महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों ने भाजपा की असाधारण रणनीति और लचीलापन को फिर से उजागर किया। लोकसभा चुनावों में 28 सीटों से गिरकर 13 सीटों पर सिमटने के बाद भाजपा ने अपनी रणनीतियों में बड़े सुधार किए, जिसका असर विधानसभा चुनावों में साफ दिखाई दिया।
लोकसभा में गिरावट, विधानसभा में जीत की पटकथा
2019 में 28 सीटें जीतने वाली भाजपा को इस साल लोकसभा में केवल 13 सीटों से संतोष करना पड़ा। यह पहली बार था जब 2014 के बाद भाजपा को अपने सहयोगियों पर निर्भर होना पड़ा। महाराष्ट्र, जो लोकसभा में 48 सांसद भेजता है, भाजपा के लिए उत्तर प्रदेश के बाद दूसरा सबसे महत्वपूर्ण राज्य है।
भाजपा की जीत के पीछे की बड़ी रणनीतियां
- महिला कल्याण योजनाएं:
भाजपा सरकार द्वारा ‘लड़की-बहन योजना’ का क्रियान्वयन महत्वपूर्ण साबित हुआ। इस योजना के तहत महिलाओं को ₹1,500 प्रति माह नकद हस्तांतरण का लाभ दिया गया, जिसे सत्ता में आने पर ₹2,100 तक बढ़ाने का वादा किया गया। - पिछड़े वर्गों का समर्थन:
भाजपा ने अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के विभिन्न समूहों तक पहुंचने और उनके अधिकारों की रक्षा का आश्वासन देकर उनका विश्वास जीता। कांग्रेस द्वारा आरक्षण के खिलाफ कथित फेक नैरेटिव को प्रभावी ढंग से खारिज किया गया। - किसानों की नाराजगी दूर करना:
प्याज किसानों, कपास और सोयाबीन उत्पादकों को राहत प्रदान करने के साथ-साथ ऋण माफी का वादा भी किसानों को भाजपा के पक्ष में लाने में सहायक रहा। - ग्रासरूट स्तर पर अभियान:
भाजपा ने अपनी चुनावी रणनीति में जमीनी स्तर पर ध्यान केंद्रित किया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के साथ मतभेद सुलझाकर चुनावी अभियान को मजबूत किया गया। - मुख्यमंत्री पद का सवाल:
चुनावी अभियान के बीच भाजपा ने मुख्यमंत्री पद के दावेदार को लेकर अस्पष्टता बनाए रखी, जिससे विदर्भ में देवेंद्र फडणवीस की लोकप्रियता को बनाए रखने में मदद मिली। - बागी नेताओं को शांत करना:
भाजपा ने विद्रोही नेताओं को सफलतापूर्वक शांत किया, जबकि विपक्षी महाविकास आघाड़ी (एमवीए) ऐसा करने में विफल रही।
महायुति की बढ़त और एमवीए की गिरावट
शिवसेना (शिंदे गुट), अजित पवार के नेतृत्व वाले राकांपा गुट और भाजपा की महायुति 288 सीटों में से 236 सीटों पर आगे चल रही है। वहीं, विपक्षी एमवीए केवल 48 सीटों तक सिमट गई है।
भविष्य के लिए भाजपा का रोडमैप
भाजपा की यह जीत न केवल महाराष्ट्र में उनकी मजबूत पकड़ को दर्शाती है, बल्कि यह भी संकेत देती है कि केंद्र और राज्य स्तर पर रणनीतियों में तालमेल और सुधार से पार्टी आने वाले चुनावों में और मजबूत हो सकती है।
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