स्कूलों में इतिहास: औरंगजेब की पढ़ाई और संभाजी महाराज की कमी का रहस्य

इस लेख में जानें कैसे इतिहास के पन्नों में संभाजी महाराज की कमी और औरंगजेब की व्यापक चर्चा के पीछे छुपे कारण, तथा नई पाठ्यपुस्तकों में सुधार के प्रयासों पर हमारा व्यक्तिगत अनुभव।

History in schools: The mystery behind the lack of studies on Aurangzeb and Sambhaji Maharaj
History in schools: The mystery behind the lack of studies on Aurangzeb and Sambhaji Maharaj
WhatsApp Group Join Now

Key Highlights

  • इतिहास की विसंगति: स्कूलों में औरंगजेब की विस्तृत जानकारी, लेकिन संभाजी महाराज का न्यूनतम उल्लेख।
  • सोशल मीडिया पर बहस: Aakash Chopra और अन्य उपयोगकर्ताओं द्वारा उठाए गए सवाल।
  • NCERT पाठ्यपुस्तकों का विश्लेषण: वर्तमान और पुराने संस्करणों में इतिहास की प्रस्तुति में अंतर।
  • नए पाठ्यपुस्तकों का निर्माण: NCERT द्वारा नई NCFs के आधार पर पाठ्यपुस्तकों में सुधार के प्रयास।
  • व्यक्तिगत अनुभव: मेरे अपने स्कूल के दिनों से जुड़ी यादें और विचार।

मेरे स्कूल के दिनों की यादें आज भी उतनी ही ताजा हैं, जब हम इतिहास के पन्नों में खो जाते थे। पर क्या आपने कभी सोचा है कि क्यों हमें औरंगजेब की कहानी इतनी विस्तार से सुनाई जाती है, जबकि हमारे वीर मराठा शूरवीर, संभाजी महाराज के बारे में केवल झलक मिलती है? यह सवाल तब और भी गर्म हो गया जब ‘Chhaava‘ जैसी फिल्मों और सोशल मीडिया पर बहस ने इतिहास के इस पक्ष को उजागर किया।

औरंगजेब बनाम संभाजी: इतिहास की दो कहानियाँ

NCERT के इतिहास की पाठ्यपुस्तकों में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है कि किस तरह औरंगजेब के शासनकाल की चुनौतियाँ, आर्थिक समस्याएँ और राजनीतिक संघर्षों को प्रमुखता से प्रस्तुत किया गया है। उदाहरण के तौर पर, कक्षा सात और आठ की पुस्तकों में औरंगजेब के शासनकाल के दौरान हुए संघर्षों और दीवारों पर लिखी कहानी के माध्यम से उनका वर्णन किया गया है। वहीं, संभाजी महाराज की उपलब्धियाँ और उनकी वीरता का केवल एक चित्रात्मक उल्लेख ही मिलता है, जिससे यह सवाल उठता है कि क्यों इस महान योद्धा का इतिहास उतनी गंभीरता से नहीं पढ़ाया जाता?

सोशल मीडिया की आवाज़

इस मुद्दे पर क्रिकेट कमेंटेटर Aakash Chopra ने एक पोस्ट में कहा, “आज Chhaava देखने के बाद मेरे मन में यही सवाल उठा हम स्कूल में संभाजी महाराज की वीरता का पूरा ब्यौरा क्यों नहीं सुन पाते?” इसी तरह, सोशल मीडिया पर कई अन्य उपयोगकर्ताओं ने भी अपनी भावनाएँ व्यक्त कीं। शुबम अग्रवाल ने लिखा, “हमारे इतिहास में विदेशी आक्रमणकारियों की प्रशंसा हो गई है, लेकिन हमारे सच्चे वीरों की कहानियाँ अनसुनी रह गई हैं।” इन टिप्पणियों ने मुझे भी विचार करने पर मजबूर कर दिया कि क्या हमारे इतिहास में संतुलन बना रह पाता है या कुछ अध्याय अनजाने में रह जाते हैं।

पाठ्यपुस्तकों का शोध और NCERT की नई पहल

हाल के वर्षों में NCERT ने अपने पुराने पाठ्यपुस्तकों की समीक्षा करते हुए यह महसूस किया है कि कुछ विषयों में सुधार की आवश्यकता है। कक्षा आठ की किताब में मराठा शासकों का केवल चित्रात्मक प्रदर्शन देखने को मिलता है, जिससे इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय अधूरा रह जाता है। NCERT के निदेशक डॉ. दिनेश सकलानी ने बताया कि नई पाठ्यपुस्तकों के निर्माण में नई राष्ट्रीय पाठ्यक्रम रूपरेखा (NCFs) के आधार पर सुधार किए जा रहे हैं। यह कदम न केवल पुराने तथ्यों को पुनर्जीवित करेगा, बल्कि एक संतुलित इतिहास की भी स्थापना करेगा।

व्यक्तिगत अनुभव और निष्कर्ष

मेरे लिए इतिहास का अध्ययन सिर्फ पाठ्यपुस्तकों तक सीमित नहीं रहा। मैंने खुद उन कहानियों को जानने की कोशिश की, जो हमें सिर्फ एक पक्ष से सिखाई जाती हैं। मुझे याद है, जब मैंने पहली बार अपने बुजुर्गों से बातचीत के दौरान मराठा वीरों के संघर्षों के बारे में जाना, तो वह अनुभव मेरे लिए एक नई रोशनी लेकर आया। यह अनुभव आज भी मुझे प्रेरित करता है कि हम अपने इतिहास को सम्पूर्णता से जानें और समझें।

आज के इस बहस भरे माहौल में यह आवश्यक है कि हम इतिहास के उन पहलुओं को भी उजागर करें, जिन्हें कभी पूरी तरह से समझा नहीं गया। न केवल औरंगजेब की कहानी, बल्कि संभाजी महाराज के बलिदान और वीरता को भी मान्यता मिलनी चाहिए। नई पाठ्यपुस्तकों के निर्माण की इस प्रक्रिया में हम आशा कर सकते हैं कि भविष्य में इतिहास का अध्ययन और भी व्यापक और संतुलित होगा।

यह भी पढ़े: Kiara Advani और Sidharth Malhotra: ‘जीवन का सबसे बड़ा तोहफा’ – पहली संतान की घोषणा

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here