फायरफाइटर्स की जिंदगी पर केंद्रित फिल्में भारतीय सिनेमा में बेहद कम देखने को मिलती हैं। राहुल ढोलकिया की नई फिल्म अग्नि ने इस अनछुए विषय को उठाने की कोशिश की है। यह फिल्म सीधे अमेज़न प्राइम वीडियो पर रिलीज़ हुई है और इसमें दमकलकर्मियों के संघर्ष, उनके महत्व, और समाज में उनके प्रति उपेक्षा को उजागर करने का प्रयास किया गया है। हालांकि, फिल्म की कहानी प्रभावशाली है, लेकिन इसका लेखन काफी घिसा-पिटा और अनुमानित है।
दमकलकर्मियों की अनदेखी पर कहानी
फिल्म की कहानी 2017 में सेट की गई है। इसका मुख्य पात्र विट्ठल राव (प्रतीक गांधी), मुंबई फायर ब्रिगेड में एक वरिष्ठ अधिकारी है। विट्ठल और उनकी टीम लगातार अपनी जान जोखिम में डालकर आग बुझाने का काम करते हैं। लेकिन उन्हें न तो समाज से सम्मान मिलता है, न ही उनके परिवार से। विट्ठल का बेटा भी उसकी बजाय अपने चाचा, एक पुलिस अफसर, को अपना हीरो मानता है।
एक दिन विट्ठल की टीम की सदस्य अमवी को शक होता है कि हालिया आग की घटनाएं एक साजिश का हिस्सा हो सकती हैं। इसके बाद, आग की इन घटनाओं के पीछे छिपे सच को उजागर करने की टीम की कोशिश इस फिल्म की मुख्य धारा है।
कमजोर पटकथा
हालांकि फिल्म का विषय नया और अनूठा है, लेकिन इसकी पटकथा इतनी अनुमानित है कि दर्शक अगले दृश्य का अंदाजा आसानी से लगा सकते हैं। जब विट्ठल का बेटा अपने चाचा की तारीफ करता है, तो दर्शक पहले ही जान जाते हैं कि कहानी कैसे आगे बढ़ेगी। इसी तरह, एक रोमांटिक जोड़े के बीच भविष्य की बातों के बाद tragedy होना भी बेहद साधारण प्रतीत होता है।
शानदार सिनेमैटोग्राफी, लेकिन साधारण VFX
फिल्म में के.यू. मोहनन की सिनेमैटोग्राफी सराहनीय है। ड्रोन शॉट्स का उपयोग और रंगों का संतुलन दृश्य प्रभाव को बेहतर बनाता है। हालांकि, कुछ दृश्यों में VFX की गुणवत्ता और किरदारों के प्रदर्शन में असंतुलन स्पष्ट दिखता है।
अभिनय में दमदार प्रदर्शन
प्रतीक गांधी ने विट्ठल राव के किरदार में शानदार प्रदर्शन किया है। उनके अभिनय में गुस्सा और असहायता दोनों देखने को मिलती है। दिव्येंदु शर्मा ने एक पुलिस अफसर की भूमिका निभाई है, लेकिन उनका किरदार ज्यादा गहराई लिए बिना मनोरंजन तक सीमित रह जाता है। सैयामी खेर और सई ताम्हणकर ने अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय किया है, हालांकि उनके किरदार ज्यादा चुनौतीपूर्ण नहीं थे।
फिल्म अग्नि का उद्देश्य फायरफाइटर्स के संघर्ष को उजागर करना और लोगों को नागरिक सुरक्षा के प्रति जागरूक करना था। लेकिन कमजोर पटकथा और घिसे-पिटे प्लॉट ने इस संदेश की प्रभावशीलता को कम कर दिया। यदि पटकथा में नयापन होता, तो यह फिल्म दर्शकों के दिल में गहरी छाप छोड़ सकती थी।
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