हरियाणा विधानसभा चुनावों में प्रारंभिक रुझानों ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने लगातार तीसरी बार सत्ता में वापसी की है। एंटी-इनकंबेंसी (सत्ता विरोधी लहर) और विपक्षी दलों के कड़े मुकाबले के बावजूद भाजपा ने एक बार फिर अपने राजनीतिक कौशल का प्रदर्शन किया। इस ब्लॉग में हम उन पांच प्रमुख कारणों पर चर्चा करेंगे, जिनकी वजह से भाजपा ने हरियाणा में सत्ता में वापसी की है।
1. नेतृत्व में बदलाव: नया चेहरा, नई उम्मीदें
बीजेपी ने हरियाणा में एक बड़ा कदम उठाते हुए मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की जगह नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाया। यह निर्णय तब लिया गया जब जजपा (जननायक जनता पार्टी) के साथ गठबंधन तोड़ दिया गया। सैनी का ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) से आना एक बड़ा गेमचेंजर साबित हुआ, खासकर जब खट्टर सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर दिखाई दे रही थी।
सैनी का नेतृत्व करने से बीजेपी ने हरियाणा के गैर-जाट मतदाताओं को एकजुट किया, खासकर तब जब जाटों का समर्थन कांग्रेस की ओर जाता दिख रहा था। हरियाणा में जाट समुदाय कुल आबादी का 30% है, जबकि ओबीसी 34% और दलित 16% हैं। इस प्रकार, सैनी की नियुक्ति ने बीजेपी को एक बड़े वोट बैंक तक पहुंच दिलाई, जो कांग्रेस के पक्ष में जा सकता था।
सैनी सरकार के द्वारा अपने 70 दिनों के छोटे कार्यकाल में 126 से अधिक फैसले लेने ने भी जनता में सकारात्मक प्रतिक्रिया उत्पन्न की। इन फैसलों ने किसानों और ग्रामीण मतदाताओं के साथ-साथ शहरी क्षेत्रों के लोगों को भी प्रभावित किया। इसके अलावा, सरकार के कुछ विवादास्पद फैसलों को संशोधित करके जनता के गुस्से को शांत किया गया, खासकर पूर्व मुख्यमंत्री खट्टर के कार्यकाल के दौरान लिए गए निर्णयों के संबंध में।
2. पिछड़े वर्गों का समर्थन: वोट बैंक की मजबूती
हरियाणा की राजनीति में ओबीसी और पिछड़े वर्गों का वोट बैंक काफी महत्वपूर्ण है। बीजेपी ने सैनी की नियुक्ति के साथ-साथ अन्य महत्वपूर्ण कदम उठाकर इस वर्ग को अपने पक्ष में किया। जुलाई 2024 में महेंद्रगढ़ में आयोजित एक “पिछड़ा वर्ग सम्मान सम्मेलन” में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने ओबीसी वर्ग के लिए आरक्षण की सीमा को ₹6 लाख से बढ़ाकर ₹8 लाख करने की घोषणा की।
इसके अलावा, हरियाणा सरकार ने स्थानीय निकायों में ओबीसी के लिए आरक्षण को बढ़ाने का भी ऐलान किया। समूह-ए और समूह-बी पदों में पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण को 15% से बढ़ाकर 27% किया गया। ये कदम भाजपा को उस समय मजबूत समर्थन दिलाने में सहायक रहे जब कांग्रेस जाटों और दलितों का समर्थन प्राप्त कर रही थी।
3. ब्रांड मोदी का प्रभाव: मजबूत नेतृत्व का फायदा
हरियाणा के चुनाव प्रचार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम और छवि एक बड़े आकर्षण का केंद्र थे। मोदी के साथ-साथ केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने राज्य में कुल 14 रैलियों को संबोधित किया, जहां उनकी लोकप्रियता ने भाजपा के पक्ष में माहौल बनाया।
मोदी की विश्वसनीयता, उनकी भ्रष्टाचार-मुक्त शासन देने की छवि, और भाजपा सरकार के द्वारा किसानों के लिए उठाए गए कई कदमों ने ग्रामीण इलाकों में भी बीजेपी को समर्थन दिलाया। इसके अलावा, अग्निवीर योजना से जुड़े मुद्दों का समाधान भी भाजपा के पक्ष में गया। कई मतदाता जो शुरू में इस योजना से असंतुष्ट थे, उन्होंने केंद्र सरकार द्वारा उठाए गए कदमों के बाद भाजपा को समर्थन दिया।
“ब्रांड मोदी” की मजबूती हरियाणा के मतदाताओं के बीच बनी रही, और इसने बीजेपी को एंटी-इनकंबेंसी के बावजूद जनता के समर्थन को बनाए रखने में मदद की।
4. स्वच्छ शासन और पारदर्शिता: जनता के बीच भरोसा
हालांकि नायब सिंह सैनी की सरकार का कार्यकाल केवल कुछ महीने का था, लेकिन उनके नेतृत्व में सरकार ने कई लोकलुभावन और सुधारात्मक फैसले लिए। कई ऐसे फैसले, जिनसे जनता नाराज थी, उन्हें या तो संशोधित किया गया या पूरी तरह से बदल दिया गया। इसका उद्देश्य था कि जनता में यह संदेश जाए कि सरकार उनकी समस्याओं को गंभीरता से ले रही है और बदलाव के लिए तत्पर है।
खासकर सरकारी नौकरियों में मेरिट आधारित चयन प्रक्रिया को बढ़ावा दिया गया, जिससे युवाओं में भरोसा बढ़ा। इससे पहले की सरकारों के दौरान जिन फैसलों के कारण जनता में असंतोष था, उन्हें सैनी सरकार ने सुधारा। इस वजह से सरकार के खिलाफ गुस्सा कम हुआ और एंटी-इनकंबेंसी की धार को कमजोर कर दिया गया।
5. लोकसभा चुनाव परिणाम से सबक: भाजपा की रणनीति में बदलाव
2019 के लोकसभा चुनावों में हरियाणा में भाजपा को सभी 10 सीटों पर जीत मिली थी, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में यह जीत कुछ कम हो गई। भाजपा ने केवल 5 सीटों पर जीत हासिल की, और 44 विधानसभा क्षेत्रों में लीड की, जबकि कांग्रेस को 42 सीटों पर बढ़त मिली। इस परिणाम ने भाजपा के लिए चेतावनी की घंटी बजा दी और पार्टी ने अपनी रणनीति में बदलाव किया।
लोकसभा चुनाव परिणामों के बाद, पार्टी ने जनता की समस्याओं को हल करने पर ध्यान केंद्रित किया, खासकर परिवार पहचान पत्र (PPP) और संपत्ति आईडी से जुड़ी समस्याओं को। इन योजनाओं के कारण जनता में असंतोष था, जिसे सुधारने के बाद जनता के गुस्से को शांत किया गया। इसके साथ ही, आरएसएस के जमीनी स्तर पर काम करने वाले कार्यकर्ताओं ने भी शहरी क्षेत्रों में भाजपा के समर्थन को बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई।
हरियाणा में भाजपा की तीसरी जीत कई कारकों का परिणाम है। सत्ता विरोधी लहर के बावजूद, नेतृत्व में बदलाव, पिछड़े वर्गों का समर्थन, मोदी का प्रभाव, स्वच्छ शासन, और लोकसभा चुनाव परिणामों से मिली सीख ने भाजपा को सत्ता में बने रहने में मदद की। आने वाले समय में देखना होगा कि भाजपा इन कारकों को कैसे और मजबूत करती है, ताकि भविष्य में भी सत्ता में बने रहने की संभावना बनी रहे।
हरियाणा की राजनीति में जातीय समीकरण और सामाजिक वर्गों का महत्व हमेशा से रहा है, और भाजपा ने इन दोनों पहलुओं को अच्छी तरह से साधा है। भाजपा की यह जीत न केवल हरियाणा की राजनीति में बल्कि पूरे देश के लिए एक महत्वपूर्ण संकेत है कि ब्रांड मोदी और मजबूत संगठनात्मक ढांचा किस प्रकार चुनावी जीत में निर्णायक भूमिका निभा सकता है।
यह भी पढ़े: हरियाणा में कांग्रेस क्यों कमजोर हो रही है? क्या हुड्डा पर भरोसा गलत था?