सितंबर 2024 में इजरायल द्वारा हिज़बुल्लाह के नेता हसन नसरल्लाह की हत्या ने मध्य पूर्व में तनाव को और बढ़ा दिया है। हिज़बुल्लाह एक प्रमुख शिया मिलिशिया संगठन है, जो लेबनान से संचालित होता है और जिसे ईरान से समर्थन प्राप्त है। इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने इस ऑपरेशन को एक “न्यायसंगत कदम” बताया और कहा कि नसरल्लाह की हत्या इजरायल के लिए “जीवित रहने का एक अनिवार्य हिस्सा” थी।
नसरल्लाह की मौत ने लेबनान और ईरान में विरोध प्रदर्शनों को जन्म दिया, लेकिन इसके साथ ही भारत में भी कुछ वर्गों द्वारा इजरायल विरोधी प्रदर्शन देखने को मिले। कुछ भारतीय समूहों ने इस हत्याकांड को “अत्याचार” करार दिया और सरकार से इजरायल के खिलाफ सख्त कदम उठाने की मांग की। ये प्रदर्शन मुख्य रूप से मुस्लिम बहुल इलाकों में केंद्रित थे, जहां इजरायल की नीतियों का लंबे समय से विरोध होता आया है।
नसरल्लाह की भूमिका और प्रभाव
हसन नसरल्लाह 1992 से हिज़बुल्लाह के नेता थे और उन्होंने लेबनान के राजनीतिक और सैन्य परिदृश्य पर एक गहरा प्रभाव डाला। नसरल्लाह की अगुवाई में हिज़बुल्लाह ने इजरायल के खिलाफ कई युद्ध लड़े, जिनमें 2006 का इजरायल-लेबनान युद्ध भी शामिल है। उनकी लोकप्रियता विशेषकर शिया मुस्लिम समुदायों में रही, लेकिन उन्हें इजरायल और अमेरिका ने एक आतंकवादी के रूप में देखा।
नसरल्लाह की मौत के बाद, इजरायल ने दावा किया कि इससे लेबनान और ईरान में हिज़बुल्लाह की क्षमताओं को गहरा झटका लगा है। हालांकि, हिज़बुल्लाह के समर्थकों और ईरान के नेताओं ने इस हत्याकांड का बदला लेने का संकल्प लिया है। इससे क्षेत्रीय तनाव और बढ़ने की आशंका है।
भारत में विरोध प्रदर्शन
नसरल्लाह की हत्या के बाद, भारत के कुछ हिस्सों में इजरायल के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू हुए। मुस्लिम बहुल इलाकों में प्रदर्शनकारियों ने इजरायल की सरकार और प्रधानमंत्री नेतन्याहू की नीतियों की कड़ी निंदा की। उन्होंने इसे “इंसाफ का हनन” और “मुस्लिम समुदायों के खिलाफ साजिश” बताया। विरोध प्रदर्शन मुख्य रूप से दिल्ली, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के कुछ शहरों में देखे गए, जहां इजरायल के खिलाफ पुरानी नफरत भी उजागर हुई।
प्रदर्शनकारियों ने भारत सरकार से इजरायल के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की और इजरायली राजदूत को देश से निकालने की अपील की। हालांकि, भारत सरकार की तरफ से अब तक इस मामले पर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है।
इजरायल की प्रतिक्रिया
इजरायली प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने नसरल्लाह की हत्या के बाद एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि यह इजरायल की सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम था। उन्होंने कहा कि नसरल्लाह ने इजरायल के खिलाफ कई हमलों का नेतृत्व किया था और उनकी मौत से हिज़बुल्लाह की रणनीतिक क्षमताओं को नुकसान हुआ है। इजरायल ने अपनी सुरक्षा के लिए और भी कठोर कदम उठाने का संकल्प लिया है, जिससे इस्राइल-लेबनान सीमा पर तनाव और भी बढ़ गया है।
इजरायली अधिकारियों ने दावा किया कि नसरल्लाह की मौत से हिज़बुल्लाह का “केंद्रीय नेतृत्व समाप्त” हो गया है, लेकिन यह भी स्वीकार किया कि इससे क्षेत्र में अस्थिरता बढ़ने की संभावना है।
वैश्विक प्रतिक्रिया
नसरल्लाह की हत्या के बाद, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने बढ़ते तनाव पर चिंता व्यक्त की है। संयुक्त राष्ट्र ने इजरायल और लेबनान दोनों से संयम बरतने की अपील की है और क्षेत्र में किसी भी प्रकार के व्यापक युद्ध को रोकने का आग्रह किया है। ईरान ने इस हत्याकांड की कड़ी निंदा की और इसे “न्यायसंगत हत्या” बताया। ईरान ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से अपील की है कि वह इस मामले पर तुरंत हस्तक्षेप करे।
अमेरिका ने इजरायल के समर्थन में बयान जारी किया है और कहा है कि इजरायल को अपनी सुरक्षा के लिए जो भी आवश्यक हो, वह करने का अधिकार है। वहीं, रूस और चीन ने दोनों पक्षों से शांति बनाए रखने का आग्रह किया है, जबकि कई यूरोपीय देशों ने इस हत्या को “क्षेत्रीय अस्थिरता बढ़ाने वाला कदम” बताया है।
भारत के लिए क्या मायने रखता है?
भारत के लिए यह घटना अंतर्राष्ट्रीय संबंधों और घरेलू राजनीति दोनों पर असर डाल सकती है। एक तरफ भारत का इजरायल के साथ रक्षा और तकनीकी सहयोग है, वहीं दूसरी तरफ भारतीय मुस्लिम समुदाय इस हत्या के खिलाफ आवाज उठा रहा है। यह सरकार के लिए एक संवेदनशील मुद्दा हो सकता है, खासकर जब भारत के मध्य पूर्व के कई देशों के साथ अच्छे कूटनीतिक और व्यापारिक संबंध हैं।
भारतीय मीडिया ने भी इस घटना पर मिश्रित प्रतिक्रिया दी है। कुछ समाचार चैनलों ने इसे इजरायल की “रक्षात्मक रणनीति” के रूप में दिखाया, जबकि कुछ ने इसे “अत्याचार” करार दिया। यह देखना बाकी है कि भारत सरकार इस मामले पर क्या रुख अपनाती है और क्या घरेलू प्रदर्शन सरकार की विदेश नीति को प्रभावित कर सकते हैं।
हसन नसरल्लाह की हत्या ने इजरायल-लेबनान संघर्ष में एक नया अध्याय जोड़ा है। इससे केवल मध्य पूर्व में नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी तनाव बढ़ा है। भारत में भी इस घटना का असर देखा जा रहा है, जहां प्रदर्शनकारियों ने इजरायल के खिलाफ आवाज उठाई है। यह घटना दर्शाती है कि कैसे अंतर्राष्ट्रीय घटनाएं विभिन्न देशों के घरेलू राजनीति और विदेश नीति पर गहरा प्रभाव डाल सकती हैं।
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