मुम्बई: भारत के महान उद्योगपति और टाटा समूह के पूर्व चेयरमैन, रतन टाटा का बुधवार को 86 वर्ष की आयु में मुम्बई के एक अस्पताल में निधन हो गया। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने घोषणा की है कि उनका अंतिम संस्कार पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा। इसके साथ ही राज्य सरकार ने गुरुवार को एक दिवसीय शोक की घोषणा भी की है, जिसके तहत राज्य के सभी सरकारी कार्यालयों में राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका रहेगा, और सभी मनोरंजन कार्यक्रम रद्द कर दिए गए हैं।
रतन टाटा का अंतिम संस्कार मुंबई के वर्ली क्षेत्र में किया जाएगा। उनके अंतिम संस्कार में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह शामिल होंगे, जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अनुपस्थिति में वह लाओस के ASEAN-India और पूर्वी एशिया सम्मेलनों में भाग ले रहे हैं।
एक युग का अंत: भारतीय उद्योग जगत के नायक
रतन टाटा का निधन भारतीय उद्योग जगत के एक युग का अंत है। टाटा समूह के अधीन उन्होंने कई वैश्विक कंपनियों का अधिग्रहण किया और भारत को अंतरराष्ट्रीय व्यापार मानचित्र पर स्थापित किया। उन्होंने न केवल भारत की औद्योगिक धारा को बदला, बल्कि अपने मूल्यों और नैतिकता के कारण उन्होंने लाखों लोगों के दिलों में जगह बनाई।
विनम्र जीवनशैली और सामाजिक सेवा
विभिन्न देशों में 30 से अधिक कंपनियों का नियंत्रण रखने के बावजूद रतन टाटा ने अपनी विनम्र जीवनशैली बनाए रखी। वे कभी भी अरबपतियों की सूची में नहीं आए, लेकिन उनकी उदारता और नैतिकता की चर्चा होती रही। उन्होंने अपना जीवन टाटा ट्रस्ट्स के माध्यम से समाजसेवा में समर्पित किया, जो भारत के सबसे बड़े परोपकारी संगठनों में से एक है।
28 दिसंबर 1937 को मुम्बई में जन्मे रतन टाटा का संबंध भारत के प्रतिष्ठित व्यावसायिक परिवार से था। वे जमशेदजी टाटा के परपोते थे, जिन्होंने 1868 में टाटा समूह की स्थापना की थी। रतन टाटा की परवरिश उनकी दादी, लेडी नवाजबाई टाटा ने की, क्योंकि उनके माता-पिता का तलाक हो गया था। उन्होंने मुंबई के प्रतिष्ठित कैथेड्रल और जॉन कॉनन स्कूल से पढ़ाई की, जिसके बाद वे अमेरिका चले गए। 1962 में उन्होंने कॉर्नेल यूनिवर्सिटी से आर्किटेक्चर में स्नातक की डिग्री प्राप्त की और बाद में हार्वर्ड बिजनेस स्कूल के एडवांस्ड मैनेजमेंट प्रोग्राम में भी हिस्सा लिया।
टाटा समूह के अध्यक्ष के रूप में भूमिका
1991 में, रतन टाटा ने अपने चाचा जे.आर.डी. टाटा से टाटा समूह की बागडोर संभाली। उनके नेतृत्व में, टाटा समूह ने वैश्विक विस्तार किया और अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी और आधुनिक प्रबंधन प्रथाओं को अपनाया। उन्होंने टाटा समूह को न केवल भारतीय बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी एक प्रमुख उद्योग समूह के रूप में स्थापित किया।
2000 में, उन्होंने ब्रिटिश चाय कंपनी टेटली टी का अधिग्रहण किया, जो टाटा समूह की पहली बड़ी अंतरराष्ट्रीय डील थी। इसके बाद, 2004 में उन्होंने दक्षिण कोरिया की दाईवू मोटर्स का ट्रक निर्माण परिचालन अधिग्रहित किया। 2007 में, उन्होंने एंग्लो-डच स्टील कंपनी कोरस ग्रुप का $11.3 बिलियन में अधिग्रहण किया, जो भारतीय कंपनियों द्वारा किया गया सबसे बड़ा अंतरराष्ट्रीय अधिग्रहण था।
2008 में, टाटा मोटर्स ने जगुआर और लैंड रोवर ब्रांडों को खरीदा, जिन्हें उनके नेतृत्व में पुनर्जीवित किया गया। यही नहीं, उन्होंने “टाटा नैनो” के माध्यम से सस्ती कारों का सपना साकार किया, जो मात्र ₹ 1 लाख की कीमत में बाजार में उतारी गई थी।
परोपकारी प्रयास और मानवीय दृष्टिकोण
रतन टाटा केवल एक उद्योगपति नहीं थे, बल्कि वे एक दयालु और परोपकारी व्यक्ति भी थे। उनके परोपकारी कार्यों का बड़ा हिस्सा टाटा ट्रस्ट्स के माध्यम से होता था, जो स्वास्थ्य, शिक्षा, ग्रामीण विकास और कला-संस्कृति में योगदान देते हैं।
उनकी विरासत केवल उद्योग तक ही सीमित नहीं थी। उन्होंने ओला इलेक्ट्रिक, पेटीएम, और लेंसकार्ट जैसे कई स्टार्टअप में निवेश किया, जिससे उन्होंने भारत के युवा उद्यमियों को भी प्रेरित किया।
राष्ट्रव्यापी शोक और श्रद्धांजलि
उनकी मृत्यु के बाद से पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें एक दूरदर्शी उद्योगपति और दयालु आत्मा के रूप में याद किया। प्रमुख उद्योगपति जैसे गौतम अडानी, आनंद महिंद्रा और सुंदर पिचाई ने भी उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।
अंतिम विदाई
रतन टाटा का पार्थिव शरीर आज सुबह 10 बजे से शाम 4 बजे तक मुंबई के नेशनल सेंटर फॉर परफॉर्मिंग आर्ट्स में रखा जाएगा, जहां लोग उन्हें अंतिम श्रद्धांजलि दे सकेंगे। इसके बाद उनके अंतिम संस्कार की प्रक्रिया वर्ली में पूरी की जाएगी।