मार्च 2025 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) और अमेरिकी स्पेस एजेंसी NASA का संयुक्त मिशन, NASA-ISRO सिंथेटिक एपर्चर रडार (NISAR), लॉन्च के लिए तैयार है। इस ₹5,000 करोड़ के मिशन का उद्देश्य अत्याधुनिक तकनीक और अद्वितीय सटीकता के साथ पृथ्वी का अवलोकन करना है।
लॉन्च डिटेल्स:
- सैटेलाइट वज़न: 2.8 टन
- लॉन्च रॉकेट: ISRO का GSLV Mk-II
- लॉन्च स्थान: सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (SDSC), श्रीहरिकोटा
- ऑर्बिट: 747 किमी की सन-सिंक्रोनस कक्षा
- मिशन अवधि: 3 वर्ष
NISAR मिशन की सोच और शुरुआत
इस मिशन की योजना 2009 में शुरू हुई थी, जो NASA और ISRO के दशक-पुराने साझेदारी को मजबूत बनाती है। शुरुआत में NASA ने जर्मनी को इस परियोजना में शामिल करने की कोशिश की थी, लेकिन ISRO की चंद्रयान-1 और RISAT-2 जैसी सफलताओं के बाद यह भारत के साथ जुड़ा।
2014 में इस मिशन को औपचारिक रूप से शुरू किया गया। इसका मुख्य उद्देश्य पृथ्वी की सतह पर होने वाले परिवर्तनों की सटीक निगरानी करना है। NISAR हर 12 दिन में पृथ्वी की ज़मीन और बर्फ की सतहों का लगभग 2 बार स्कैन करेगा।
तकनीकी विशेषताएं जो NISAR को खास बनाती हैं
1. सिंथेटिक एपर्चर रडार (SAR) तकनीक:
- रेडियो सिग्नल्स के ज़रिए उच्च-रिज़ॉल्यूशन इमेजिंग।
- रात में, घने जंगलों के बीच, और खराब मौसम में भी कार्य करने की क्षमता।
2. ड्यूल-फ्रीक्वेंसी रडार्स:
- NASA का L-बैंड (1.25 GHz) गहराई तक प्रवेश करता है।
- ISRO का S-बैंड (3.20 GHz) उच्च-रिज़ॉल्यूशन इमेजिंग सुनिश्चित करता है।
3. बड़ी रिफ्लेक्टर तकनीक:
- 12-मीटर का ड्रम-आकार का रिफ्लेक्टर NASA द्वारा प्रदान किया गया है।
- यह माइक्रोवेव सिग्नल्स को पृथ्वी की सतह तक भेजने और वापस लेने का कार्य करता है।
पर्यावरण अध्ययन और अन्य उपयोगिता
1. पृथ्वी अवलोकन:
- जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता पर शोध।
- वनस्पति और भूमि उपयोग की निगरानी।
2. भूवैज्ञानिक घटनाएं:
- भूकंप, भूस्खलन, और ज्वालामुखी गतिविधियों का पूर्वानुमान।
3. इंफ्रास्ट्रक्चर का मूल्यांकन:
- बांध, पुल और इमारतों की स्थिरता का आकलन।
4. जलवायु अनुसंधान:
- ग्लेशियर और आइस शीट्स की स्थिति पर अध्ययन।
NISAR रोजाना 26 टेराबिट डेटा उत्पन्न करेगा, जिसे वैज्ञानिक और व्यावहारिक उपयोगों के लिए तेज़ी से संसाधित किया जाएगा।
चुनौतियों पर विजय
तकनीकी जटिलताओं, विशेष रूप से रडार एंटीना रिफ्लेक्टर के साथ, NISAR मिशन को देरी का सामना करना पड़ा। हालांकि, NASA और ISRO ने इन चुनौतियों को पार करते हुए सैटेलाइट के सफल एकीकरण को सुनिश्चित किया।
2024 में NASA द्वारा तैयार रिफ्लेक्टर को बेंगलुरु स्थित ISRO के स्पेसक्राफ्ट इंटीग्रेशन और टेस्ट एस्टेब्लिशमेंट (ISITE) में एकीकृत किया गया।
इस मिशन का भविष्य पर प्रभाव
NISAR सैटेलाइट का सफल लॉन्च और संचालन न केवल पृथ्वी अवलोकन के क्षेत्र में एक मील का पत्थर साबित होगा, बल्कि NASA और ISRO की साझेदारी को और मजबूत करेगा।
यह भी पढे: क्रिसमस ईव पर 120 फुट का Asteroid पृथ्वी के करीब, NASA की नजर