जम्मू और कश्मीर के नए मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की नेतृत्व वाली सरकार की पहली कैबिनेट बैठक के बाद राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। बैठक में राज्य का दर्जा बहाल करने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया गया, लेकिन महत्वपूर्ण मुद्दा अनुच्छेद 370 और 35A की चर्चा से परहेज किया गया, जिसने विपक्ष को आलोचना का मौका दे दिया है।
राजनीतिक पृष्ठभूमि और आरोप
विपक्षी नेताओं का आरोप है कि उमर अब्दुल्ला ने चुनावों में दिए गए अपने मुख्य वादे, विशेष रूप से अनुच्छेद 370 और 35A की बहाली को दरकिनार कर दिया। यह दोनों अनुच्छेद जम्मू और कश्मीर को विशेष दर्जा प्रदान करते थे, जिन्हें अगस्त 2019 में समाप्त कर दिया गया था। उमर अब्दुल्ला के इस फैसले पर विपक्षी दलों ने आक्रोश व्यक्त करते हुए इसे जनता के साथ विश्वासघात करार दिया है।
इंजीनियर राशिद, जो बारामूला से सांसद हैं, ने इस मुद्दे पर कड़ी नाराजगी जताते हुए कहा, “कैबिनेट ने सिर्फ राज्य के दर्जे पर प्रस्ताव पारित किया और अनुच्छेद 370 को नजरअंदाज किया गया। यह उनकी पार्टी की एक प्रमुख नीति रही है और ऐसा लगता है कि उमर अब्दुल्ला बीजेपी के हाथों में खेल रहे हैं। उन्होंने चुनाव अनुच्छेद 370 पर लड़ा था, और अब ऐसा लगता है कि एनसी और बीजेपी के बीच कोई खेल चल रहा है।”
विपक्ष की तीखी प्रतिक्रिया
पीडीपी (पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी) के विधायक वहीद पारा ने भी उमर अब्दुल्ला की सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि, “प्रधानमंत्री ने पहले ही राज्य का दर्जा बहाल करने का वादा किया है, तो इसके बारे में चर्चा की जरूरत क्या है? बात तो अनुच्छेद 370 पर होनी चाहिए, जिसे नजरअंदाज किया गया है।”
पीडीपी के साथ-साथ अन्य विपक्षी दलों ने भी एकजुट होकर सरकार की आलोचना की। उनके मुताबिक, उमर अब्दुल्ला सिर्फ राज्य का दर्जा बहाल करने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं और अनुच्छेद 370, जो उनकी चुनावी अभियान का प्रमुख मुद्दा था, उस पर कोई चर्चा नहीं हो रही है।
उमर अब्दुल्ला का बचाव
दूसरी ओर, उमर अब्दुल्ला ने इस आलोचना का जवाब देते हुए कहा कि अनुच्छेद 370 का मुद्दा न्यायपालिका और विधानमंडल के अधीन है और इसे संसद में उठाया जाएगा। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि राज्य का दर्जा बहाल करना उनकी प्राथमिकता थी, क्योंकि इसे केंद्रीय सरकार द्वारा बहाल किया जा सकता है, जबकि अनुच्छेद 370 पर कानूनी बहस जारी है।
उमर अब्दुल्ला ने सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हुए कहा, “अनुच्छेद 370 के लिए कानूनी प्रक्रिया का पालन किया जाएगा, जबकि राज्य का दर्जा सरकार के हाथों में है, और इसे पहले बहाल करना जरूरी था।” उन्होंने आगे कहा कि अनुच्छेद 370 पर भविष्य में विधानसभा और संसद में चर्चा की जाएगी, क्योंकि यह एक संवैधानिक मुद्दा है।
राजनीतिक अस्थिरता का माहौल
उमर अब्दुल्ला की सरकार को सत्ता संभाले अभी कुछ ही दिन हुए हैं, लेकिन पहले ही विपक्ष ने उनकी सरकार पर सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं। नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) जो कि हाल ही में चुनावों में बहुमत से जीती थी, अब अपने चुनावी वादों को पूरा करने की चुनौती का सामना कर रही है। अनुच्छेद 370 पर चर्चा की अनुपस्थिति ने राज्य के राजनीतिक परिदृश्य में हलचल पैदा कर दी है, और आने वाले महीनों में यह मुद्दा और भी गरमा सकता है।
अभी यह देखना बाकी है कि उमर अब्दुल्ला की सरकार किस तरह इन मुद्दों से निपटेगी और जनता के भरोसे को कैसे बहाल करेगी। लेकिन फिलहाल, विपक्षी दल उनकी सरकार को लगातार घेरने की कोशिश में हैं।
जम्मू और कश्मीर में राज्य का दर्जा बहाल करना एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, लेकिन अनुच्छेद 370 और 35A की बहाली का प्रश्न अब भी अनसुलझा है। उमर अब्दुल्ला की सरकार के सामने यह चुनौती है कि वह अपने चुनावी वादों पर खरा उतरते हुए जनता की अपेक्षाओं को कैसे पूरा करेगी, खासकर जब अनुच्छेद 370 जैसे संवेदनशील मुद्दे पर जनता की नजरें टिकी हैं।
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