साल 2018 में जब सरकार ने ‘लैटरल एंट्री’ योजना की शुरुआत की, तब इसे आरक्षण से दूर रखने के प्रयास किए गए थे। लेकिन अब, छह साल बाद, वही योजना सामाजिक न्याय के नाम पर वापस ले ली गई है। इस कदम से न केवल विपक्षी दलों, बल्कि सत्तारूढ़ गठबंधन के सहयोगी दलों ने भी सरकार को निशाने पर लिया है।
क्या है Lateral Entry योजना?
लैटरल एंट्री योजना का उद्देश्य था कि बाहरी विशेषज्ञों को सरकारी सेवा में लाकर प्रशासनिक तंत्र को और अधिक कुशल बनाया जाए। इस योजना के तहत, विभिन्न मंत्रालयों में 50 पदों को भरने के लिए चयन प्रक्रिया शुरू की गई थी। लेकिन इसमें आरक्षण लागू न होने के कारण विवाद खड़ा हो गया।
आरक्षण की अनदेखी: 2018 की नीतियां
2018 में इस योजना को लागू करते समय, सरकार ने DoPT (कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग) के 1978 के निर्देशों का पालन करते हुए आरक्षण को दरकिनार कर दिया। DoPT ने माना कि ‘लैटरल एंट्री’ प्रतिनियुक्ति के समान है, जहां एससी/एसटी/ओबीसी के लिए अनिवार्य आरक्षण की आवश्यकता नहीं होती है।
लेकिन, एक महत्वपूर्ण बात को नजरअंदाज किया गया: 1978 के निर्देशों में यह भी कहा गया था कि जब प्रतिनियुक्ति या ट्रांसफर से बड़ी संख्या में पद भरे जा रहे हों, तो यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि उन पदों में से उचित संख्या एससी/एसटी समुदायों के उम्मीदवारों से भरी जाए।
कैसे बदली सरकार की सोच?
हाल ही में, DoPT के मंत्री जितेंद्र सिंह ने UPSC की अध्यक्ष प्रीति सुदान को ‘लैटरल एंट्री’ के लिए जारी विज्ञापन को वापस लेने का निर्देश दिया। उन्होंने इसे सामाजिक न्याय और हाशिए पर पड़े समुदायों की “सही प्रतिनिधित्व” के लिए जरूरी बताया। विपक्ष और NDA के सहयोगी दलों, जैसे कि जद (यू) और लोजपा (रामविलास), द्वारा इस योजना के खिलाफ उठाई गई आपत्तियों के बाद यह कदम उठाया गया।
क्या हुआ 2018 में?
- मार्च 2018: प्रधानमंत्री कार्यालय से DoPT को 50 पदों पर ‘लैटरल एंट्री’ के तहत भर्तियां करने का निर्देश मिला। इनमें से 10 संयुक्त सचिव और 40 उप सचिव/निदेशक पद शामिल थे।
- अप्रैल 2018: DoPT ने दो दिनों के भीतर आरक्षण विभाग से राय मांगी कि इन पदों को प्रतिनियुक्ति या अनुबंध के माध्यम से भरा जाए।
- मई 2018: आरक्षण विभाग ने जवाब दिया कि प्रतिनियुक्ति या ट्रांसफर से भरे जाने वाले पदों में आरक्षण नहीं होता और अनुबंध के तहत भरे जाने वाले पदों के लिए कोई विशेष निर्देश नहीं थे।
- जुलाई 2018: DoPT ने ‘सिंगल पोस्ट’ का तर्क देकर आरक्षण न लागू करने का निर्णय लिया।
वर्तमान में स्थिति
इस योजना के तहत अब तक 63 पद भरे जा चुके हैं, लेकिन अब जब सरकार ने इसे वापस लेने का निर्णय लिया है, तो यह स्पष्ट है कि सामाजिक न्याय और हाशिए पर पड़े समुदायों का प्रतिनिधित्व प्राथमिकता में आ गया है।
इस फैसले से एक ओर सरकार ने अपनी सामाजिक न्याय के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाया है, तो दूसरी ओर इसने प्रशासनिक तंत्र के सुधार में एक नए विवाद को जन्म दिया है।
लैटरल एंट्री योजना का रद्द होना इस बात का संकेत है कि सरकार अब सामाजिक न्याय के मुद्दों को गंभीरता से ले रही है। यह फैसला न केवल राजनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि प्रशासनिक सुधारों के संदर्भ में भी एक नई दिशा प्रदान करता है। अब यह देखना होगा कि भविष्य में सरकार कैसे इन पदों को भरने के लिए नए तरीकों का चयन करती है, जिसमें आरक्षण और सामाजिक न्याय का समुचित ध्यान रखा जाए।
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