भारत के पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में जातीय संघर्ष के चलते मची हिंसा ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। इस संकट के बीच, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने शांति की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल करते हुए हाल ही में घोषणा की कि मणिपुर में बहुसंख्यक मेइतेई और आदिवासी कुकी समुदायों के बीच शांति वार्ताएं जारी हैं। उनका उद्देश्य है कि इस अशांत राज्य में जल्द से जल्द स्थायी शांति स्थापित हो सके। इसके साथ ही, म्यांमार की सीमा पर बाड़ लगाने का कार्य शुरू हो चुका है, ताकि विदेशी घुसपैठ पर रोक लगाई जा सके। इस लेख में, हम मणिपुर संकट के विभिन्न पहलुओं, सरकारी प्रयासों और भविष्य की संभावनाओं पर चर्चा करेंगे।
मणिपुर में हिंसा का कारण
मणिपुर में हिंसा की शुरुआत मई 2023 में हुई थी, जब मेइतेई समुदाय ने अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा प्राप्त करने की मांग की। इस मांग का विरोध कुकी समुदाय द्वारा किया गया, जो पहले से ही इस दर्जे का लाभ उठा रहा है। इस विवाद ने जातीय संघर्ष का रूप ले लिया, जिसमें अब तक 220 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं और हजारों लोग अपने घरों से बेघर हो चुके हैं।
सरकार की पहल: शांति वार्ता और सीमा सुरक्षा
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बताया कि सरकार ने मेइतेई और कुकी समुदायों के नेताओं के साथ संवाद शुरू कर दिया है ताकि मणिपुर में शांति बहाल की जा सके। अमित शाह ने कहा, “हम दोनों समुदायों के बीच स्थायी समाधान की दिशा में काम कर रहे हैं।” उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि किसी भी समाधान के लिए संवाद आवश्यक है, और दोनों पक्षों के बीच सीधी बातचीत के बिना कोई हल नहीं निकाला जा सकता।
इसके अलावा, मणिपुर में स्थिति को स्थिर करने के लिए सरकार ने म्यांमार की सीमा पर बाड़ लगाने का काम भी शुरू कर दिया है। अब तक 30 किलोमीटर की सीमा पर बाड़ लगाई जा चुकी है, और कुल 1,500 किलोमीटर की सीमा पर बाड़ लगाने की योजना है। इसका उद्देश्य अवैध घुसपैठ और विदेशी तत्वों द्वारा हिंसा को भड़काने की गतिविधियों पर रोक लगाना है।म्यांमार के साथ सीमा सुरक्षा
मणिपुर की समस्या के मूल कारणों में से एक म्यांमार के साथ खुली सीमा है। इस सीमा पर पहले ‘फ्री मूवमेंट रेजीम’ (FMR) लागू था, जिससे सीमावर्ती गांवों के लोग बिना किसी वीजा के 16 किलोमीटर तक आ जा सकते थे। हालांकि, अब सरकार ने इस प्रणाली को रद्द कर दिया है और म्यांमार के साथ सीमा पर आवागमन के लिए वीजा अनिवार्य कर दिया है। इससे न केवल अवैध गतिविधियों पर रोक लगेगी, बल्कि मणिपुर में हिंसा को नियंत्रित करने में भी मदद मिलेगी।
शांति वार्ता का महत्व
शांति वार्ता की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि दोनों पक्षों के बीच कितनी प्रभावी बातचीत होती है। अब तक, दिल्ली, कोलकाता और गुवाहाटी जैसे तटस्थ स्थानों पर कई बार गुप्त बैठकों का आयोजन किया गया है। इसके अलावा, खुफिया ब्यूरो और केंद्र सरकार के वार्ताकार भी इस प्रक्रिया में शामिल हो चुके हैं। सरकार द्वारा प्रस्तावित रोडमैप में शांति को प्राथमिकता दी गई है। अमित शाह ने यह भी कहा कि पिछले हफ्ते तीन दिन की हिंसा के अलावा मणिपुर में स्थिति सामान्य हो रही है, और सरकार आशावान है कि जल्द ही वहां पूर्ण शांति स्थापित होगी।
जनगणना और अन्य सरकारी प्रयास
मणिपुर में हिंसा को रोकने के अलावा, अमित शाह ने भारत की दशकव्यापी जनगणना के बारे में भी घोषणा की। यह जनगणना अप्रैल 2020 में शुरू होनी थी, लेकिन कोविड-19 महामारी के कारण इसे स्थगित कर दिया गया था। अब जल्द ही इसके शुरू होने की घोषणा की जाएगी, जो जनसंख्या के विभिन्न सामाजिक और आर्थिक आंकड़ों को इकट्ठा करने में मदद करेगी।
मणिपुर में जातीय हिंसा से उत्पन्न संकट को समाप्त करने के लिए केंद्र सरकार ने मेइतेई और कुकी समुदायों के साथ शांति वार्ता शुरू कर दी है। अमित शाह की पहल से उम्मीद की जा रही है कि इस वार्ता के माध्यम से राज्य में स्थायी शांति बहाल होगी। म्यांमार की सीमा पर बाड़ लगाने और विदेशी घुसपैठ पर रोक लगाने के उपाय इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हैं। हालांकि, शांति का रास्ता लंबा और चुनौतीपूर्ण हो सकता है, लेकिन सरकार के प्रयासों और दोनों समुदायों के नेताओं की इच्छाशक्ति से मणिपुर में शांति का सपना जरूर साकार होगा।
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