हरियाणा में कांग्रेस क्यों कमजोर हो रही है? क्या हुड्डा पर भरोसा गलत था?

Why is Congress getting weak in Haryana? Was the trust on Hooda misplaced?
Why is Congress getting weak in Haryana? Was the trust on Hooda misplaced?
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हरियाणा में कांग्रेस के भविष्य को लेकर 2024 के विधानसभा चुनावों में कई सवाल खड़े हो रहे हैं। कांग्रेस, जो पिछले लोकसभा चुनावों में हरियाणा में कुछ महत्वपूर्ण सीटें जीतकर सत्ता में वापसी की उम्मीद कर रही थी, अब वह असफलता के मुहाने पर खड़ी है। इस लेख में हम कांग्रेस की रणनीति, उसके फैसले और उन प्रमुख कारणों का विश्लेषण करेंगे जिनकी वजह से पार्टी को इस मुश्किल स्थिति का सामना करना पड़ा है।

भूपिंदर सिंह हुड्डा पर अधिक निर्भरता

कांग्रेस ने इस बार भूपिंदर सिंह हुड्डा पर अत्यधिक भरोसा किया। हरियाणा में 2005-2014 के दौरान मुख्यमंत्री रहे हुड्डा ने राज्य में पार्टी के पुनरुत्थान की उम्मीद जगाई थी। उनके नेतृत्व को कांग्रेस के जीतने की कुंजी माना गया, खासकर पिछले कुछ वर्षों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के खिलाफ बढ़ते असंतोष के मद्देनज़र। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या कांग्रेस ने हुड्डा पर अत्यधिक भरोसा किया और क्या इससे पार्टी को नुकसान हुआ?

भूपिंदर हुड्डा और कुमारी शैलजा के बीच नेतृत्व की खींचतान ने पार्टी में अंदरूनी कलह को उजागर किया। इस खींचतान ने मतदाताओं के बीच असमंजस पैदा किया, जो पार्टी के लिए नुकसानदायक साबित हुआ। कांग्रेस के अंदर के कुछ नेताओं का यह भी आरोप है कि टिकट वितरण में अनियमितताएँ हुईं, और हुड्डा ने अपने नजदीकियों को टिकट दिलाने में सफलता हासिल की, जिससे पार्टी में असंतोष फैल गया​।

चुनावी रणनीति में खामियां

कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि 2019 के विधानसभा चुनावों में 31 सीटें जीतने और लोकसभा चुनावों में बेहतर प्रदर्शन के बाद, पार्टी ने इस बार अधिक सीटें जीतने की उम्मीद की थी। लेकिन इस बार पार्टी ने छोटे दलों के महत्व को नजरअंदाज किया, जिससे उसकी रणनीति कमजोर पड़ी। जननायक जनता पार्टी (JJP) के कमजोर प्रदर्शन और अन्य छोटे दलों से मिल रही वोटों की कटौती ने भी कांग्रेस को नुकसान पहुंचाया​।

जमीनी स्तर पर प्रभावशाली नेतृत्व का अभाव

कांग्रेस ने राज्य के जमीनी मुद्दों को सही तरीके से उठाने में भी विफलता पाई। भाजपा सरकार की विफलताओं पर ध्यान केंद्रित करने के बावजूद, कांग्रेस सही नेतृत्व और ठोस मुद्दों की पहचान नहीं कर पाई। हरियाणा एक कृषि प्रधान राज्य है, और किसान आंदोलन के बाद से किसानों में असंतोष था। हालांकि कांग्रेस ने इस मुद्दे पर ध्यान दिया, परंतु वह इस असंतोष को भाजपा के खिलाफ प्रभावी रूप से भुना नहीं पाई​।

इस बार चुनावों में जाट और दलित मतदाता वर्गों पर विशेष ध्यान केंद्रित किया गया था। जाट मतदाताओं की 25% और दलित मतदाताओं की 20% भागीदारी ने कांग्रेस के लिए जीत की उम्मीदें जगाई थीं। हालांकि, जाट समुदाय का हुड्डा के प्रति समर्थन पार्टी के पक्ष में बना रहा, लेकिन दलित समुदाय का विभाजन और कुमारी शैलजा का नेतृत्व संघर्ष पार्टी के लिए बाधा बन गया​।

पार्टी के अंदरूनी मतभेद

कांग्रेस के लिए सबसे बड़ा झटका शायद पार्टी के भीतर का विवाद रहा। भूपिंदर सिंह हुड्डा और कुमारी शैलजा के बीच मुख्यमंत्री पद के लिए खुली प्रतिस्पर्धा ने पार्टी की एकजुटता को नुकसान पहुंचाया। इससे न केवल पार्टी कार्यकर्ताओं में, बल्कि मतदाताओं में भी असमंजस की स्थिति बनी रही। पार्टी के कुछ धड़ों का मानना था कि शीर्ष नेतृत्व ने इस मामले में पर्याप्त हस्तक्षेप नहीं किया, जिससे अंदरूनी कलह और बढ़ी​।

भाजपा का मुकाबला करने में असफलता

नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने पिछले कुछ वर्षों में हरियाणा में मजबूत पकड़ बनाई है। हालांकि राज्य में भ्रष्टाचार और बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर असंतोष था, लेकिन भाजपा ने अपनी योजनाओं और संगठनात्मक ताकत के बल पर कांग्रेस को पीछे धकेल दिया। खासकर भाजपा का आक्रामक प्रचार और मतदाताओं को संगठित करना कांग्रेस के कमजोर प्रचार पर भारी पड़ा​।

हरियाणा में कांग्रेस की मौजूदा स्थिति उसकी गलत रणनीति, अंदरूनी विवादों और जमीनी मुद्दों पर कमजोर पकड़ का नतीजा है। पार्टी को अगर भविष्य में बेहतर प्रदर्शन करना है, तो उसे अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करना होगा। हुड्डा पर अत्यधिक निर्भरता से बाहर निकलकर एक मजबूत और एकजुट नेतृत्व को प्राथमिकता देनी होगी। इसके साथ ही, कांग्रेस को जमीनी मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करते हुए अपनी प्रचार रणनीति को मजबूत बनाना होगा। हरियाणा में एक बार फिर से उभरने के लिए कांग्रेस को यह सुनिश्चित करना होगा कि वह अपने कार्यकर्ताओं और मतदाताओं को विश्वास दिला सके कि वह भाजपा का एक मजबूत विकल्प है।

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Team K.H.
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