Vikramaditya Motwane ने भारतीय सिनेमा के उन कुछ निर्देशकों में से एक हैं, जिन्होंने विभिन्न शैलियों में अपने फिल्मी करियर में न सिर्फ अलग-अलग विषयों पर फिल्में बनाई हैं, बल्कि हर बार कुछ नया और अनोखा दिखाने का प्रयास किया है। 2010 में उड़ान से डेब्यू करने के बाद उन्होंने लुटेरा जैसी रोमांटिक ड्रामा, ट्रैप्ड जैसी थ्रिलर, और भवेश जोशी सुपरहीरो जैसी विजिलांटे फिल्में बनाकर दर्शकों को हर बार नया अनुभव दिया है। उनकी नवीनतम फिल्म CTRL, भारत की पहली स्क्रीनलाइफ थ्रिलर मानी जा रही है, जिसमें हर घटना मोबाइल या लैपटॉप स्क्रीन पर घटित होती है।
स्क्रिप्ट की विविधता और स्क्रिनलाइफ का प्रयोग
विक्रमादित्य ने अपनी फिल्मों में अक्सर नई और जोखिम भरी कहानियों को पेश किया है। CTRL भी इस दिशा में एक साहसिक कदम है। यह फिल्म एक दिल टूटी हुई Gen Z सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर, नेला (अनन्या पांडे द्वारा निभाई गई) की कहानी बताती है, जो अपने अतीत से उबरने के लिए एक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस प्रोग्राम CTRL का सहारा लेती है। यह प्रोग्राम उसकी डिजिटल लाइफ को नियंत्रित करता है, लेकिन धीरे-धीरे कहानी कहीं और मोड़ ले लेती है।
विक्रमादित्य के अनुसार, स्क्रीनलाइफ फॉर्मेट की सबसे बड़ी चुनौती हर एक तकनीकी तत्व को सही ढंग से तैयार करना था। फिल्म की हर डिटेल—चाहे वह ऑपरेटिंग सिस्टम हो, सोशल मीडिया ऐप्स की डिज़ाइन हो, या उनके अंदर की गई हलचल हो—सब कुछ को स्क्रैच से बनाना पड़ा। इस काम में महीनों लगे और फिल्म की पोस्ट-प्रोडक्शन लगभग 16 महीनों में पूरी हुई।
वैकल्पिक अंत: नेला का बदले का सफर?
विक्रमादित्य और उनके सह-लेखक अविनाश संपथ ने शुरू में फिल्म के एक अलग अंत की योजना बनाई थी, जिसमें नेला अपने साथ हुई घटनाओं का बदला लेती। इस विचार के तहत, नेला AI के नियंत्रण से बाहर निकलकर अपने जीवन पर फिर से नियंत्रण पाने के लिए बदले की राह पर चल पड़ती। हालांकि, कहानी के वास्तविक स्वरूप और स्क्रीनलाइफ फॉर्मेट के कारण, इस अंत को त्याग दिया गया। विक्रमादित्य का मानना था कि स्क्रीनलाइफ में बदले के लिए आवश्यक ड्रामा और रोमांच पैदा करना मुश्किल होता।
फिर भी, उन्होंने इस सीमा को फिल्म की शक्ति के रूप में देखा। वह मानते हैं कि इस तरह की चुनौतीपूर्ण शैलियों के साथ काम करना रोमांचक होता है, और यह फिल्म बनाने की प्रक्रिया को और भी आनंददायक बनाता है। CTRL का अंत नेला को एक दुष्चक्र में फंसा हुआ दिखाता है, जहाँ से उसका निकल पाना लगभग असंभव हो जाता है।
ब्लैक मिरर: बैंडरस्नैच की तर्ज पर इंटरैक्टिव फॉर्मेट का विचार
एक समय ऐसा भी आया जब विक्रमादित्य और उनकी टीम ने सोचा कि वे ब्लैक मिरर: बैंडरस्नैच की तरह CTRL को एक इंटरैक्टिव फिल्म बना सकते हैं, जिसमें दर्शक खुद कहानी के मोड़ों को चुनते। लेकिन इस विचार को अंततः छोड़ दिया गया। मोटवाने का कहना था कि इस तरह की पटकथा लिखना अत्यधिक कठिन होता है, क्योंकि हर संभावना के लिए एक नई दिशा सोचनी पड़ती है।
नेला के भविष्य का सवाल: क्या सीक्वल संभव है?
जब उनसे पूछा गया कि क्या नेला की कहानी का सीक्वल बन सकता है, जिसमें वह स्क्रीनलाइफ फॉर्मेट से बाहर आकर अपने अपमान का बदला लेती है, विक्रमादित्य ने इस विचार को हंसी में टाल दिया। उनके अनुसार, नेला की कहानी को वहीं छोड़ना बेहतर है, जहाँ वह एक चेतावनी के रूप में समाप्त होती है। इस फिल्म का मुख्य उद्देश्य एक सावधानी भरी कहानी को सामने लाना था, जिसमें तकनीक के खतरों को दिखाया गया था।
CTRL का भविष्य
CTRL के बाद विक्रमादित्य के पास कई और दिलचस्प प्रोजेक्ट्स हैं। वे भारत की आपातकाल पर आधारित एक डॉक्यूमेंट्री Indi(r)a’s Emergency और एक जेल ड्रामा Black Warrant पर काम कर रहे हैं। इसके अलावा, उन्होंने इस बात का संकेत दिया कि वह जल्द ही किसी एक्शन जॉनर में थिएटर के लिए एक फिल्म बनाना चाहते हैं।
विक्रमादित्य मोटवाने की CTRL न केवल तकनीकी रूप से चुनौतीपूर्ण फिल्म थी, बल्कि एक कहानी के रूप में भी यह दर्शकों को गहरे सोचने पर मजबूर करती है। इसमें दिखाए गए एआई और इंटरनेट की दुनिया के खतरों के बीच, नेला की त्रासदी हमें यह याद दिलाती है कि कैसे तकनीक हमारे जीवन को बुरी तरह प्रभावित कर सकती है।
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