वन नेशन वन इलेक्शन: कैबिनेट की मंजूरी, शीतकालीन सत्र में बिल

One Nation One Election: Cabinet approval, bill in winter session
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भारत में चुनावी प्रक्रिया समय के साथ कई बदलावों से गुजरी है। एक महत्वपूर्ण कदम के तहत, मोदी सरकार ने ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ (एक राष्ट्र, एक चुनाव) की दिशा में अहम निर्णय लिया है। इस नीति के अंतर्गत, लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने का प्रस्ताव है, जिससे चुनावी खर्च और प्रक्रिया में सुधार की संभावना जताई जा रही है। हाल ही में, कैबिनेट ने इस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है, और अब यह बिल संसद के शीतकालीन सत्र में पेश किया जा सकता है।

वन नेशन वन इलेक्शन क्या है?

वन नेशन वन इलेक्शन का मुख्य उद्देश्य देशभर में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावों को एक साथ आयोजित करना है। इसके अंतर्गत, मतदाता एक ही समय पर दोनों चुनावों के लिए वोट देंगे। इससे न केवल चुनावी खर्चों में कमी आएगी, बल्कि सरकार और प्रशासन का ध्यान विकास कार्यों की ओर केंद्रित रहेगा। मौजूदा प्रणाली में चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं, जिससे प्रशासनिक व संसाधनों की बर्बादी होती है।

इतिहास और पृष्ठभूमि

1951 से लेकर 1967 तक, भारत में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ आयोजित किए जाते थे। लेकिन विभिन्न राज्यों में अस्थिर सरकारों के चलते यह प्रक्रिया बाधित हुई और अलग-अलग समय पर चुनाव कराए जाने लगे। वर्तमान में, भारत में लगभग हर साल कहीं न कहीं चुनाव होते रहते हैं, जिससे विकास योजनाओं पर असर पड़ता है।

कैबिनेट का निर्णय और कोविंद पैनल की रिपोर्ट

सितंबर 2024 में, केंद्रीय कैबिनेट ने पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली उच्च स्तरीय समिति की रिपोर्ट को स्वीकार किया। इस समिति को सितंबर 2023 में यह अध्ययन करने के लिए गठित किया गया था कि भारत में एक साथ चुनाव कराए जा सकते हैं या नहीं। इस रिपोर्ट में यह सुझाया गया है कि लोकसभा और विधानसभा चुनावों को पहले चरण में एक साथ कराना चाहिए, जबकि नगरपालिका और पंचायत चुनावों को दूसरे चरण में 100 दिनों के भीतर कराया जा सकता है। इसके लिए संवैधानिक संशोधन की जरूरत होगी। समिति ने कुल 18 संवैधानिक संशोधनों की सिफारिश की है​

प्रभाव और चुनौतियां

इस नीति के समर्थक दावा करते हैं कि इससे सरकारों का ध्यान बार-बार चुनावी प्रक्रिया पर भटकने से बचेगा और वे अपनी पूरी अवधि में विकास कार्यों पर ध्यान केंद्रित कर सकेंगी। साथ ही, चुनावी खर्च और सुरक्षा व्यवस्था पर भी इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि यह नीति विकास कार्यों में तेजी लाने और देश की संसाधन बचत के लिए महत्वपूर्ण है​।

हालांकि, इसके आलोचक इसे भारत की संघीय व्यवस्था के खिलाफ मानते हैं। कई विपक्षी पार्टियों का कहना है कि इससे केंद्र सरकार को अधिक लाभ होगा और राज्यों के अधिकार कम हो सकते हैं। संवैधानिक और कानूनी विशेषज्ञ भी इसके कार्यान्वयन को चुनौतीपूर्ण मानते हैं, क्योंकि भारत के संविधान में इस प्रकार के बदलाव के लिए कई अनुच्छेदों में संशोधन आवश्यक होंगे, जैसे कि अनुच्छेद 83, 85, 172, और 356​।

संविधानिक संशोधन की आवश्यकता

इस नीति को लागू करने के लिए संविधान में कई बड़े संशोधनों की जरूरत होगी। प्रमुख अनुच्छेदों में परिवर्तन करना पड़ेगा, ताकि लोकसभा और विधानसभाओं का कार्यकाल एक साथ समाप्त हो सके। इसके अलावा, अगर किसी सरकार का कार्यकाल बीच में ही खत्म हो जाता है, तो क्या होगा? यह भी एक बड़ा सवाल है जिसे ध्यान में रखना आवश्यक होगा​।

जहां भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और उसके सहयोगी दल इस नीति का समर्थन कर रहे हैं, वहीं कांग्रेस, आम आदमी पार्टी (AAP), और शिवसेना जैसे कई विपक्षी दल इसका विरोध कर रहे हैं। इन दलों का कहना है कि यह नीति केंद्र सरकार को राजनीतिक रूप से लाभ पहुंचाने के लिए लाई जा रही है। भाजपा ने इसे 2024 लोकसभा चुनाव के अपने चुनावी घोषणापत्र में भी शामिल किया था, और अब इस पर अमल की दिशा में कदम बढ़ाया जा रहा है​।

वन नेशन वन इलेक्शन भारत की चुनावी प्रणाली में एक बड़ा बदलाव हो सकता है। यह नीति जहां एक ओर प्रशासनिक और आर्थिक दृष्टिकोण से लाभप्रद हो सकती है, वहीं दूसरी ओर संवैधानिक चुनौतियां भी उत्पन्न हो सकती हैं। संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में इस बिल के पेश होने की संभावना है, जिससे इस पर व्यापक चर्चा और बहस होगी। इस नीति का क्रियान्वयन न केवल कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण होगा, बल्कि इसके दूरगामी राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव भी होंगे।

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Team K.H.
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