नई दिल्ली: GST काउंसिल द्वारा सेकंड-हैंड कारों पर 12% से बढ़ाकर 18% GST करने के फैसले ने प्री-ओन्ड कार उद्योग में चिंता पैदा कर दी है। यह निर्णय 21 दिसंबर को काउंसिल द्वारा लिया गया था, जो वाहनों के व्यापक कर ढांचे के साथ तालमेल बैठाने के लिए लागू किया गया है।
क्या है नया नियम?
वर्तमान में, पेट्रोल, LPG, और CNG वाहनों (1200cc से अधिक इंजन क्षमता और 4000 मिमी से अधिक लंबाई वाले) और डीजल वाहनों (1500cc या उससे अधिक इंजन क्षमता वाले) पर 18% GST लगता है। नई व्यवस्था के तहत, यह टैक्स दर उन वाहनों पर भी लागू होगी जो पहले 12% पर GST लिए जाते थे, जैसे पुराने इलेक्ट्रिक वाहन (EV) जब कंपनियां उन्हें पुनः बेचेंगी।
किन पर नहीं लागू होगा नया टैक्स?
यह नई दर केवल व्यवसायिक पुनर्विक्रेता (dealerships) पर लागू होगी। व्यक्तिगत विक्रेता और खरीदार इससे अछूते रहेंगे और उन्हें पुराने 12% GST दर पर लेनदेन करने की अनुमति होगी।
सेकंड-हैंड कार उद्योग के लिए बड़ी चुनौती
इंडस्ट्री विशेषज्ञों के अनुसार, इस बढ़े हुए टैक्स से सेकंड-हैंड कारों की मांग पर असर पड़ेगा। सेकंड-हैंड कारें भारत के टियर 2 और टियर 3 शहरों में विशेष रूप से लोगों की गतिशीलता का मुख्य साधन हैं।
Cars24 के संस्थापक विक्रम चोपड़ा ने कहा, “सेकंड-हैंड कारें न केवल व्यक्तियों की मदद करती हैं बल्कि आर्थिक विकास में योगदान देती हैं। वे छोटे व्यवसायों, डीलर्स और सेवा प्रदाताओं का समर्थन करती हैं और वाहन के जीवन-चक्र को बढ़ाकर सर्कुलर इकोनॉमी को बढ़ावा देती हैं।”
उन्होंने सुझाव दिया कि कर बढ़ाने के बजाय, “पुरानी गाड़ियों को सुरक्षित, हरित और भरोसेमंद विकल्प बनाने के लिए स्पष्ट नीतियां और सुदृढ़ कार्यान्वयन आवश्यक हैं।”
अधिक टैक्स, अधिक खर्च
पुरानी कारों का रखरखाव महंगा होता है। इनकी मरम्मत और स्पेयर पार्ट्स पर पहले से ही 18% जीएसटी लगता है। अब, नई टैक्स दर से सेकंड-हैंड कारें आम आदमी के लिए उतनी सस्ती नहीं रहेंगी।
FY23 में भारत में 51 लाख सेकंड-हैंड कारों की बिक्री हुई थी, जिसकी कीमत 34 बिलियन डॉलर आंकी गई थी। FY28 तक, इस बाजार के 73 बिलियन डॉलर तक पहुंचने और 1.09 करोड़ कारें बेचने का अनुमान है। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि यह टैक्स वृद्धि इस बाजार की विकास दर को धीमा कर सकती है।
कुल मिलाकर क्या बदलेगा?
इस नई कर व्यवस्था से सेकंड-हैंड कार उद्योग पर अतिरिक्त वित्तीय दबाव पड़ सकता है। उद्योग विश्लेषकों का कहना है कि उपभोक्ताओं पर इसका सीधा प्रभाव पड़ेगा क्योंकि पुनर्विक्रेता इस अतिरिक्त टैक्स को ग्राहकों पर डाल सकते हैं।
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