भारत सरकार ने हाल ही में सैटकॉम स्पेक्ट्रम के आवंटन के लिए नीलामी की जगह प्रशासनिक प्रणाली अपनाने का निर्णय लिया है। यह कदम तब आया जब स्टारलिंक के सीईओ एलन मस्क ने मुकेश अंबानी की रिलायंस जियो द्वारा नीलामी के लिए की जा रही लॉबिंग पर आपत्ति जताई। मस्क का तर्क था कि सैटलाइट स्पेक्ट्रम का नीलामी के माध्यम से आवंटन वैश्विक मानकों के विपरीत होगा।
इस निर्णय के बाद देश में उपग्रह आधारित इंटरनेट सेवाओं को प्रशासनिक तरीके से स्पेक्ट्रम आवंटित किया जाएगा, जैसा कि अमेरिका और अन्य कई देशों में किया जा रहा है। इससे भारत में सैटकॉम बाजार तेजी से बढ़ने की संभावना है, जिसका अनुमान 2030 तक 1.9 बिलियन डॉलर के बाजार मूल्य तक पहुंचने का है।
एलन मस्क और स्टारलिंक की आपत्तियां
एलन मस्क, जो दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति हैं, लंबे समय से भारतीय दूरसंचार बाजार में अपनी कंपनी स्टारलिंक के माध्यम से प्रवेश करने की कोशिश कर रहे हैं। स्टारलिंक उपग्रह आधारित इंटरनेट सेवा प्रदान करती है, और इसके पास दुनिया भर में बड़ी संख्या में उपयोगकर्ता हैं। मस्क का मानना है कि उपग्रह स्पेक्ट्रम एक साझा संसाधन है, और इसे नीलाम करना अनुचित है। इसके बजाय, स्पेक्ट्रम का प्रशासनिक आवंटन होना चाहिए, जैसा कि अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ (ITU) द्वारा समर्थित है। ITU, जो संयुक्त राष्ट्र की एक एजेंसी है, भारत सहित कई देशों में उपग्रह स्पेक्ट्रम आवंटन के लिए जिम्मेदार है।
मस्क ने खुले तौर पर भारत में नीलामी के प्रस्ताव का विरोध किया है। उनका कहना है कि नीलामी से प्रतिस्पर्धा में असंतुलन आएगा और छोटे खिलाड़ी बाजार से बाहर हो सकते हैं। मस्क के अनुसार, नीलामी का यह मॉडल दुनिया भर में अनसुना है और उपग्रह इंटरनेट सेवाओं के लिए असंगत है।
रिलायंस जियो की नीलामी की मांग
वहीं दूसरी ओर, मुकेश अंबानी की रिलायंस जियो ने नीलामी प्रक्रिया का समर्थन किया है। जियो का मानना है कि स्पेक्ट्रम का नीलामी के जरिए आवंटन ही एकमात्र तरीका है जिससे “समान अवसर” की स्थिति बनाई जा सकती है। रिलायंस जियो की दलील है कि जो कंपनियां उपग्रह स्पेक्ट्रम का उपयोग कर रही हैं, उन्हें भी उसी तरह नीलामी में हिस्सा लेना चाहिए जैसा कि टेलीकॉम कंपनियों को करना पड़ता है।
रिलायंस जियो ने भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (TRAI) को एक पत्र लिखा है, जिसमें उन्होंने प्रशासनिक आवंटन की योजना पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया है। उनका मानना है कि नीलामी के माध्यम से ही प्रतिस्पर्धा की पारदर्शिता बनी रह सकती है। सुनील मित्तल, जो कि भारती एयरटेल के प्रमुख हैं, ने भी नीलामी के पक्ष में अपनी राय दी है। उन्होंने कहा कि शहरी क्षेत्रों और खुदरा बाजारों में उपग्रह सेवाएं प्रदान करने वाली कंपनियों को टेलीकॉम कंपनियों की तरह ही स्पेक्ट्रम खरीदना चाहिए।
सरकार का निर्णय और वैश्विक ट्रेंड
हालांकि, दूरसंचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने घोषणा की है कि भारत वैश्विक ट्रेंड के अनुसार उपग्रह स्पेक्ट्रम का प्रशासनिक आवंटन करेगा। सिंधिया ने कहा, “दुनिया भर में उपग्रह स्पेक्ट्रम का आवंटन प्रशासनिक तरीके से किया जाता है। इसलिए, भारत इस मामले में बाकी दुनिया से कुछ अलग नहीं कर रहा है।”
सिंधिया ने यह भी स्पष्ट किया कि स्पेक्ट्रम का मूल्य निर्धारण TRAI द्वारा किया जाएगा, ताकि पारदर्शिता और निष्पक्षता बनी रहे। उन्होंने यह आश्वासन दिया कि प्रशासनिक आवंटन के बावजूद, शुल्क का निर्धारण सही और संतुलित तरीके से किया जाएगा। इससे यह सुनिश्चित होगा कि सभी खिलाड़ियों को उचित अवसर मिलें और भारतीय बाजार में तेजी से विकास हो सके।
स्पेक्ट्रम विवाद के पीछे की पृष्ठभूमि
स्पेक्ट्रम विवाद का मुख्य कारण यह है कि भारत में उपग्रह आधारित इंटरनेट सेवाओं का बाजार तेजी से बढ़ रहा है। Deloitte की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2030 तक भारतीय सैटकॉम बाजार 1.9 बिलियन डॉलर तक पहुंच सकता है। ऐसे में विभिन्न कंपनियां इस बाजार में प्रवेश करने के लिए तत्पर हैं।
जहां एलन मस्क की स्टारलिंक और अमेज़न के प्रोजेक्ट काइपर जैसे वैश्विक खिलाड़ी प्रशासनिक आवंटन का समर्थन करते हैं, वहीं जियो और वोडाफोन आइडिया नीलामी प्रक्रिया के पक्षधर हैं। नीलामी के समर्थकों का कहना है कि इससे विदेशी कंपनियों से निवेश आकर्षित होगा और स्थानीय सेवाओं को मजबूत किया जा सकेगा।
भारत सरकार का यह निर्णय, जिसमें स्पेक्ट्रम का प्रशासनिक आवंटन किया जाएगा, वैश्विक मानकों के अनुरूप है। इससे उपग्रह संचार क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा में सुधार होगा और यह भारत के दूरस्थ क्षेत्रों में इंटरनेट सेवाओं को और सुलभ बनाएगा। इस निर्णय से जहां एलन मस्क की कंपनी स्टारलिंक को लाभ होगा, वहीं रिलायंस जियो जैसी कंपनियों को इसे एक बड़ा झटका माना जा रहा है।
यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले समय में यह विवाद किस दिशा में जाता है, और किस तरह से भारत का सैटलाइट इंटरनेट बाजार विकसित होता है।
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