सितंबर 2024 में श्रीलंका के नए राष्ट्रपति के रूप में अनुरा कुमारा डिसानायके का चुनाव, एक अप्रत्याशित राजनीतिक भूकंप की तरह है। डिसानायके की पार्टी, जनता विमुक्ति पेरामुना (JVP), जो कभी श्रीलंकाई सुरक्षा बलों के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह कर चुकी थी, अब सत्ता में आई है। यह पहली बार है जब श्रीलंका के लोगों ने किसी बाहरी और गैर-पारंपरिक राजनीतिक ताकत को सत्ता में आने का मौका दिया है। इस ऐतिहासिक जीत ने न केवल श्रीलंका की राजनीति को बदल दिया है, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया, विशेषकर भारत, के लिए एक नई चुनौती पेश की है।
अनुरा कुमारा डिसानायके की पृष्ठभूमि:
अनुरा कुमारा डिसानायके का संबंध एक साधारण परिवार से है और वह श्रीलंका के सबसे अधिक विभाजनकारी राजनीतिक दल JVP के नेता हैं। JVP ने 1970 और 1980 के दशकों में श्रीलंकाई सरकार और सेना के खिलाफ दो खूनी विद्रोह किए थे, जिसमें हजारों लोग मारे गए। पार्टी के इस हिंसक इतिहास के बावजूद, डिसानायके ने JVP को एक मुख्यधारा की राजनीतिक ताकत के रूप में स्थापित किया। उनका नेतृत्व JVP के हिंसक अतीत से माफी मांगने और पार्टी को भ्रष्टाचार-विरोधी और पारदर्शी राजनीतिक मंच पर बदलने के लिए जाना जाता है।
JVP का उदय:
JVP का गठन 1965 में रोहाना विजेवीरा द्वारा किया गया था, जो क्यूबा के क्रांतिकारी नेता चे ग्वेरा से प्रेरित थे। शुरुआती समय में JVP ने पुलिस स्टेशनों पर हमले किए और सरकार को गिराने की कोशिश की, लेकिन उन्हें भारी दमन का सामना करना पड़ा। 1980 के दशक में JVP ने एक और सशस्त्र विद्रोह किया, जिसे भी क्रूर तरीके से कुचल दिया गया। इस विद्रोह के बाद, JVP ने हथियारों को छोड़कर लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भाग लेना शुरू किया और धीरे-धीरे एक वैध राजनीतिक दल के रूप में स्थापित हो गई।
डिसानायके का राजनीतिक सफर:
डिसानायके ने 2014 में JVP की बागडोर संभाली और पार्टी को एक साफ-सुथरी छवि के साथ पेश किया। उनकी रणनीति में भ्रष्टाचार विरोधी नीतियां और पारदर्शिता के वादे प्रमुख थे। 2019 के राष्ट्रपति चुनाव में JVP ने केवल 3% वोट हासिल किए, लेकिन 2024 के चुनाव में उनकी पार्टी ने 42.3% वोट प्राप्त कर एक ऐतिहासिक जीत दर्ज की। यह जीत श्रीलंकाई जनता द्वारा पारंपरिक राजनीतिक दलों को पूरी तरह से खारिज करने का संकेत देती है।
श्रीलंका की वर्तमान स्थिति:
श्रीलंका वर्तमान में अपने सबसे खराब आर्थिक संकट का सामना कर रहा है। महंगाई, बेरोजगारी, और विदेशी ऋणों ने देश की स्थिति को अत्यधिक नाजुक बना दिया है। डिसानायके की जीत को देश के लोगों द्वारा एक नई आशा के रूप में देखा जा रहा है। उनका चुनावी एजेंडा आर्थिक सुधार, भ्रष्टाचार उन्मूलन, और आम लोगों के जीवन में सुधार लाने पर केंद्रित है।
भारत-श्रीलंका संबंधों पर प्रभाव:
डिसानायके का चुनाव भारत के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। हालांकि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बधाई संदेश में दोनों देशों के संबंधों को मजबूत करने की बात कही, लेकिन उनकी चीन के प्रति झुकाव ने भारतीय रणनीतिकारों को चिंतित किया है। डिसानायके की पार्टी JVP ने अतीत में भारत की आलोचना की है, खासकर 1987 के भारत-श्रीलंका समझौते के दौरान। हालांकि, हाल ही में डिसानायके ने भारत के निवेश मॉडल की प्रशंसा की, जिसमें अमूल डेयरी मॉडल शामिल है, जिससे संकेत मिलता है कि उनके नेतृत्व में भारत-श्रीलंका संबंधों में सुधार की संभावना है।
क्या श्रीलंका चीन की ओर झुकेगा?
डिसानायके के नेतृत्व में श्रीलंका का चीन की ओर झुकाव एक महत्वपूर्ण प्रश्न है। उनके चुनाव अभियान के दौरान, उन्होंने चीन के साथ संबंधों को सुधारने की बात कही थी। हालांकि, उन्होंने भारत के साथ संबंधों को भी महत्वपूर्ण बताया है। इसलिए, यह देखना बाकी है कि श्रीलंका की नई सरकार किस दिशा में आगे बढ़ेगी। भारत के लिए यह चुनौतीपूर्ण हो सकता है, खासकर जब दक्षिण एशिया में अन्य पड़ोसी देश जैसे नेपाल, बांग्लादेश, और पाकिस्तान भी जटिल राजनीतिक स्थितियों से गुजर रहे हैं।
अनुरा कुमारा डिसानायके की जीत ने न केवल श्रीलंका की राजनीति को हिला कर रख दिया है, बल्कि यह भारत और दक्षिण एशिया के लिए भी एक नई राजनीतिक दिशा का संकेत है। पारंपरिक राजनीतिक ताकतों के पतन और एक गैर-पारंपरिक दल की सत्ता में आने से श्रीलंका में बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा। भारत को अब इस नए राजनीतिक परिदृश्य में अपने संबंधों और रणनीति को सावधानीपूर्वक संभालना होगा।