बॉलीवुड और साउथ इंडस्ट्री के कई चर्चित सितारे अक्सर सुर्खियों में रहते हैं, लेकिन जब मामला हत्या जैसे गंभीर अपराध का हो, तो कानून की नजर में कोई भी व्यक्ति बड़ा नहीं होता। कन्नड़ फिल्म इंडस्ट्री के मशहूर अभिनेता दर्शन का नाम हाल ही में रेणुकास्वामी हत्या मामले में आया और इस केस ने पूरे देश का ध्यान खींचा।
गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक हाईकोर्ट द्वारा दी गई दर्शन की जमानत को रद्द करते हुए साफ कहा कि हाईकोर्ट का आदेश गंभीर कानूनी खामियों से भरा हुआ है। जस्टिस जेबी पारडीवाला और आर महादेवन की बेंच ने कहा कि यह आदेश ‘विशेष कारण’ दर्ज किए बिना ही पारित कर दिया गया था, जो हत्या जैसे गंभीर मामलों में जरूरी है।
क्या है मामला
11 जून 2024 को दर्शन और अभिनेत्री पवित्रा गौड़ा को गिरफ्तार किया गया था। उन पर आरोप है कि उन्होंने 33 वर्षीय रेणुकास्वामी का अपहरण कर उसकी हत्या कर दी। पुलिस चार्जशीट के अनुसार, रेणुकास्वामी पवित्रा को अश्लील संदेश और तस्वीरें भेज रहा था और उस पर दर्शन के वैवाहिक जीवन में तनाव बढ़ाने का भी आरोप था।
9 जून 2024 को रेणुकास्वामी का शव एक नाले में मिला। पुलिस जांच में पाया गया कि हत्या से पहले उसे बुरी तरह पीटा गया था। पवित्रा को इस मामले में मुख्य आरोपी और दर्शन को दूसरे नंबर का आरोपी बताया गया।
हाईकोर्ट के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट की नाराज़गी
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कर्नाटक हाईकोर्ट ने जमानत देते समय गवाहों के बयान, कथित विरोधाभास और देरी जैसे मुद्दों पर पहले से राय बना ली, जो कि ट्रायल कोर्ट का काम है। इस तरह का पूर्व-निर्णय कानूनी प्रक्रिया के खिलाफ है।
अदालत ने कहा कि ऐसे गंभीर अपराध में, जहां गवाहों को प्रभावित करने और सबूतों से छेड़छाड़ की आशंका हो, जमानत देने के लिए ठोस और विशेष कारण होना जरूरी है। यहां ऐसा कोई कारण नहीं दिया गया था।
सुप्रीम कोर्ट का सख्त संदेश
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि न्याय व्यवस्था में सभी समान हैं, चाहे वह कितना भी बड़ा नाम या प्रभावशाली व्यक्ति क्यों न हो। जस्टिस पारडीवाला ने यहां तक कहा कि अगर किसी सबूत या फोटो से पता चलता है कि आरोपी को जेल में वीआईपी सुविधाएं मिल रही हैं, तो जेल अधीक्षक को तुरंत निलंबित कर दिया जाएगा।
राज्य सरकार की अपील
कर्नाटक सरकार ने हाईकोर्ट के 13 दिसंबर 2024 के जमानत आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। 6 जनवरी 2025 को इस अपील को सुनवाई के लिए स्वीकार किया गया और अंततः अदालत ने दर्शन व छह अन्य आरोपियों की जमानत रद्द कर दी। साथ ही ट्रायल को तेजी से पूरा करने का निर्देश भी दिया गया।
न्याय व्यवस्था और जनता की उम्मीदें
इस पूरे मामले में सुप्रीम कोर्ट का रुख यह संदेश देता है कि कानून के सामने कोई भी व्यक्ति विशेष अधिकारों का हकदार नहीं है। चाहे वह सिनेमा का सितारा हो या एक आम आदमी, हत्या जैसे गंभीर आरोपों में न्याय की प्रक्रिया निष्पक्ष और पारदर्शी रहनी चाहिए।
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