जम्मू-कश्मीर के सुन्दरबानी सेक्टर में भारतीय सेना के बहादुर ‘कुत्ते’ फैंटम ने एक आतंकवाद विरोधी अभियान में अपनी जान कुर्बान कर दी। फैंटम, जो एक बेल्जियम मैलिनोइस नस्ल का कुत्ता था, इस अभियान का हिस्सा था और उसने दुश्मन की गोलीबारी को अपनी ओर खींचा, जिससे उसके साथियों को आगे बढ़ने में मदद मिली। सेना के ‘व्हाइट नाइट कोर’ ने इस बहादुर कुत्ते की कुर्बानी को सलाम करते हुए कहा, “हम अपने असली हीरो की इस सर्वोच्च बलिदान को कभी नहीं भूल सकते।”
यह घटना जम्मू-कश्मीर के अखनूर के असन क्षेत्र में हुई, जहां आतंकियों ने एक सेना के वाहन पर हमला किया था। इस घटना के बाद सेना ने आतंकवादियों की तलाश के लिए बड़े पैमाने पर सर्च अभियान शुरू किया। इस खोजबीन के दौरान फैंटम ने आतंकवादियों की स्थिति का पता लगाया और अपनी जान पर खेलकर सेना की मदद की। उसके इस अद्वितीय साहस और समर्पण ने न केवल आतंकियों को निशाना बनाने में मदद की बल्कि अपने साथियों की सुरक्षा भी सुनिश्चित की।
फैंटम का परिचय
फैंटम का जन्म 25 मई, 2020 को हुआ था, और यह सेना के ‘के9 यूनिट’ का हिस्सा था। इस विशेष यूनिट में कुत्तों को विशेष रूप से आतंकवाद विरोधी और काउंटर-इंसर्जेंसी अभियानों के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। फैंटम को मेरठ के ‘रेमाउंट वेटरिनरी कोर’ से सेना में शामिल किया गया और 12 अगस्त, 2022 को उसे जम्मू-कश्मीर में तैनात किया गया। अपने कम समय में ही इस कुत्ते ने कई अभियानों में सक्रिय भूमिका निभाई और अपने साहस और वफादारी से सभी का दिल जीता।
सेना के कुत्तों की भूमिका और प्रशिक्षण
सेना के के9 यूनिट के कुत्ते खतरनाक अभियानों का हिस्सा होते हैं और कई बार इन्हें जान जोखिम में डालकर अपने साथियों की सुरक्षा करनी होती है। बेल्जियम मैलिनोइस नस्ल के कुत्तों को खास तौर पर सेना में इसलिए शामिल किया जाता है क्योंकि वे न केवल शारीरिक रूप से ताकतवर होते हैं, बल्कि उनकी सूंघने की क्षमता और प्रशिक्षण के प्रति समर्पण भी गजब का होता है। कुत्तों को विभिन्न प्रकार की प्रशिक्षण प्रक्रियाओं से गुजारा जाता है जिसमें गंध की पहचान, खतरे का पूर्वानुमान और अन्य जटिल गतिविधियों को अंजाम देना शामिल है।
सेना के प्रति फैंटम की वफादारी
इस अभियान के दौरान, फैंटम की भूमिका एक प्रमुख भूमिका में रही। उसने अपने कमांडरों के इशारों को मानते हुए आतंकियों की ओर बढ़ा, जिससे सेना को न केवल आतंकियों के ठिकाने का पता लगा बल्कि उसने खुद पर गोलियां भी झेलीं ताकि आतंकियों का ध्यान अपनी ओर खींच सके। सेना की ओर से इस बलिदान की सराहना करते हुए कहा गया कि उसकी वफादारी और साहस को कभी नहीं भुलाया जाएगा।
फैंटम से पहले भी सेना के कई कुत्तों ने अपनी जान की बाजी लगाई है। पिछले वर्ष भी एक छह वर्षीय कुत्ता ‘केंट’ ने आतंकियों से लड़ते हुए अपने सैनिक साथी की जान बचाई थी और खुद गोलीबारी का शिकार हो गया था। ऐसे कुत्तों की कहानियां हमारे देश के लिए प्रेरणा स्रोत बनती हैं और यह दिखाती हैं कि वफादारी और साहस की कोई सीमा नहीं होती।
फैंटम को श्रद्धांजलि
फैंटम की इस कुर्बानी के बाद, सेना ने उसकी अंतिम यात्रा में तिरंगे में लपेट कर उसे अंतिम विदाई दी। सेना के अधिकारियों और जवानों ने उसके प्रति सम्मान व्यक्त करते हुए कहा कि उसकी बहादुरी और देशभक्ति हमेशा याद की जाएगी। व्हाइट नाइट कोर ने सोशल मीडिया पर भी श्रद्धांजलि देते हुए लिखा, “फैंटम की बहादुरी, वफादारी और समर्पण कभी नहीं भूला जाएगा।”
सेना के कुत्ते फैंटम का बलिदान यह साबित करता है कि यह कुत्ते भी हमारे सैनिकों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर देश की रक्षा में लगे रहते हैं। उनकी बहादुरी हमें यह सिखाती है कि देश की सेवा में सबसे पहले अपने कर्तव्यों का पालन होता है, चाहे इसके लिए कोई भी कीमत क्यों न चुकानी पड़े। फैंटम जैसे वीर योद्धाओं को सलाम, जिनकी कहानी भारतीय सेना और देशवासियों के लिए हमेशा प्रेरणा का स्रोत बनी रहेगी।
यह भी पढ़े: मिर्जापुर फिल्म की घोषणा: मुन्ना भैया करेंगे धमाकेदार वापसी | 2026 रिलीज़