27 अक्टूबर 2024 को ईरान पर इजरायली वायुसेना के हमले ने देश के भीतर ही राजनीतिक बहस को जन्म दिया है। इजरायली नेता इस बात पर बंटे हुए हैं कि इस कार्रवाई से कितनी महत्वपूर्ण सफलता मिली। इस हमले को लेकर दोनों पक्षों की प्रतिक्रियाएं सामने आईं – कुछ नेताओं ने इसे ईरान के रक्षा और आक्रमण क्षमताओं पर प्रभावी चोट बताया, जबकि अन्य ने इसे अमेरिकी दबाव में उठाया गया कदम माना, जो महत्वपूर्ण लक्ष्य हासिल नहीं कर सका।
हमले की पृष्ठभूमि और वर्तमान विवाद
इजरायल ने 1 अक्टूबर को ईरान द्वारा किए गए बैलिस्टिक मिसाइल हमले का जवाब देते हुए 27 अक्टूबर को ईरान के सैन्य ठिकानों पर हमला किया। इजरायली सेना का दावा था कि इस हमले में ईरान के मिसाइल निर्माण संयंत्रों और सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली को निशाना बनाया गया। प्रधानमंत्री कार्यालय के अनुसार, यह हमला अमेरिका के निर्देश पर नहीं, बल्कि इजरायल के राष्ट्रीय हितों के आधार पर किया गया था। इस दौरान अमेरिका ने ईरान के ऊर्जा या परमाणु केंद्रों पर हमला करने से परहेज करने का आग्रह किया था।
आलोचना और समर्थन
कुछ इजरायली नेताओं ने हमले की सराहना की और इसे ईरान के सामरिक हितों के खिलाफ एक मजबूत संदेश बताया। उदाहरण के लिए, राष्ट्रीय सुरक्षा मंत्री इतामार बेन गविर ने कहा कि यह ईरान के महत्वपूर्ण ठिकानों को कमजोर करने की दिशा में एक अच्छा कदम था, हालांकि इसे आगे बढ़ाने की आवश्यकता है। दूसरी ओर, विपक्ष के नेता यैर लापिद ने इसे पर्याप्त नहीं माना। उन्होंने कहा कि ईरान को इससे कहीं ज्यादा गंभीर नुकसान उठाना चाहिए था। इसके अतिरिक्त, लिकुड पार्टी की सांसद टैली गोटलिव ने इस पर और सख्त प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि तेल और परमाणु ठिकानों पर हमला न करना इजरायल के लिए लंबे समय तक पछतावे का कारण बन सकता है।
सामरिक और आर्थिक दृष्टिकोण से उठते प्रश्न
यह हमला सीमित सैन्य लक्ष्यों पर केंद्रित था, जिससे ईरान की अर्थव्यवस्था या उसकी परमाणु शक्ति को कोई खास नुकसान नहीं पहुंचा। आलोचकों का मानना है कि इजरायल को ईरान के तेल उद्योग और परमाणु कार्यक्रम पर हमला करना चाहिए था ताकि उसे दीर्घकालिक नुकसान हो। वहीं, अमेरिकी प्रशासन के सुझावों पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं कि क्या इजरायल ने उसकी सलाह पर अपने हमले को सीमित रखा।
अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया
अमेरिका ने इस हमले के प्रति अपने दृष्टिकोण को स्पष्ट करते हुए कहा कि वह क्षेत्र में तनाव कम करना चाहता है। इस हमले से सऊदी अरब और जॉर्डन जैसे देशों में भी चिंता बढ़ी है, जो चाहते हैं कि उनका हवाई क्षेत्र इस संघर्ष से बाहर रहे।
यह हमला इजरायल की नीति और रणनीति को लेकर देश के भीतर एक बड़ा विवाद उत्पन्न कर रहा है। एक ओर जहां कुछ नेता इसे एक प्रभावी कदम मानते हैं, वहीं कई अन्य नेताओं का मानना है कि इस प्रकार के सीमित हमले से कोई महत्वपूर्ण लाभ नहीं होने वाला। इस मुद्दे पर आगे क्या निर्णय लिया जाता है, यह देखना बाकी है।