---Advertisement---

लता मंगेशकर और मोहम्मद रफ़ी ने कैसे स्वतंत्रता सेनानियों को दादरा और नगर हवेली की मुक्ति के लिए हथियार खरीदने में मदद की

By
Last updated:

Follow Us

दादरा और नगर हवेली की मुक्ति की कहानी भारतीय इतिहास के उन अनछुए अध्यायों में से एक है, जिनके बारे में कम ही लोग जानते हैं। 2 अगस्त 1954 को, जब इन दो छोटे से क्षेत्रों पर भारतीय तिरंगा फहराया गया, तब तक यह क्षेत्र लगभग 175 वर्षों से पुर्तगाली शासन के अधीन था। इस मुक्ति में सबसे उल्लेखनीय भूमिका निभाने वालों में से दो नाम थे: लता मंगेशकर और मोहम्मद रफ़ी। इन दो महान गायकों ने न केवल अपनी आवाज़ों के माध्यम से भारत की स्वतंत्रता के लिए प्रेरणा दी, बल्कि स्वतंत्रता सेनानियों की मदद के लिए धन जुटाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

दादरा और नगर हवेली की मुक्ति का संघर्ष

1783 और 1785 में पुर्तगालियों ने दादरा और नगर हवेली पर कब्जा किया, और यह क्षेत्र उनके अधीन 1954 तक रहा। स्वतंत्रता संग्राम की आग यहां भी धधक रही थी, और 1954 में स्थानीय राष्ट्रवादियों ने हथियारबंद संघर्ष के जरिए इसे मुक्त कराने की योजना बनाई। हालांकि, इस संघर्ष को सफल बनाने के लिए धन की सख्त आवश्यकता थी।

संगीत का योगदान: लता मंगेशकर और मोहम्मद रफ़ी का कंसर्ट

इस संघर्ष में संगीतकार और स्वतंत्रता सेनानी सुधीर फड़के की भूमिका भी अद्वितीय थी। फड़के ने एक अनोखा विचार प्रस्तुत किया: एक कंसर्ट आयोजित कर धन जुटाने का। उन्होंने इस उद्देश्य के लिए लता मंगेशकर से संपर्क किया। पहले तो लता जी इस योजना से सहमत नहीं थीं, लेकिन जब फड़के ने उन्हें बताया कि यह दादरा और नगर हवेली की मुक्ति केवल गोवा की स्वतंत्रता का प्रील्यूड है, तो उनके दिल में इस संघर्ष के लिए सहानुभूति जागी। लता मंगेशकर का परिवार गोवा के मंगेशी गांव से ताल्लुक रखता था, और पुर्तगालियों द्वारा वहां के मंदिरों के भक्तों को परेशान किए जाने की घटनाओं ने लता जी को इस संघर्ष में शामिल होने के लिए प्रेरित किया।

लता मंगेशकर ने इस कंसर्ट में गाने के लिए तुरंत हामी भर दी और इसके साथ ही मोहम्मद रफ़ी को भी इस कार्य में शामिल करने का सुझाव दिया। जब फड़के ने मोहम्मद रफ़ी से संपर्क किया, तो उन्होंने भी बिना किसी झिझक के इस राष्ट्रीय कर्तव्य में शामिल होने की स्वीकृति दी। रफ़ी साहब ने यहां तक कहा कि वे अपनी रेल यात्रा का खर्च खुद वहन करेंगे, क्योंकि यह देश उनका भी है और यह उनकी जिम्मेदारी है कि वे अपने हिस्से की भूमिका निभाएं।

कंसर्ट और उसका प्रभाव

यह कंसर्ट मूल रूप से अप्रैल 1954 में आयोजित किया जाना था, लेकिन दुर्भाग्यवश लता मंगेशकर का उस दिन एक सड़क दुर्घटना में चोटिल हो जाने के कारण कंसर्ट को स्थगित करना पड़ा। बाद में, यह कंसर्ट 2 मई 1954 को पुनः आयोजित किया गया। यद्यपि इस बार पहले की तरह भीड़ नहीं थी, फिर भी इस आयोजन से पर्याप्त धन जुटाया गया।

इस कंसर्ट से जुटाए गए धन से स्वतंत्रता सेनानियों ने हैदराबाद के काले बाजार से पांच राइफलें और तीन पिस्तौलें खरीदीं। केवल 29 स्वतंत्रता सेनानियों ने इन हथियारों के साथ 300 से अधिक सशस्त्र पुर्तगालियों पर हमला किया और उन्हें दादरा और नगर हवेली से बाहर निकाल दिया।

निष्कर्ष

लता मंगेशकर और मोहम्मद रफ़ी के इस योगदान को इतिहास में शायद वह जगह नहीं मिली, जो मिलनी चाहिए थी। लेकिन यह स्पष्ट है कि इन महान कलाकारों की इस महत्वपूर्ण भूमिका ने न केवल दादरा और नगर हवेली की मुक्ति में योगदान दिया, बल्कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम के प्रति उनकी गहरी प्रतिबद्धता को भी दर्शाया। ये दोनों महान कलाकार भारतीय संगीत के पथ-प्रदर्शक थे, जिन्होंने न केवल अपने संगीत से लोगों का दिल जीता, बल्कि देश की आजादी के लिए भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।

यह भी पढ़े: WhatsApp में मेटा AI से बात करने के लिए वॉइस चैट मोड फीचर पर काम चल रहा है: रिपोर्ट

Sophia Ansari

सोफिया अंसारी "ख़बर हरतरफ" की प्रमुख संवाददाता हैं, जो टीवी सीरियल समाचारों की विशेषज्ञ हैं। उनका विशेष लेखन और ताजा खबरें दर्शकों के बीच बेहद लोकप्रिय हैं। सोफिया ने अपनी बेबाक रिपोर्टिंग और गहन विश्लेषण से टीवी इंडस्ट्री में एक खास पहचान बनाई है। उनके समर्पण और मेहनत के कारण "ख़बर हरतरफ" को निरंतर सफलता मिलती है।

For Feedback - [email protected]

Join WhatsApp

Join Now

Leave a Comment