भारतीय सिनेमा के दिग्गज अभिनेता और राजनेता मिथुन चक्रवर्ती ने बॉलीवुड में अपने शुरुआती संघर्षों के दौरान जिस रंगभेद का सामना किया, उसके बारे में खुलकर बात की। हाल ही में, उन्हें 70वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह में प्रतिष्ठित दादासाहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने यह सम्मान उन्हें नई दिल्ली के विज्ञान भवन में प्रदान किया, जो भारतीय सिनेमा में आजीवन योगदान के लिए सर्वोच्च सम्मान है। इस मौके पर मिथुन ने अपने करियर के शुरुआती दिनों में अनुभव किए गए पूर्वाग्रहों और चुनौतियों के बारे में खुलासा किया।
रंगभेद से संघर्ष और सफलता की ओर पहला कदम
मिथुन चक्रवर्ती ने अपने पुरस्कार स्वीकृति भाषण में बॉलीवुड में अपने शुरुआती दिनों के संघर्षों का जिक्र करते हुए कहा कि कई लोगों ने उन्हें कहा कि “गहरे रंग के अभिनेता बॉलीवुड में नहीं टिक सकते।” उन्होंने उस समय ईश्वर से प्रार्थना की कि उनका रंग बदल जाए, ताकि वह इस पूर्वाग्रह से बच सकें। लेकिन अंततः उन्होंने यह स्वीकार कर लिया कि वह अपने रंग को बदल नहीं सकते। इसके बजाय उन्होंने अपने नृत्य कौशल पर ध्यान केंद्रित किया और अपने प्रदर्शन को इतना उत्कृष्ट बनाने का संकल्प लिया कि दर्शक उनके रंग की परवाह न करें। यही जज्बा और आत्मविश्वास उन्हें भारतीय सिनेमा के “सेक्सी, डस्की बंगाली बाबू” के रूप में पहचान दिलाने में कामयाब हुआ।
अभिनेता से अल पचीनो बनने का सफर
मिथुन ने अपने पहले राष्ट्रीय पुरस्कार के बाद अपने जीवन में आई भावनात्मक उथल-पुथल के बारे में भी बताया। उनकी पहली फिल्म मृगया (1976) में उनके सानथाल विद्रोही के किरदार ने न केवल दर्शकों का दिल जीता, बल्कि उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार भी दिलाया। मिथुन ने बताया कि इस पुरस्कार के बाद उन्हें लगा कि वह ‘अल पचीनो’ बन गए हैं। लेकिन यह भ्रम तब टूटा जब एक निर्माता ने उन्हें अपने ऑफिस से बाहर निकाल दिया। उस दिन उन्हें एहसास हुआ कि वह अल पचीनो नहीं हैं और यहीं से उनके वास्तविक करियर की शुरुआत हुई।
मेहनत और समर्पण से मिली सफलता
मिथुन ने यह भी कहा कि उन्होंने अपने करियर में कभी कोई चीज़ ‘थाली में परोसी’ हुई नहीं पाई, बल्कि जो कुछ भी उन्होंने हासिल किया वह उनकी कड़ी मेहनत और समर्पण का परिणाम था। अपने जीवन में कई कठिनाइयों का सामना करने के बावजूद, उन्होंने कभी हार नहीं मानी। हालांकि, उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि वह कई बार अपने संघर्षों को लेकर भगवान से सवाल किया करते थे। लेकिन दादासाहेब फाल्के पुरस्कार प्राप्त करने के बाद उन्हें अपने जीवन की उपलब्धियों पर संतोष और शांति मिली है।
मिथुन चक्रवर्ती के फ़िल्मी सफर की महत्वपूर्ण झलकियां
मिथुन, जिन्हें उनके प्रशंसक प्यार से ‘मिथुन दा’ कहते हैं, ने 1976 में मृगया के साथ अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की थी। इस फिल्म में उनके दमदार अभिनय ने न केवल आलोचकों को प्रभावित किया, बल्कि उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पहचान भी दिलाई। इसके बाद उन्होंने ताहादेर कथा (1992) और स्वामी विवेकानंद (1998) जैसी फिल्मों के लिए भी सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार जीता।
उनकी करियर की खासियत सिर्फ उनके अभिनय तक सीमित नहीं रही, बल्कि उन्होंने डांस की दुनिया में भी अपनी एक खास पहचान बनाई। आई एम ए डिस्को डांसर, जिमी जिमी और सुपर डांसर जैसे गानों ने उन्हें भारतीय सिनेमा का डांसिंग सुपरस्टार बना दिया। उनकी इन डांस परफॉरमेंस ने उन्हें हर उम्र के दर्शकों का चहेता बना दिया, और ये गाने आज भी लोकप्रिय हैं।
हाल ही में, मिथुन चक्रवर्ती ने विवेक अग्निहोत्री की फिल्म द कश्मीर फाइल्स में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसने उनके अभिनय की एक और शानदार छवि प्रस्तुत की।
मिथुन का प्रेरणादायक सफर
मिथुन चक्रवर्ती की कहानी उन सभी के लिए प्रेरणा है जो अपने सपनों का पीछा करते हुए संघर्षों का सामना करते हैं। रंगभेद जैसे समाजिक मुद्दों से लेकर फिल्मी दुनिया के चकाचौंध भरे ग्लैमर तक, मिथुन ने हर मोर्चे पर अपनी पहचान बनाई। वह अपने जीवन के हर दौर में आत्म-विश्वास और मेहनत के बल पर खड़े रहे, जिससे उन्हें भारतीय सिनेमा के महानतम अभिनेताओं में से एक का दर्जा मिला।
मिथुन चक्रवर्ती ने जिस तरीके से अपने संघर्षों का सामना किया और सफलता हासिल की, वह भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय है। उनकी कहानी इस बात का प्रमाण है कि मेहनत और समर्पण से कोई भी कठिनाई पार की जा सकती है। चाहे वह रंगभेद हो, आर्थिक संघर्ष हो या फिल्मी दुनिया में अपनी पहचान बनाना, मिथुन ने हर चुनौती को अपने हौसले और दृढ़ता से मात दी। उनका जीवन एक मिसाल है कि सच्ची प्रतिभा और मेहनत के दम पर इंसान कुछ भी हासिल कर सकता है।
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