लोक संगीत की दुनिया में एक बड़ी क्षति हुई है, जब छठ पूजा और अन्य बिहार के उत्सवों में अपनी अमर आवाज़ देने वाली शारदा सिन्हा का 72 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। अपने गहरे लोक संगीत और जीवंत गीतों के लिए जानी जाने वाली शारदा सिन्हा ने बिहार के पारंपरिक गीतों को देश के हर कोने तक पहुँचाया, जिनमें छठ के गीत विशेष रूप से लोकप्रिय रहे हैं। उन्हें प्यार से “मिथिला की बेगम अख्तर” के नाम से भी जाना जाता था।
शारदा सिन्हा का संगीत और उनके अमर गीत
शारदा सिन्हा का जन्म बिहार के मिथिला क्षेत्र में हुआ था। अपनी मिट्टी की महक और परंपराओं से जुड़ी आवाज़ के कारण, वे बिहार की “कोकिला” कहलाती थीं। उनकी आवाज़ में न केवल त्योहारों का रंग था, बल्कि यह पारंपरिक मूल्यों और ग्रामीण भारत के संगीत का प्रतिनिधित्व करती थी। उनके गीतों में विशेषकर छठ पूजा से जुड़े “कत्यायनी” और “पूरे परदेश में छाई हो” जैसे गीतों को घर-घर तक पहुँचाया। ये गीत इस महापर्व के श्रद्धालुओं के लिए एक धरोहर बन चुके हैं।
योगदान और पुरस्कार
शारदा सिन्हा ने न केवल लोक संगीत में बल्कि बॉलीवुड में भी अपनी पहचान बनाई। उनके “बाबुल” गीत, जो फिल्म “हम आपके हैं कौन” में था, को आज भी श्रोताओं के बीच अपार लोकप्रियता प्राप्त है। उनकी उत्कृष्टता को सम्मानित करते हुए उन्हें भारत सरकार द्वारा “पद्म श्री” (1991) और “पद्म भूषण” (2018) से भी नवाज़ा गया था, जिससे यह स्पष्ट होता है कि उनके योगदान को देशभर में मान्यता दी गई।
बीमारी और निधन
शारदा सिन्हा कई वर्षों से रक्त कैंसर (मल्टीपल मायलोमा) से पीड़ित थीं और इलाज के दौरान दिल्ली के एम्स अस्पताल में भर्ती थीं। हाल ही में उनकी हालत बिगड़ने के बाद उन्हें आईसीयू में स्थानांतरित किया गया था, जहाँ उन्होंने अपनी अंतिम साँसें लीं। उनके निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी गहरा शोक व्यक्त किया और इसे संगीत जगत के लिए एक “अपरिवर्तनीय क्षति” बताया। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी उनके निधन पर शोक जताते हुए कहा कि उनकी आवाज़ सदैव हमारे बीच जीवित रहेगी।
उनके निधन से छठ के गीतों में आई कमी
छठ पूजा जैसे पर्व में उनका संगीत सदैव एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है। उनके गीतों में छठ पर्व की महत्ता और उसकी पारंपरिक धुनों की गहराई बसी होती थी। उनके निधन के साथ, छठ के संगीत में एक ऐसी कमी आई है, जो शायद ही कभी पूरी हो सके। उनके गीतों की मधुर ध्वनि और उनकी आवाज़ की गूँज सदैव हमारे दिलों में बनी रहेगी।
शारदा सिन्हा की आवाज़ ने न केवल बिहार बल्कि पूरे भारत के संगीतप्रेमियों को प्रभावित किया। उनकी लोकधुनों का प्रभाव हमारे त्योहारों में हमेशा जीवित रहेगा, और उनकी संगीत यात्रा की स्मृति हमारे साथ सदैव रहेगी।
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