Vedaa Movie Review: जॉन अब्राहम की फिल्म में खो गई देशभक्ति की भावना! – अच्छी मंशा लेकिन गलत दिशा

'Vedaa' Movie Review- The spirit of patriotism lost in John Abraham's film!
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देखें या नहीं?: अगर आपको जॉन अब्राहम के देशभक्ति फिल्में पसंद हैं, तो ‘परमाणु’ या ‘सत्यमेव जयते’ का पहला भाग देखें।

फ़िल्म समीक्षा: ‘Vedaa’ – एक नजर | Vedaa Movie Review

‘Vedaa’ एक ऐसी फिल्म है जो भारतीय समाज में व्याप्त जातिवाद, लैंगिक असमानता, और भ्रष्टाचार जैसे गंभीर मुद्दों को उजागर करने का प्रयास करती है। कहानी की शुरुआत एक दलित परिवार से होती है जो राजस्थान के एक छोटे से गांव में अन्याय का सामना कर रहा है। इस गांव में जाति-आधारित ‘सिस्टम’ चलता है, जहां प्रधान (अभिषेक बनर्जी) और उनके अनुयायी अत्याचार करते हैं।

फिल्म में जॉन अब्राहम ने अभिमन्यु का किरदार निभाया है, जो एक अदालत मार्शल किए गए सेना अधिकारी हैं। उनका जीवन पहले ही कई कठिनाइयों से गुजर चुका है, जिसमें उनकी पत्नी (तमन्ना भाटिया) की आतंकवादियों द्वारा हत्या भी शामिल है। अभिमन्यु अब एक निष्क्रिय और निराश व्यक्ति है, जो इस छोटे से गांव में नौकरी की तलाश में आता है और यहां की समस्याओं से जूझता है।

शर्वरी वाघ ने ‘Vedaa’ का किरदार निभाया है, जो एक दृढ़ निश्चयी दलित लड़की है और बॉक्सर बनने की इच्छा रखती है। वह कानून भी पढ़ चुकी है और अपने अधिकारों के लिए लड़ने का साहस रखती है।

कहानी का विश्लेषण

फिल्म ‘Vedaa’ की कहानी सामाजिक मुद्दों जैसे जातिवाद, लैंगिक असमानता, और भ्रष्टाचार पर आधारित है, लेकिन इसकी स्क्रिप्ट में कई समस्याएं हैं जो फिल्म के प्रभाव को कमजोर करती हैं। कहानी की शुरुआत राजस्थान के एक छोटे से गांव में होती है, जहां जातिवाद और पितृसत्तात्मक व्यवस्था का बोलबाला है। गांव का प्रधान, जिसे अभिषेक बनर्जी ने निभाया है, अपने पद और जातिगत श्रेष्ठता का दुरुपयोग करता है और दलित परिवारों को प्रताड़ित करता है।

अभिमन्यु (जॉन अब्राहम) एक अदालत मार्शल किए गए सेना अधिकारी हैं, जिनका अतीत दर्दनाक है। उन्होंने अपनी पत्नी को आतंकवादियों के हाथों खो दिया है, और अब वह एक निराश और क्रोधित व्यक्ति बन गए हैं। अभिमन्यु को गांव में एक असिस्टेंट बॉक्सिंग कोच के रूप में काम मिल जाता है, लेकिन कहानी का यह हिस्सा अप्रासंगिक और कमजोर लगता है।

शर्वरी वाघ का किरदार, Vedaa, एक मजबूत महिला का है जो जाति और लिंग के आधार पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ खड़ी होती है। वह एक बॉक्सर बनने की इच्छा रखती है और कानून का अध्ययन भी किया है, जिससे उसे अपने अधिकारों के लिए लड़ने की हिम्मत मिलती है। हालांकि, फिल्म में Vedaa के बॉक्सिंग कौशल का कोई महत्वपूर्ण उपयोग नहीं दिखाया गया है, जो कहानी की संभावनाओं को सीमित करता है।

फिल्म की कहानी में तर्क का अभाव है। उदाहरण के लिए, जब Vedaa और अभिमन्यु गांव से भागते हैं, तो वे एक पांच साल से निष्क्रिय पड़े एम्बुलेंस में भागने का निर्णय लेते हैं, जिसमें अचानक से पर्याप्त ईंधन मिल जाता है। ऐसे असंगत और अविश्वसनीय घटनाक्रम कहानी को कमजोर बनाते हैं और दर्शकों को भ्रमित करते हैं।

कहानी का मुख्य उद्देश्य जातिवाद और सामाजिक असमानता के खिलाफ आवाज उठाना था, लेकिन फिल्म में यह उद्देश्य कहीं खो सा गया है। लेखन में कई बार ऐसी स्थितियां उत्पन्न होती हैं जहां घटनाओं का तार्किक क्रम टूट जाता है, जिससे कहानी का प्रवाह और प्रभाव दोनों ही कमजोर हो जाते हैं।

अभिनय

शर्वरी वाघ ने अपनी भूमिका में अच्छा प्रदर्शन किया है, लेकिन फिल्म का कमजोर लेखन उन्हें सीमित कर देता है। जॉन अब्राहम ने कुछ जबरदस्त एक्शन सीक्वेंस किए हैं, लेकिन उनकी देशभक्ति वाली फिल्मों की श्रृंखला में यह फिल्म कमजोर कड़ी साबित होती है।

अभिषेक बनर्जी ने फिल्म में सबसे अच्छा प्रदर्शन किया है। उनका खलनायकी भरा किरदार हर दृश्य में चमकता है। अन्य कलाकार, जैसे अश्विनी कलसेकर और तन्या माल्हारा, अपने-अपने किरदारों में सही तालमेल नहीं बैठा पाए हैं।

निर्देशन और संगीत

निखिल आडवाणी द्वारा निर्देशित इस फिल्म का निर्देशन उम्मीदों पर खरा नहीं उतरता। आडवाणी ने पहले भी ‘डी-डे’ जैसी फिल्में बनाई हैं, जिनमें निर्देशन की गुणवत्ता स्पष्ट रूप से दिखाई देती है, लेकिन ‘Vedaa’ में वह गुणवत्ता गायब है। फिल्म के निर्देशन में एक स्पष्ट दिशा का अभाव है, जिससे यह अनुभव होता है कि फिल्म को सही मार्गदर्शन नहीं मिल पाया।

निर्देशक का ध्यान कथानक के मुख्य बिंदुओं पर नहीं था, बल्कि फिल्म को एक्शन और नाटकीयता से भरने पर अधिक था। लेकिन, न तो एक्शन और न ही नाटकीयता प्रभावी साबित होती है। कई बार ऐसा लगता है कि निर्देशक ने फिल्म की कहानी को अपनी पूरी क्षमता के साथ नहीं समझा और इसलिए कहानी का मूल उद्देश्य भी दर्शकों तक प्रभावी तरीके से नहीं पहुंच पाया।

संगीत की बात करें तो, फिल्म का संगीत बहुत साधारण है। फिल्म में कोई भी गीत या बैकग्राउंड स्कोर ऐसा नहीं है जो दर्शकों के मन में लंबे समय तक बना रहे। “मम्मीजी” नामक एक आइटम गीत है, जो फिल्म में अपनी प्रासंगिकता खो देता है और सिर्फ एक व्यावसायिक प्रयास की तरह प्रतीत होता है।

“होलीयां” गीत संगीत में थोड़ा सा प्रभाव डालता है, लेकिन वह भी फिल्म के सन्दर्भ में कोई महत्वपूर्ण भूमिका नहीं निभाता। कुल मिलाकर, संगीत की कमी फिल्म के समग्र अनुभव को और भी कमजोर बना देती है।

निर्देशन और संगीत का महत्व एक फिल्म में बहुत अधिक होता है, लेकिन ‘Vedaa’ में ये दोनों ही पक्ष कमजोर साबित होते हैं। निर्देशक का ध्यान कहानी के विषय और उद्देश्य पर नहीं रहा, और संगीत भी फिल्म को सहारा देने में विफल साबित हुआ। इसका परिणाम यह हुआ कि फिल्म दर्शकों के दिल और दिमाग पर कोई गहरी छाप नहीं छोड़ पाई।

अंतिम शब्द

‘Vedaa’ एक ऐसी फिल्म है जो अपनी अच्छी मंशा के बावजूद दर्शकों को निराश करती है। फिल्म की कमजोर स्क्रिप्ट और निर्देशन ने इसे एक अधूरी कहानी बना दिया है। यह फिल्म न केवल भारतीय सेना और अन्य संस्थानों का मजाक उड़ाती है, बल्कि दर्शकों के धैर्य की भी परीक्षा लेती है। अगर आप एक मजबूत संदेश वाली फिल्म की तलाश में हैं, तो ‘Vedaa’ से बचें।

Vedaa Trailer

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Sophia Ansari
सोफिया अंसारी "ख़बर हरतरफ" की प्रमुख संवाददाता हैं, जो टीवी सीरियल समाचारों की विशेषज्ञ हैं। उनका विशेष लेखन और ताजा खबरें दर्शकों के बीच बेहद लोकप्रिय हैं। सोफिया ने अपनी बेबाक रिपोर्टिंग और गहन विश्लेषण से टीवी इंडस्ट्री में एक खास पहचान बनाई है। उनके समर्पण और मेहनत के कारण "ख़बर हरतरफ" को निरंतर सफलता मिलती है।

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