हाल ही में तेलंगाना की राजनीति में एक बड़ा उलटफेर देखने को मिला, जब मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने आरकेपुडी गांधी को पब्लिक अकाउंट्स कमिटी (PAC) का चेयरमैन नियुक्त किया। यह निर्णय न केवल भारतीय राष्ट्र समिति (BRS) के लिए झटका साबित हुआ, बल्कि यह कांग्रेस की एक रणनीतिक चाल भी मानी जा रही है। BRS ने PAC चेयरमैन के लिए पूर्व वित्त मंत्री टी. हरीश राव का नाम प्रस्तावित किया था, जो काबिलियत और अनुभव के हिसाब से योग्य उम्मीदवार थे। लेकिन PAC चेयरमैन की नियुक्ति के लिए परंपरागत तौर पर विपक्षी दल के विधायक को चुना जाता है। इस घटना ने बीआरएस और कांग्रेस के बीच राजनीतिक टकराव को बढ़ावा दिया है।
PAC की भूमिका और महत्व
पब्लिक अकाउंट्स कमिटी (PAC) राज्य सरकार के वित्तीय खातों का ऑडिट करती है और सरकार द्वारा खर्च किए गए धन की जांच करती है। इस वजह से, PAC का चेयरमैन होना एक महत्वपूर्ण पद है, खासकर जब सत्ताधारी दल को विपक्षी सवालों का सामना करना पड़ता है। अगर हरीश राव PAC चेयरमैन बनते, तो कांग्रेस के लिए चुनौती बढ़ जाती, क्योंकि राव वित्त मामलों के विशेषज्ञ माने जाते हैं और बीआरएस के वित्त मंत्री रह चुके हैं। कांग्रेस इस संभावित खतरे से बचने के लिए पहले ही चाल चल दी और गांधी को नियुक्त कर दिया, जो हाल ही में बीआरएस से कांग्रेस में शामिल हुए थे।
इस फैसले के बाद, बीआरएस पार्टी ने कड़ा विरोध जताया और इसे “संवैधानिक परंपराओं की हत्या” तक कहा। टी. हरीश राव ने खुलकर कहा कि यह कांग्रेस की “अनैतिक राजनीति” का परिचायक है। उन्होंने आरोप लगाया कि विपक्षी सदस्य को PAC का अध्यक्ष बनाने की परंपरा का उल्लंघन किया गया है। यहां यह उल्लेखनीय है कि PAC चेयरमैन का पद आमतौर पर विपक्ष को दिया जाता है ताकि सरकार पर निगरानी रखी जा सके।
कांग्रेस की “टिट-फॉर-टैट” रणनीति
कांग्रेस ने बीआरएस को उन्हीं की चाल से मात दी है। पहले, जब बीआरएस सत्ता में थी, तब उसने विपक्षी दलों के विधायकों को तोड़कर अपनी पार्टी में शामिल किया था और महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्तियां की थीं। उदाहरण के तौर पर, बीआरएस ने अपने शासनकाल में एआईएमआईएम के नेता अकबरुद्दीन ओवैसी को PAC का चेयरमैन बनाया था, जबकि वह बीआरएस के सहयोगी दल थे। यह कदम भी PAC चेयरमैन के पद पर विपक्ष को स्थान न देने की कोशिश का हिस्सा था। इस बार कांग्रेस ने उसी रणनीति को अपनाते हुए PAC का पद एक ऐसे व्यक्ति को दिया, जो तकनीकी रूप से अब भी बीआरएस के विधायक हैं, लेकिन अब कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं।
BRS का भविष्य और राजनीतिक प्रभाव
इस घटनाक्रम से BRS के भीतर असंतोष और नाराजगी बढ़ी है, खासकर तब जब बीआरएस सुप्रीमो के. चंद्रशेखर राव (KCR) को इस नियुक्ति की जानकारी तक नहीं दी गई। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यह कांग्रेस द्वारा BRS के खिलाफ एक कूटनीतिक चाल है, जो आने वाले चुनावों और राजनीतिक समीकरणों को ध्यान में रखते हुए खेली गई है। इस विवाद के चलते बीआरएस नेता हरीश राव और वी. प्रशांत रेड्डी इस मुद्दे को राज्यपाल के पास ले जाने की योजना बना रहे हैं।
रेवंत रेड्डी की यह चाल न केवल बीआरएस को एक सख्त संदेश देती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि तेलंगाना की राजनीति में अब सत्ता संतुलन बदल रहा है। PAC की अध्यक्षता को लेकर यह विवाद आने वाले दिनों में और गहराएगा और तेलंगाना की राजनीति में एक नए मोड़ की ओर इशारा करता है। कांग्रेस ने जिस तरह से बीआरएस की रणनीतियों को पलटा है, वह दर्शाता है कि राज्य में राजनीतिक खेल अब नए स्तर पर पहुंच चुका है।
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