरी निद्रा में चले जाते हैं, जिसे ‘चातुर्मास’ कहते हैं। यह अवधि कार्तिक मास में देवउठनी एकादशी पर समाप्त होती है, जब भगवान विष्णु जागते हैं। चातुर्मास के दौरान, शुभ कार्य, विशेष रूप से विवाह, नहीं किए जाते।

आषाढ़ी एकादशी व्रत और पालन

आषाढ़ी एकादशी के दिन भक्त प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करते हैं और पवित्रता के साथ व्रत का पालन करते हैं। इस दिन अनाज, चावल, विशेष सब्जियाँ, और मसाले नहीं खाए जाते हैं। भगवान विष्णु की मूर्ति को पीले वस्त्रों में सजाकर पूजा की जाती है।

पूजा के दौरान, भगवान विष्णु को फूल, तिलक, दीपक, पान, सुपारी, चंदन आदि अर्पित किए जाते हैं। पूजा के पश्चात आरती होती है और प्रसाद बांटा जाता है। व्रत रखने वाले भक्त एक समय का भोजन करते हैं और अगले दिन पारणा के समय व्रत तोड़ते हैं।

आषाढ़ी एकादशी के साथ जुड़ी पौराणिक कथा

भविष्योत्तर पुराण के अनुसार, आषाढ़ी एकादशी का महत्व सबसे पहले भगवान ब्रह्मा ने अपने पुत्र नारद को बताया था। बाद में, यह कथा भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर को सुनाई।

एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, एक समय एक राजा मंडाता के राज्य में सूखा पड़ गया। राजा ने इस समस्या के समाधान के लिए ऋषि अंगिरा की सलाह पर आषाढ़ी एकादशी का व्रत रखा। भगवान विष्णु उनकी भक्ति से प्रसन्न हुए और राज्य में वर्षा हुई, जिससे सूखा समाप्त हो गया।

आषाढ़ी एकादशी का उत्सव और पूजा विधि

इस दिन भगवान विष्णु की पूजा के साथ-साथ, भक्त पूरी रात भजन, कीर्तन और भगवान के गुणगान में व्यतीत करते हैं। महाराष्ट्र के पंढरपुर में इस दिन ‘विठोबा मंदिर’ में विशेष पूजा होती है। वारी यात्रा के माध्यम से भक्त पंढरपुर पहुँचते हैं।

आषाढ़ी एकादशी की प्रथा और महत्व

आषाढ़ी एकादशी का व्रत रखने वाले भक्त मानते हैं कि इस व्रत को पूर्ण श्रद्धा और समर्पण के साथ करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में समृद्धि और शांति आती है।

मिथक और धार्मिक मान्यता

भक्तों का मानना है कि आषाढ़ी एकादशी का पालन करने से भगवान विष्णु के आशीर्वाद से जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। इस दिन की पवित्रता और विधि-विधान से पूजा करने से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है।

अतः आषाढ़ी एकादशी का धार्मिक, पौराणिक और सामाजिक महत्व अत्यधिक है, और यह दिन भगवान विष्णु की उपासना के लिए विशेष माना जाता है।

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Team K.H.
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